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दैवो दुर्बल घातक

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:10 March 2018 2:54 PM GMT
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इन्दर सिंह नामधारी

देश की वर्तमान राजनीतिक स्थिति देखकर मुझे सुभाषितानी की एक सूक्ति याद हो आती है जिसमें कहा गया है कि,
अश्वं नैव गजं नैव
व्याघ्रं नैव-नैव च।
अजा पुत्रं बलिं दद्यात्
दैवो दुर्बल घातकः।।
अर्थात इस दुनिया में लोग घोड़े या हाथी की बलि कभी नहीं देते और बाघ की बलि देने की बात तो कोई सोच भी नहीं सकता। अंततः बलि पर देवताओं को खुश करने के लिए बकरे को ही चढ़ाया जाता है। इससे यही सिद्ध होता है कि ईश्वर भी बकरे की बलि लेना ही पसंद करता है। इसी कारण से भारत में एक कहावत पचलित है कि `भगवान भी कमजोर की रक्षा नहीं करता।'
इस उक्ति को आज की राजनीतिक स्थिति के साथ मैंने इसलिए जोड़ दिया है क्योंकि स्वतंत्रता के बाद छह दशकों तक भारत पर एकक्षत्र राज करने वाली कांग्रेस पार्टी भी आजकल बकरे की तरह कमजोर हो चुकी है जिसके चलते सत्ता में बै"ाr वर्तमान भाजपा सरकार जब चाहती है कांग्रेस को बलि पर चढ़ा देती है। बहुत दिन नहीं हुए जब गत वर्ष गोवा और मणिपुर में कांग्रेस ने भाजपा से विधानसभा की काफी ज्यादा सीटें जीत ली थीं लेकिन भाजपा ने दोनों ही राज्यों में कांग्रेस को सरकार नहीं बनाने दी और दोनों ही राज्यों में उसने जबरन अपनी सरकारें बना लीं।
इसी माह तीन मार्च को जब उत्तर पूर्व के तीन राज्यों क्रमशः त्रिपुरा, नागालैंड एवं मेघालय की विधानसभाओं के चुनावी परिणाम सामने आए तो त्रिपुरा में भाजपा अपने बल पर दो-तिहाई बहुमत पाकर सत्ता में आ गईं और उसने नागालैंड में भी दूसरे दलों से समझौता करके सरकार बनाने में सफलता पा ली। मेघालय में लेकिन भाजपा को मात्र दो सीटें ही मिल पाईं लेकिन इसके बावजूद भाजपा ने 22 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को अपनी सरकार नहीं बनाने दी। वास्तव में भाजपा की यह फितरत लोकतंत्र के मानदंडों पर कहीं भी खरी नहीं उतरती। `समरथ को नहि दोश गोसाई' जैसी कहावत की तर्ज पर भाजपा ने कांग्रेस को मेघालय राज्य की सत्ता को बिना किसी हील हुज्जत के अपने कब्जे में कर लिया और मेघालय में कांग्रेस की सरकार ग"न का पभारी बनकर गए उसके बड़े नेता अहमद पटेल बड़े बेआबरू होकर वहां से खाली हाथ लौट आए।
कांगेस के साथ ऐसी धक्काशाही भाजपा केवल कतिपय राज्यों में सरकार ग"न को लेकर ही नहीं कर रही अपितु सत्ताधारी दल पर कांग्रेस जब-जब किसी भ्रष्टाचार का आरोप मढ़ती है तो भाजपा बड़ी दबंगई से उल्टे कांग्रेस पर ही पलटवार कर देती है। पूरे देश में आजकल नीरव मोदी एवं मेहुल चौकसी के हजारों करोड़ रुपए के घोटालों की चर्चा लोगों की जुबान पर है लेकिन भाजपा ने कांग्रेस का मुंह बंद करने के लिए उसके एक बड़े नेता एवं पूर्व वित्त मंत्री श्री पी. चिदम्बरम के बेटे कार्ति चिदम्बरम को विदेश से लौटते समय हवाई अड्डे पर गिरफ्तार करके उसे सीबीआई को सौंप दिया है। यह ज्ञातव्य है कि कार्ति पर दस वर्ष पहले तीन करोड़ रिश्वत लेने का आरोप था लेकिन सीबीआई इतने लंबे समय तक चुपचाप बै"ाr रही। सीबीआई ने कार्ति चिदम्बरम के रिमांड को तीन बार बढ़ाया है जिसके अंतर्गत कार्ति चिदम्बरम का सामना बेटी की हत्या के आरोप में जेल में बंद इंद्राणी मुखर्जी से भी कराया जा चुका है लेकिन सीबीआई न्यायालय से और रिमांड मांगने की जिद्द पर अड़ी हुई है। वास्तविकता यह है कि सीबीआई येन केन पकारेण कार्ति के मुंह से कुछ उगलवाना चाहती है जिसमें उसको अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है।
