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आप विधायकों का अमर्यादित आचरण

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:24 Feb 2018 6:12 PM GMT
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आशीष वशिष्ठ

दिल्ली प्रदेश में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के विधायकों द्वारा दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ हाथापाई कहीं न कहीं इस राष्ट्र में अपने निजी स्वार्थ के कारण गिरते राजनीतिक स्तर का प्रमाण है। जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि और संविधान द्वारा नियुक्त किये गये प्रतिनिधियों के आपसी समन्वय से जहां विकास कार्यों को गति देने की उम्मीद रखी जाती है, वहीं दोनों के परस्पर इस तरह सार्वजनिक कलह में सिर्प आम जनता पिस रही है, बल्कि एक ऐसी गलत परंपरा की नींव भी पड़ रही है जो किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिये शुभ संकेत नहीं है।
इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि एक जन आंदोलन की कोख से जन्मा राजनेता जो खुद को आम आदमी का कथित प्रतिनिधि बताता है, अपने आवास में बुलाकर राज्य के सबसे बड़े प्रशासनिक अधिकारी के साथ सरेआम अपनी उपस्थिति में अपने विधायकों से हाथापाई करवाते हैं। राजनीति का यह स्तर चिंताजनक है। दिल्ली सरकार में मुख्य सचिव अंशु प्रकाश ने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की उपस्थिति में आप के दो विधायकों ने उनके साथ मारपीट की है। यहां तक कि उन्होंने आरोपी विधायकों के खिलाफ इस आशय की प्राथमिकी भी दर्ज कराई है। आननफानन में दिल्ली पुलिस ने तत्काल आम आदमी पार्टी के दो विधायकों को गिरफ्तार भी कर लिया। दिल्ली सरकार का कहना है कि मुख्य सचिव के सारे आरोप बेबुनियाद हैं। उनके साथ कोई बदसलूकी नहीं हुई। उलटा आम आदमी पार्टी के एक विधायक ने मुख्य सचिव के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है कि उन्होंने उनके खिलाफ जातिगत टिप्पणी की, जब उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र में लोगों को राशन मिलने में आ रही परेशानी की शिकायत की।
प्रामाणिक रूप से यह कह पाना कठिन है कि वास्तव में मुख्यमंत्री के आवास पर कैसा घटपाम घटित हुआ। इस मुद्दे पर जमकर राजनीति हो रही है। अपनी सुविधा और राजनीतिक फायदे के लिए सिर्प कटुता को ही विस्तार दिया जा रहा है। भाजपा और कांग्रेस ने भी फटाफट इस मामले की निंदा कर दी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने तो जांच हुए बिना ही कह दिया कि दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव के साथ हुए घटनाकम से गहरा दुख पहुंचा है, प्रशासनिक सेवाओं के लोगों को निडरता और गरिमा से काम करने देना चाहिए। इधर इस पूरे घटनाकम पर आम आदमी पार्टी का कहना है कि यह भाजपा की साजिश है। मगर? इस उकसावे के बावजूद यह तय है कि घटनाकम किसी के लिये भी लाभदायक नहीं है और स्वीकार्य भी नहीं कि एक वरिष्ठतम प्रशासनिक अधिकारी के साथ मारपीट की जाये। किसी हद तक आप सरकार के मुख्यमंत्री की भी जिम्मेदारी थी कि ऐसे अप्रिय घटपाम को टाला जाये। इसके बावजूद कि अरविंद केजरीवाल का काम करने का ढंग कुछ अलग है। मुख्य सचिव पर हुए तथाकथित हमले के बाद दिल्ली सचिवालय से जुड़े प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों ने काम का बहिष्कार कर दिया और मांग की कि जब तक आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं होती, वे काम पर नहीं लौटेंगे। प्रशासनिक अधिकारी पहले उपराज्यपाल और फिर केंद्रीय गृहमंत्री के पास भी अपनी शिकायत दर्ज करा आए। जबकि दिल्ली सरकार में मंत्री इमरान हुसैन ने पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराई है कि सचिवालय के कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों ने उन्हें लिफ्ट में बंधक बना लिया था और वे किसी तरह वहां से जान बचा कर निकलने में कामयाब हुए।
