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दिल्ली में निकला लोकतंत्र का जनाजा

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:24 Feb 2018 6:10 PM GMT
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इंदर सिंह नामधारी

दिल्ली में घट रही दुःखद घटनाओं को देखकर लोकतंत्र के छद्म समर्थक भले ही खुश हो रहे हों लेकिन दिल्ली में हो रही लोकतंत्र की दुर्गति देखकर अमेरिका के 16 वें राश्ट्रपति स्व. एब्राहम लिंकन की आत्मा अवश्य रो रही होगी क्योंकि उन्होंने ही सबसे पहले लोकतंत्र की परिभाषा देते हुए कहा था कि यह शासन पणाली ऐसा पजातंत्र होगा जो जनता का, जनता के द्वारा एवं जनता के लिए सत्ता में आएगा। विडम्बना देखिए कि लोकतंत्र की उपरोक्त परिभाषा कुछ और ही बता रही है और दिल्ली में इसके "ाrक विपरीत घटनाऍ घट रही हैं। दिल्ली में जनता द्वारा एक चुनी हुई सरकार ग"ित है जिसके मुखिया श्री अरविन्द केजरीवाल हैं और उन्होंने वर्ष 2014 के विधानसभा के चुनावों में 70 में से 67 सीटें जीत कर पचण्ड बहुमत पाया था। दिल्ली में जनता की चुनी हुई सरकार आज के दिन दोयम दर्जे की हो गई है जबकि केन्दीय सरकार द्वारा उपराज्यपाल के रूप में मनोनीत एक नौकरशाह सत्ता का कर्णधार बन बै"ा है जबकि जनता से उनका कोई सीधा सरोकार ही नहीं है। जनता के सामने जब भी कोई समस्या आएगी वह अपने निर्वाचित पतिनिधियों के पास ही पहुंचेगी लेकिन वहां उपराज्यपाल को इतने अधिकार पाप्त हैं कि वह जिस संचिका को रोकना चाहें बिना कारण बताए रोक सकते हैं। बीते दिनों दिल्ली में एक ऐसी घटना घटी है जो लोकतंत्र के लिए कलंक है क्योंकि दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव बै"क करने के ाढम में मुख्यमंत्री जी के आवास पर पधारे थे जहां तथाकथित रूप से उनपर हाथ उ"ाए गए। यह घटना वास्तव में शर्मनाक थी लेकिन केन्द सरकार के नाक के नीचे चल रही दिल्ली की पुलिस ने मुख्यमंत्री के कद को नीचा दिखाने एवं निर्वाचित विधायकों को जलील करने के लिए दो विधायको को जेल में भेज दिया क्योंकि उन दोनों पर मुख्य सचिव पर वार करने का आरोप था। इस घटना के बाद दिल्ली सरकार के सचिवालय में सरकारी कर्मचारियों ने हजूम बनाकर न केवल दिल्ली सरकार के एक मंत्री अपितु एक अन्य वरीय जनपतिनिधि के साथ मारपीट की जिसकी तस्वीरें सीसीटीवी पर स्पष्ट रूप से कैद हैं। विडम्बना देखिए कि मुख्य सचिव के एक मौखिक बयान पर दो-दो विधायकों को गिरफ्तार कर लिया जाता है और सत्ता के सर्वोच्च मुख्यमंत्री के आवास पर पुलिस का छापा मारा जाता है और उनके घर से 21 सीसीटीवी कैमरों के हार्ड डिस्क जब्त कर लिये जाते हैं। मुख्यमंत्री के आवास पर धावा बोलने के पहले पुलिस ने मौलिक औपचारिकताओं को पूरा करने की भी जहमत नहीं उ"ाई। ऐसा लगता है कि केन्द्र की सरकार जानबूझकर दिल्ली सरकार एवं उसके मुखिया को अपमानित करने पर अमादा है।
यक्ष पश्न यह उ"ता है कि दिल्ली पुलिस की हरकतों से देश में लोकतंत्र को बल मिल रहा है या लोकतंत्र तिरोहित हो रहा है? यह बात सही है कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार को अन्य राज्यों की तरह पूरे अधिकार पाप्त नहीं है क्योंकि यह शहर केन्द्र सरकार का भी मुख्यालय है। इस व्यवस्था के बावजूद केन्द्र सरकार को यह पावधान तो करना ही चाहिए था कि चुनी हुई सरकार किसी भी रूप में बेबस न दिखे क्योंकि उसे जनता निर्वाचित करती है और उसका अपमान साक्षात जनता का अपमान है। अधूरी सरकार रहने के चलते चुनी हुई सरकार के अधिकार तो नाम मात्र के हैं लेकिन एक मनोनीत व्यक्ति लेफ्टीनेंट गवर्नर बनकर निर्वाचित सरकार के सारे हको को अपनी मुट्"ाr में बंद कर लेता है। सरकार यदि कोई