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सीबीआई के लिए आसान नहीं राजनेताओं से जुड़े मामलों की जांच
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आदित्य नरेन्द्र
जैसा कि हमेशा होता आया है इस बार भी जब एक राजनेता के पुत्र पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो हर बार की तरह इसे भी राजनीतिक दुर्भावना कहा गया। विपक्ष के रूप में राजनीति कर रहे राजनेताओं के लिए यह अपनी छवि को खराब होने से बचाने का एक आसान रास्ता हो सकता है लेकिन इससे सीबीआई की छवि को कितना नुकसान पहुंचता है यह कोई महसूस नहीं करता। इसमें कोई शक नहीं कि सीबीआई देश की सबसे इलीट एजेंसी है।
इसके बावजूद भी राजनीतिक दुर्भावना के आरोपों का जवाब देना आसान नहीं होता। इस तरह देखा जाए तो सीबीआई अधिकारियों को एक साथ दो मोर्चों पर लड़ना पड़ता है। एक ओर जहां उसे आरोपी पर लगे आरोप को बिना किसी भय या पक्षपात के साबित करना होता है वहीं राजनीतिक दुर्भावना के आरोपों की हवा भी निकालनी होती है। जाहिर है ऐसे में एक भी गलत कदम सीबीआई की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए काफी हो सकता है।
सीबीआई का एक बार फिर ऐसी ही स्थिति से सामना हो रहा है। इस बार मामला पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री रहे पी. चिदम्बरम के पुत्र कार्ति चिदम्बरम का है। पिछले दिनों सीबीआई अधिकारियों ने कार्ति को विदेश से लौटते समय चेन्नई हवाई अड्डे से गिरफ्तार कर लिया था। उन पर पिछले साल 15 मई को आईएनएक्स मीडिया विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड द्वारा दी गई मंजूरी में कथित गड़बड़ियों के चलते मामला दर्ज किया गया था। मामला 2007 में 305 करोड़ रुपए की विदेशी पूंजी हासिल करने से संबंधित है। इस मामले में ईडी ने भी धन शोधन का मामला दर्ज किया है। चूंकि कार्ति पी. चिदम्बरम के पुत्र हैं और कथित अनियमितता के समय पी. चिदम्बरम वित्तमंत्री थे।
ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि इन आरोपों की जांच उन तक भी पहुंच सकती है। ऐसी स्थिति का मुकाबला करना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि अगले साल लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं।
अभी तक ललित मोदी, विजय माल्या और नीरव मोदी का नाम ले-लेकर मोदी सरकार को कोसने वाली कांग्रेस इसके बाद कुछ बैकफुट पर आ जाए तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। मोदी सरकार के हावभाव से साफ है कि अब सरकार इस मोर्चे पर फ्रंटफुट पर आकर खेलेगी और यदि वास्तव में ऐसा होता है तो विपक्ष की मुश्किलात बढ़ने की संभावना है। शायद इसीलिए कांग्रेस ने सरकार पर राजनीतिक दुर्भावना का आरोप जड़कर मामले को हल्का करने का प्रयास किया है। इसके जवाब में भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं है और कानून अपना काम करेगा। उधर सीबीआई भी इस मामले में सोच-समझ कर कदम बढ़ा रही है। मई 2017 में मामला दर्ज करने के बाद कार्ति को फरवरी 2018 के अंत में गिरफ्तार किया गया। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि लोकसभा चुनाव जीतने के लिए ऐसा किया जा रहा है। हां, यह ठीक है कि अब अगले साल आम चुनाव हैं लेकिन यदि यह गिरफ्तारी पहले की जाती तब भी तो राजनीतिक दुर्भावना का आरोप लगाया जा सकता था।
यहां सवाल यह है कि हम सीबीआई को ऐसा हथियार क्यों मानते हैं जिसका इस्तेमाल सत्ताधारी पार्टी अपने विरोधियों को चित्त करने के लिए कर सकती है। आज भाजपा सत्ता में है लेकिन इससे पहले कई दशकों तक कांग्रेस ही सत्ता में रही थी। फिर इस दौरान सीबीआई का ऐसा कोई स्वरूप क्यों नहीं विकसित किया गया जिससे ऐसे आरोप लगाने का मौका ही न मिल सके। राजनेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर देश की जनता काफी संवेदनशील है और वह मामले की तह तक जाना चाहती है। क्या यह अच्छा नहीं होगा कि राजनीतिक दलों के नेता मामले की शुरुआत में ही सीबीआई पर राजनीतिक दुर्भावना से काम करने का आरोप लगाकर उसे दबाव में लाने की बजाय उसे सही निष्कर्ष तक पहुंचने का मौका दें। यदि कोई बेकसूर है तो कुछ समय बाद ही सही दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
दूसरी ओर सीबीआई को भी यह साबित करना होगा कि वह जनता के प्रति जवाबदेह है किसी सत्ताधारी राजनीतिक दल या नेता के प्रति नहीं। तभी उसके लिए राजनेताओं से जुड़े मामलों की जांच आसान होगी। कानून का उल्लंघन करने वाली बड़ी राजनीतिक शख्सियतों को जब सीबीआई कानून के दायरे में लाएगी तभी उस पर आम आदमी का विश्वास कायम होगा।
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