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अजमेर शरीफ की चादर से जिन्ना की तस्वीर तक

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:16 May 2018 2:43 PM GMT
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बसंत कुमार

हाल ही में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के कार्यालय में लगे पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के चित्र को हटाए जाने की मांग और उसे न हटाए जाने की जिद तथा इसके पक्ष और विपक्ष में अनेक राजनेताओं, स्वयंभू हिन्दुवाहिनी के नेताओं के अनर्गल बयानों से उत्पन्न विवाद ने स्थिति को अत्यंत ही तनावपूर्ण बना दिया है। इस मांग के पक्ष में हिन्दू जागरण मंच ने जिस प्रकार पथराव, गोलाबारी करते हुए जैसा उग्र प्रदर्शन किया है वह अनुचित, अनावश्यक व हिन्दू संस्कृति के वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत के सर्वथा विपरीत है। यह सही है कि जिन्ना ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में काफी अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आजादी के साथ-साथ उन्होंने अपने मुसलमान भाइयों के कल्याण को भी उतना ही महत्व दिया और देश का सांप्रदायिक विभाजन करवा दिया। परिणामस्वरूप लाखों परिवार विस्थापित हुए और लगभग 10 लाख से अधिक हिन्दू मुसलमान मारे गए। लेकिन क्या जिन्ना ही इस देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार थे। नहीं इसके लिए ब्रिटिश हुकूमत और कांग्रेस, दोनों ही जिम्मेदार थे। वैसे साइमन कमीशन के विषय में सोचा जाए तो पता चलता है कि अंग्रेज दलितों के लिए एक अलग देश चाहते थे परन्तु महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव अम्बेडकर की सूझबूझ से अंग्रेजों की यह चाल नाकाम रही और दलितों के हित के लिए पूना पैक्ट हुआ परन्तु हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद के ये झंडाबरदार अम्बेडकर की मूर्तियां तोड़ने से भी परहेज नहीं करते। यह सही है कि एक समय जिन्ना सेक्यूलर मूल्यों में यकीन करते थे और खुद को हिन्दू-मुस्लिम का साक्षा प्रतिनिधि कहलाना पसंद करते थे परन्तु यह भी सच है कि बाद के समय में वह घोर सांप्रदायिक और मजहबी के नेता में तब्दील हो गए। उनकी फोटो लगाने के पीछे की कहानी यह है कि एएमयू छात्रसंघ ने 1938 में उन्हें मानद सदस्यता प्रदान की। लगभग 80 वर्षों के पश्चात इतिहास के गड़े मुर्दों का उखाड़ कर हमारे देश और समाज का भारी नुकसान होगा। जिन्ना एएमयू के संस्थापक सदस्य थे और इस पर अचानक इतना बवाल क्यों मचाया जा रहा है। यदि लोगों को इस तस्वीर पर आपत्ति है तो देश में ऐसे सैकड़ों स्मारक, मूर्तियां और तस्वीरें मौजूद हैं। इसमें से अधिकांश मुस्लिम और अंग्रेज शासकों की हैं। इस प्रकार ऐतिहासिक और पुरामहत्व के चिन्हों-प्रतीकों को हटाने के पश्चात इतिहास में बाकी कुछ नहीं रहेगा और समूचा इतिहास ही विकृत हो जाएगा।
यदि भारतीय संस्कृति के इतिहास पर नजर डालें तो भारत एक ऐसा खूबसूरत गुलदस्ता है जहां हिन्दू-मुसलमान पारस्परिक सौहार्द के साथ रहते हैं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद खां के अनुसार हिन्दू और मुसलमान हिन्दुस्तान नामी दुल्हन की दो खूबसूरत आंखें हैं। इसी प्रकार अल्लामा इकबाल ने भगवान श्रीराम के विषय में यह बात कही थी `है राम के वजूद पे हिन्तोस्तां को नाज/अहले नजर समझते हैं उसको इमामे हिन्द।' बांग्लादेश के मुसलमान दुर्गा पूजा में भाग लेते हैं तो हिन्दू ईद मनाते हैं। मलेशिया में जब रामायण का मंचन होता है तो उसे हिन्दू-मुसलमान एक साथ देखते हैं। नवाब दरगाह कुली बहादुर ने अपनी किताब मुरक्का-ए-दिल्ली में लिखा है शहंशाह सिर्प गंगा जल पीते थे। यदि वे ईद मनाते थे तो होली, दीवाली और दशहरें में न केवल भाग लेते थे बल्कि अपने हिन्दू अफसरों के लिए विशेष पूजा का आयोजन करते थे। मिर्जा संगीन बेग ने अपनी पुस्तक सैर-उल-मनाजिल में लिखा है कि होली पर बहादुरशाह जफर लाल किले की पिछली दीवार के ऊपर बैठा करते थे और होली की ठिठोलियों का आयोजन करते व सबसे अधिक हंसाने वाली होली को इनाम देते थे। पुरानी दिल्ली वाले रायबहादुर सेठ छन्ना मल ने अंग्रेजों के कब्जे से शाहजहानी फतेहपुरी मस्जिद को 39 हजार रुपए देकर अपने मुस्लिम भाइयों के लिए उन्हें वापस दिलाया था।