विकास का कार्य करने के लिए संचिका बढ़ाती है तो उपराज्यपाल उसको स्वीकृति नहीं देते। जनता अपने चुने हुए पतिनिधियों के पास पहुंचती है लेकिन वे अपने को बेबस पाते हैं क्योंकि आज के दिन दिल्ली के बाबू मंत्रियों के कहने पर बै"कों में भी शिरकत नहीं कर रहे हैं। केन्द की सरकार भले ही डींग हॉक रही हो कि उन्होंने अरविन्द केजरीवाल एवं उनकी सरकार को छ"ाr का दूध याद करा दिया है लेकिन वे भूल जाते हैं कि जिस जनता ने उन्हें सरकार की गद्दी सौंपी है यह उसी जनता का अपमान है क्योंकि दिल्ली की सरकार भी जनता द्वारा ही चुनी गई थी। विगत तीन वर्शों से केन्द की सरकार उपराज्यपाल के माध्यम से दिल्ली सरकार को सबक सिखाने में लगी है तथा केन्दीय सरकार ``आप`` पार्टी की दुर्गत देखकर गदगद हो रही है। एक जिम्मेवार केन्दीय सरकार का यह फर्ज बनता था कि वह उपराज्यपाल एवं मुख्यमंत्री को एक साथ बै"ाकर जनता के काम कराने का कोई सर्वमान्य हल निकाल लेती लेकिन उसके कान पर जूं नहीं रेंग रही है। मुख्यमंत्री एवं उपराज्यपाल की शक्तियों को लेकर पैदा हुए झगड़े का मामला उच्च न्यायालय से होते हुए सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंचा है लेकिन किसी केन्दीय मंत्री या अन्य जिम्मेवार व्यक्ति ने इस टकराव को दूर करने का कोई पयास तक नहीं किया है।
दुःख इस बात का है कि जिस मीडिया को निष्पक्ष भाव से समाचारों को पसारित करना चाहिए था वह भी केन्द सरकार के पक्ष में एकतरफा विषाक्त पचार कर रहा है, मानो उसने अरविन्द केजरीवाल को अपमानित करने का "sका ले लिया हो। आज देश में कभी-कभी ऐसा पतीत होने लगता है कि शायद देश को दिशा दिखाने वाले लोग अब गायब हो गये हैं। सत्ताधारी पार्टी को अपने आपको सबसे बड़ा देश-भक्त बताने से फुर्सत नहीं है और उनके विचारों से भिन्नता रखने वाले लोगों को तुरंत देश-दोही घोषित कर दिया जाता है। यूनान के महान दार्शनिक प्लोटो ने सदियों पहले लिखा था कि जनतांत्रिक व्यवस्था में जनपतिनिधियों एवं अधिकारियों में कुत्ते एवं उसकी पूंछ जैसा रिश्ता रहना चाहिए। जब कुत्ते का शरीर हिले तो पूंछ को भी तद्नुसार हिलना चाहिए लेकिन भारत के लोकतंत्र की विडम्बना देखिए कि यहां पूंछ के हिलने के मुताबिक कुत्ते के शरीर को हिलना पड़ता है। अफसर की एक महज शिकायत दिल्ली में इतना हड़कम्प मचा देती है कि निर्वाचित सरकार के सर्वोच्च पदाधिकारी के घर पर पुलिस का छापा पड़ जाता है और मंत्री के पिटाये जाने के बाद भी पुलिस के कानों पर जूं नहीं रेंगती। सत्ता में बै"s लोगों को भूलना नहीं चाहिए कि लोकतंत्र की मौलिक भावनाओं को कदापि नष्ट नहीं होने देना चाहिए क्योंकि अन्ततोगत्वा सत्ता के शिखर पर बै"s लोगों को ही सारी विकृतियों का फल भोगना पड़ता है। केन्द सरकार यदि चुनी हुई सरकार की मर्यादा को संरक्षण नहीं दे सकती तो उसे चाहिए कि वह दिल्ली में विधानसभा के चुनावों को समाप्त कर दे और राज्यपाल को पशासक के रूप में पतिश्"ित करके सारी शक्तियॉ उसमें केन्दीभूत कर दे ताकि रोज-रोज के झड़गे समाप्त हो सकें। मैं कोई `आप' पार्टी का समर्थक नहीं हूं लेकिन जब लोकतांत्रिक व्यवस्था की ओर मेरा ध्यान जाता है तो महसूस करता हूं कि आज की सरकार आखिर संवैधानिक बिन्दुओं को तिरस्कृत करने में रूचि क्यों रखती है? सत्ताधारी पार्टी में आज कोई यह कहने वाला व्यक्ति नहीं बचा जो आज की सरकार को यह कह सके कि दिल्ली में घट रही घटनाएं अरविन्द केजरीवाल को उतना नुकसान नहीं पहुंचा रही हैं जितना केन्द की सत्ता संभालने वाले लोगों को आने वाले दिनों में पहुंचने वाला है।
(लेखक भारतीय रेड कास सोसाईटी के उपसभापति हैं।)

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