कार्ति के घटनाक्रम के चलते देश का मीडिया नीरव मोदी के घोटाले को भूलकर अब कार्ति चिदम्बरम के आरोप की चर्चा में ही मगन है। संभव है वर्तमान सरकार सीबीआई के द्वारा पी. चिदम्बरम से भी पूछताछ करवाए ताकि किसी बड़ी मछली को भी पकड़ा जा सके। संसद के बजट सत्र की दूसरी पारी का पूरा पहला सप्ताह हंगामे की भेट चढ़ चुका है। लोकसभा एवं राज्यसभा दोनों में कांग्रेस एवं कुछ अन्य दलों के सदस्य नीरव मोदी एवं मेहुल चौकसी के घोटालों को लेकर जब हंगामा करते हैं तो पी"ासीन पदाधिकारी दिन में सदन को कई-कई बार स्थगित करने के बाद अगले दिन के लिए स्थगित कर देती है। एक सप्ताह बीत चुका है लेकिन संसद के दोनों सदनों में अभी तक कोई कामकाज नहीं हो पाया है।
इसे विडंबना ही कहेंगे कि देश पर लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी वर्ष 2014 में हुए लोकसभा के चुनावों में अपने दल के उतने सदस्यों को भी नहीं जिता पाई जितने लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने के लिए आवश्यक होते हैं। भारत के संविधान के अनुसार लोकसभा में विपक्ष का नेता की मान्यता पाने के लिए कम से कम 54 सदस्यों की आवश्यकता होती है लेकिन वर्ष 2014 के चुनावों में कांग्रेस को लोकसभा के चुनावों में मात्र 44 सीटों पर ही जीत हासिल हो सकी जिसके चलते भाजपा सरकार ने कांग्रेस के संसदीय दल द्वारा चुने गए नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता नहीं दी। वास्तव में भाजपा का यह कदम भी लोकतंत्र के सिद्धांतों के सर्वथा पतिकूल है क्योंकि दो-चार सदस्यों की संख्या कम होने के बावजूद यदि सरकार चाहती तो खड़गे जी को विपक्ष के नेता का पद दे सकती थी लेकिन सरकार ने इतनी सदाशयता दिखाने की औपचारिकता भी नहीं दिखाई। इसके "ाrक विपरीत दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने 70 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा के मात्र तीन विधायकों के जीतने के बावजूद उनके निर्वाचित नेता विजेन्द्र गुप्ता को विपक्ष के नेता की मान्यता पदान कर दी। केंद्र की भाजपा सरकार यदि चाहती तो खड़गे जी को बड़ी आसानी से विपक्ष के नेता की मान्यता दे सकती थी लेकिन ऐसा न करके भाजपा ने लोकपाल के चयन की पक्रिया को भी बाधित कर दिया है क्योंकि लोकपाल का चयन करने वाली उच्च स्तरीय समिति में विपक्ष का नेता भी एक माननीय सदस्य होता है। सर्वोच्च न्यायालय ने जब मोदी सरकार पर लोकपाल की नियुक्ति को लेकर दबाव डाला तो केंद्रीय सरकार ने मजबूर होकर लोकपाल के चयन के लिए एक बै"क की तिथि भी तय कर ली लेकिन विपक्ष के नेता की मान्यता न होने के कारण श्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने उस बै"क का बहिष्कार कर दिया जिसके चलते लोकपाल का चयन पुनः रुक गया है।
पांच वर्षों के लिए चुनी गई मोदी सरकार ने चार वर्ष पूरे कर लिए हैं लेकिन जिस लोकपाल के लिए अन्ना हजारे ने इतना बड़ा आंदोलन खड़ा किया था और भाजपा उस आंदोलन की समर्थक बनी रही लेकिन उसी लोकपाल की नियुक्ति के समय चार-पांच सांसदों की कमी के चलते खड़गे जी को चयन समिति की बै"क में भाग लेने से वंचित कर दिया गया।
हो सकता है कि कांग्रेस भी अपने शासन के समय विपक्ष को इस तरह से परेशान करती रही हो लेकिन वर्तमान शासन में कमजोर हुई कांग्रेस की स्थिति इस लेख के शीर्षक वाली सूक्ति के अनुसार बकरे की सी हो गई है जिसे भाजपा बार-बार बलि पर चढ़ा रही है।
(लेखक लोकसभा के पूर्व सांसद हैं।)

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