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भारत में जिन्ना भक्तों की मौज क्यों
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राजनाथ सिंह `सूर्य'
दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश होगा जिसके सब या कुछ बाशिंदे अपने ऊपर आक्रमणकारी लुटेरों, अपहरणकर्ताओं के पति निष्"ावान हों भारत को छोड़कर। भारत में लुटेरों, अपहरणकर्ताओं की सत्ता के दौरान उनके इरादों और कृत्यों के पति अनुरक्ति यदि कुछ लोगों में रहे तो उसे उनकी विवशता माना जा सकता है, लेकिन एक सार्वभौमिक सर्वसत्ता सम्पन्न नागरिक भावना के आधार पर निर्मित एक संविधानयुक्त गणराज्य में यदि कोई ऐसे तत्वों के पति निष्"ा रखता है जो उसकी संस्कृति, परंपरा और पूर्वजों के पति हेय भावना रखता हो, उसकी देश बाह्य सत्ता के पति अनुकूलता हो तो क्या उसे विदेशी सत्ता को अत्याचारी आचरण के समान बर्दाश्त किया जाना चाहिए। हमारे देश में उदारवादिता का मुखौटा लगाए कट्टर रूढ़िवादियों का देश विरोधी हरकतों को नजरंदाज कर दिए जाने का आह्वान करने वालों की भी एक जमात है जो देश को खंडित करने वालों की अभिव्यक्ति, दूसरे शत्रु देशों की जय जयकार, सामाजिक विशमता को बढ़ावा देने वालों को नजरंदाज, शांति व्यवस्था को भंग करने के लिए हथियार उ"ाने वालों के पति उदार रहने की पैरवी करते हुए अपने आपको मानवाधिकारवादी आवरण में छिपाकर तोड़फोड़ को पोत्साहित करने वाले बौद्धिक जगत में अपनी शासकीय अनुकूलता का लाभ उ"ाकर अय्याशी का जीवन बिताते हुए समाज को दिशा देने वालों की श्रेणी में खड़े रहना चाहते हैं। ऐसे मानवाधिकारवादी जो वस्तुतः धिक्कारवादी हैं, अपनी वाचालता के सहारे समाज में एकता और समरसता के पयास को हेय बताकर जातीय या सांप्रदायिक अथवा क्षेत्रीय भावनाओं को उभारते रहते हैं।
दुर्भाग्य से हमारे देश की आजादी के लिए अंग्रेजों के हस्तक बनकर जिन लोगों ने स्वयं संग्राम से अंग्रेजों के खिलाफ मुखरित करने तक के लिए अपने को पस्तुत किया था, वे देश बाह्य निष्"ा के पभाव में आजादी के बाद भारतीयत्व को हीनतायुक्त साबित .करने के पयास से सत्ता की अनुकूलता से हावी हो गए लेकिन उनका मुखौटा उतरता गया। देश के अवाम ने उनको पहचान लिया। विभाजक लुटेरे और भारतीयत्व को दीनत्व दर्शाने वालों ने अपने मुखौटे के भीतर छिपाए मुस्लिम मानसिकता को नए रूप में उजागर करना शुरू कर दिया जिसको सेक्युलरिज्म का नाम दिया गया। इस नए मुखौटे के पीछे देशहित विरोधी आचरण, लूट, भ्रष्टाचार, कुशासन को छिपाने के पयास का भी पर्दाफास हो गया। अब उनका भरोसा बिखराववादियों को बढ़ावा देने के लिए विकृत मानसिकता को उभारने में हो गया है। इसलिए चाहे पानी हो या सीमा, जातीय वर्गीकरण इन संवर्गों, संविधान के मूल मंत्र एक देश एक जन के लिए अनुकूल सबका साथ सबका विकास की उभारती भावनों को अपमानी बनाने के लिए विस्तार में इसी पकार बोलना शुरू कर दिया है। जैसे गांवों में खाफ होते हैं। एक जानवर ऐसा भी है जिसकी बोली के पीछे नगर के सभी हुआं-हुआं करने लगते हैं।
भारत की अस्मिता को चोट पहुंचाने की हरकतों को बर्दाश्त करते रहने की विवशता कब तक बनी रहेगी और इस विवशता की जकड़न को बनाए रखने की दुश्वारियों को कब तक उदारता के नाम पर छुट्टा छोड़ा जाता रहेगा। पोषित आस्था के उत्सवों देश के पति निष्"ा के पतीक गायन वंदेमातरम् को सांप्रदायिक गान बताने वालों को बर्दाश्त करने जाने का परिणाम यह हो रहा है कि अब देश में देश का सांप्रदायिक घृणा का उन्माद पैदाकर लाखों की हत्या करवाकर देश का बंटवारा कराने वाले मोहम्मद अली जिन्ना के पति निष्"ावान बने रहने का आग्रह 1947 के पूर्व के समान एक वर्ष में स्थायित्व पाप्त तथ्य के रूप में बने रहने पर तनाव बढ़ाने वाला घोषित करने वाला शोर भी सुनाई पड़ने लगा है। जिस जिन्ना ने भारत में अलग से मजहबी राज्य न बनाये जाने पर सीधी कार्यवाही की धमकी देकर पाकिस्तान बनवाया, उसकी याद को स्थायी आदर्श बनाए रखने के लिए महात्मा गांधी एवं अन्य महापुरुषों के चित्रों के बीच में स्थापित रखने का क्या औचित्य है?