यह ठीक है कि मुगल भारत में आक्रांता थे परन्तु उनके वंशज भारत की संस्कृति में घुलमिल गए और हिन्दू-मुसलमान मिलजुल कर साथ रहने लगे और एक-दूसरे के त्यौहार को हर्षोल्लास से मनाने लगे। हिन्दू संस्कृति को समझने के लिए ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती जिन्हें गरीब नवाज भी कहा जाता है, के विषय में जानना आवश्यक है। गरीब नवाज का जन्म 1141 में अफगानिस्तान में हुआ। वे मोहम्मद गौरी के साथ भारत आए थे। पहले वे दिल्ली के पास आकर रुके और फिर अजमेर जाते समय उन्होंने करीब 700 हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित किया। ख्वाजा का स्मरण करते हुए हजरत निजामुद्दीन औलिया ने लिखा है `न चाहते हुए भी ख्वाजा की चमत्कारी शक्तियों के कारण पृथ्वीराज चौहान को ख्वाजा का अजमेर में रहना स्वीकार करना पड़ा। ख्वाजा के एक खादिम से पृथ्वीराज चौहान किसी कारणवश नाराज हो गए तब ख्वाजा ने पृथ्वीराज से उस पर क्षमा बनाए रखने के लिए कहा परन्तु पृथ्वीराज चौहान इसके लिए नहीं मानें और उन्होंने मना कर दिया। इस पर ख्वाजा ने भविष्यवाणी की कि जल्द ही पृथ्वीराज को पकड़कर इस्लामी सेना के हवाले कर दिया जाएगा और इसके कुछ समय बाद ही मोहम्मद गौरी ने आक्रमण कर दिया और तराइन के युद्ध में पृथ्वीराज के राज का अंत कर दिया।' (R. Aस्ग्r ख्प्ल्ward एग्ब्arल्aल्त्ग्a अत्प्ग् 1885 झ्झ्-45-46) और इस प्रकार से भारत से हिन्दू वैदिक का राज्य सदा के लिए समाप्त हो गया और गुलाम वंश की स्थापना हुई। यह सब जानने के पश्चात भी हजारों हिन्दू अजमेर शरीफ जाकर ख्वाजा की मजार पर चादर चढ़ाते हैं। जो सूफी मुसलमान हजारों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों पर अत्याचार करते रहे हम उनकी मजारों पर जाकर अपनी मन्नतें पूरी होने और देश में अमन-चैन बना रहे की दुआ मांगते हैं। ऐसा इसलिए है कि हिन्दू संस्कृति आदिकाल से ही समावेशी रही है जो भी धर्म मानने वाले भारत में आए वे भारतीय संस्कृति में समाहित हो गए। यही कारण है कि ख्वाजा के विषय में इतना सब जानने के पश्चात भी लाखों हिन्दू उनकी मजार (अजमेर शरीफ) जाते हैं। हिन्दुओं के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान मां वैष्णों देवी के मंदिर स्थल पर हजारों मुसलमान अपना व्यवसाय करते हैं। अपाहिज सवारियों को मां के दरबार पर पहुंचाने वाले पिट्ठू अधिकांश मुस्लिम समुदाय से हैं। इसी प्रकार बाबा बर्फानी की अमरनाथ गुफा को एक मुसलमान चरवाहे ने देखा और वहां की कमाई का कुछ हिस्सा उस मुस्लिम परिवार को मिलता है।
प्रश्न यह उठता है कि जब हम ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती, हजरत निजामुद्दीन औलिया को इतनी श्रद्धा के साथ स्वीकार कर रहे हैं तो मोहम्मद अली जिन्ना की 80 वर्ष पुरानी फोटों पर इतनी किच-किच क्यों। ऐसा ही रहा तो हमें लाल किला, ताज महल, कुतुब मीनार आदि सभी ऐतिहासिक इमारतों को गिराना होगा। अंग्रेजों के बनाए गए पार्लियामेंट, राष्ट्रपति भवन जो गुलामी के प्रतीक हैं से मुक्ति पानी होगी। लेकिन हिन्दुत्व के ये स्वयंभू सिपाही देश की गंगा-जमुनी संस्कृति को विनष्ट करने में लगे हैं। अभी हाल में खैर कस्बे के पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस से एएमयू के संस्थापक सर सैयद अहमद खां की तस्वीर हटाकर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर लगा दी गई। यह तस्वीर किसके आदेश पर बदली गई इस पर कोई अधिकारी बोलने को तैयार नहीं है। कुछ लोग ऐसी हरकतों के द्वारा हिन्दुस्तान की साझा विरासत को समाप्त कर रहे हैं। जब देश का सामाजिक सौहार्द सरकार की प्राथमिकता है।
देश में सांप्रदायिक सौहार्द बना रहे इसके लिए संघ एवं प्रधानमंत्री सदा प्रयत्नशील रहते हैं। इसी कड़ी में अमन और शांति के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री श्री मुख्तार अब्बास नकवी के द्वारा अजमेर शरीफ में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की मजार पर चादर चढ़ाई परन्तु स्वयं को हिन्दुओं का नेता कहे जाने वाले कुछ नेता लगभग आठ दशक पूर्व लगी मोहम्मद अली जिन्ना की फोटो हटवा कर देश और सरकार की छवि खराब करना चाहते हैं। लेकिन हमारी साझा विरासत की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इन सांप्रदायिक लोगों को अपने प्रयास में सफलता नहीं मिलेगी।
(लेखक राष्ट्रवादी चिन्तक व एक पहल नामक एनजीओ के राष्ट्रीय महासचिव हैं।)

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