पूरे प्रकरण में यह बात समझ?से परे है कि आखिर क्यों मुख्य सचिव व आप विधायकों की यह बैठक मध्य रात्रि में आयोजित की गई। एक मुख्यमंत्री के नाते अरविंद केजरीवाल की भी जवाबदेही बनती है कि नौकरशाहों और विधायकों के बीच होने वाले संवाद पर निगरानी रखें। जाहिर-सी बात है कि जब विवाद अप्रिय स्थिति में पहुंचता है तो आक्षेप मुख्यमंत्री पर ही आता है। जाहिरा तौर पर आप नेतृत्व को एहसास होना चाहिए कि अब केंद्र सरकार अपने राजनीतिक लाभ के अनुरूप मामले को दिशा देने की कोशिश करेगी। कानूनन केंद्र सरकार और उसके द्वारा नामित लेफ्टीनेंट गवर्नर के पास अधिकांश संवैधानिक अधिकार हैं। वहीं दूसरी ओर जनता द्वारा निर्वाचित होने के नाते दिल्ली सरकार की जवाबदेही बनती है कि अधीर जनाकांक्षाओं के दबाव के अनुरूप कदम बढ़ाये। इस प्रकरण से स्वाभाविक ही एक बार फिर आम आदमी पार्टी सरकार विवादों में घिर गई है। ताजा प्रकरण के बाद जिस तरह का माहौल बन गया है, उसमें दिल्ली सरकार के लिए काम करना कठिन हो गया है। इसका असर स्वाभाविक रूप से योजनाओं के ािढयान्वयन पर भी पड़ेगा।
पहले मुख्यमंत्री सार्वजनिक मंचों से भी आरोप लगाते रहे कि दिल्ली सरकार के साथ नत्थी प्रशासनिक अधिकारी केंद्र की भाजपा सरकार के इशारे पर काम कर रहे हैं, इसलिए उन्हें काम करने में दिक्कतें आ रही हैं। मुख्य सचिव और दूसरे सचिवों की नियुक्ति को लेकर पूर्व उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच लंबे समय तक रस्साकशी चलती रही। जब इस मामले में कुछ विवाद थमा नजर आने लगा था, तभी यह प्रकरण घटित हो गया। दरअसल, दिल्ली सरकार अपने तीन साल पूरे होने के मौके पर टेलीविजन पर विज्ञापन प्रसारित करना चाहती है, जिसके लिए मुख्य सचिव की मंजूरी आवश्यक है। पर नियम-कायदों का हवाला देते हुए मुख्य सचिव उसके प्रसारण में अडंगा लगाते रहे हैं। इसी को लेकर दिल्ली सरकार, आम आदमी पार्टी विधायकों और मुख्य सचिव के बीच तल्खी बताई जा रही है। दिल्ली सरकार पर विज्ञापनों के प्रसारण में अतार्किक रूप से पैसा खर्च करने का आरोप पहले ही लग चुका है। ऐसे में मुख्य सचिव की पूंक-पूंक कर कदम रखने की मंशा समझी जा सकती है। पर यह ऐसा मामला नहीं हो सकता, जिस पर विवेक से काम लेने के बजाय हिंसक रास्ता अख्तियार करने की नौबत आ जाए।
दरअसल, भाजपा सरकार के लिये एक दुरूस्वप्न की तरह वर्ष 2015 के दिल्ली चुनाव में मिली करारी शिकस्त को भुलाना मुश्किल है। जाहिरा तौर पर लेफ्टीनेंट गवर्नर कार्यवाही करने के लिये संवैधानिक प्रावधान तलाश ही लेंगे। इन हालात में आम आदमी पार्टी को नया विमर्श गढ़ना होगा कि इन हालात में वह जनता के लिये क्या कर सकती है, जबकि उसे काम ही नहीं करने दिया जा रहा है। मगर यह तय है कि मुख्य सचिव और विधायकों जैसे झगड़ों से उसे कोई मदद नहीं मिलने वाली है। मुख्यमंत्री आवास पर देर रात घटी इस घटना का सच निष्पक्ष जांच के बाद ही सामने आ सकता है। लेकिन इस पर राजनीतिक लाभ लेने की जो हड़बड़ी दिखाई दे रही है, वह ज्यादा चिंताजनक है। जांच हुए बिना भी गृहमंत्री ने बयान देने की हड़बड़ी दिखाई। भाजपा और कांग्रेस को तो मानो इस प्रकरण के बहाने आम आदमी पार्टी से हिसाब चुकता करने का मौका मिल गया। आम आदमी पार्टी भी हमेशा की तरह अड़ियल रवैया ही दिखा रही है कि उसके विधायक कभी कोई गलती नहीं कर सकते और हर बात के लिए भाजपा जिम्मेदार होती है। तीन साल हो गए जब आम आदमी पार्टी को छप्पर फाड़ बहुमत के साथ दिल्ली की जनता ने दोबारा मौका दिया था।
आम आदमी पार्टी और प्रशासन के बीच शुरू से ही तनातनी का रिश्ता रहा है। किसी भी सरकार के लिए सबसे बड़ा संकट तब खड़ा हो जाता है, जब अफसरशाही ही उसके खिलाफ हो जाए। भारत में प्रशासन की बागडोर उन अफसरों के हाथ में ही रहती है, जो ब्रिटिश शासन में बनाई गई व्यवस्था की देन हैं। कहने को ये नौकरशाह होते हैं, पर असली बादशाहत इनके ही हाथों में रहती है। यही कारण है कि जनता द्वारा निर्वाचित सरकार भी इनके ही भरोसे ही चलती है और अगर अफसर रूठ जाएं तो संवैधानिक संकट जैसी नौबत आ जाती है।
आज से तीन साल पहले आम आदमी पार्टी लोगों की समस्याओं को दूर करने, पारदर्शी और प्रभावी प्रशासन देने के वादे पर सत्ता में आई थी, इसलिए उससे संयम की अपेक्षा अधिक की जाती है। फिर अगर इस प्रकरण में कोई राजनीतिक कोण है, तो उसे भी उचित नहीं कहा जा सकता। सरकार और प्रशासन के बीच इस तरह की अप्रिय स्थिति किसी भी रूप में लोकतांत्रिक दृष्टि से ठीक नहीं है।

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