कहा यह जाता है कि चित्र 1936 में तब लगाया गया था जब उन्हें छात्रसंघ की मानद सदस्यता पदान की गई थी और क्योंकि यह पाकिस्तान बनने के पहले लगाया गया था, इसलिए उसे हटाने का कोई औचित्य नहीं है। अब तक जब इसको किसी ने आग्रह नहीं किया हो, अब क्यों किया जा रहा है। अंग्रेज यह पूछ सकता था कि वर्ष 1885 में कांग्रेस ने जब स्वराज्य की मांग नहीं की थी तो 1930 में पूर्ण स्वराज्य की मांग उ"ाने का क्या औचित्य है। जिन्ना भारत के एक जन एक देश का हमारी संवैधानिक मान्यता को खंडित करने वाला व्यक्ति था, उसके पति जो निष्"ावान हैं, वे 1947 के पूर्व की लीगी मानसिकता के पतीक हैं जो आरक्षण की मांग में पृथप् मतदान तक का आग्रही बनकर उभर रहा है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद शाह जो द्विराष्ट्रवाद सिद्धांत पणेता, पोषक और अंग्रेजी सत्ता से तादात्म्य बनाकर रखने के लिए सदैव आग्रही रहे हैं। उनकी भावना को हिंसात्मक तरीका अपनाकर मोहम्मद अली जिन्ना ने देश के विभाजन को उन लोगों की सहायता से अंजाम दिया था, जिनकी सत्ता बहुमत में आज भी भारत में ही रह रही हैं। उनमें एक देश एक जन जैसी सर्व समावेशी भावना की अभिव्यक्ति होने का दावा निरंतर खोखला साबित होने के बावजूद उसे इनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं मजहबीह" की स्वीकारोक्ति की आड़ में एक और विभाजन की राह पर चल पड़ा है। इस राह को पकड़ने वाले पहले इस्लामी आक्रमणकारी मोहम्मद बिन कासिम जिसने सिंध के राजा दाहिर की बेटियों अपहरण किया था, से लेकर अहमद शाह अब्दाली तक को जिसने लाखों हिन्दुओं की हत्या करायी,अपना आदर्श मानते हैं।
महमूद गजनवी, मोहम्मद गोरी, अलाउद्दीन खिलजी, औरंगजेब, नादिर शाह के पति निष्"ावान तो बने ही हैं। पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाते हैं और उसके पक्ष में खड़े होकर न केवल भारतीय सैनिकों पर पत्थर मारते हैं, बल्कि देश के बाहर चल रहे इस्लामी सत्ता की विश्वव्यापी स्थापना के लिए आतंकी बनकर हत्याओं को अंजाम देने वाले गिरोह में शामिल होना गौरव की बात समझते हैं। आजादी के पूर्व दंगे में बम विस्फोट, अपहरण कर धर्म परिवर्तन को अंजाम देने वालों की ऐसी जमात खड़ा कर रहे हैं, जो पृथप्तावादी मानसिकता को बढ़ावा दे रहा है। आम धारणा है कि यह भावना मुल्ला फैला रहे हैं लेकिन अलीगढ़ विश्वविद्यालय जैसी आधुनिकतायुक्त विक्षिप्त लोगों का जो लगाव जिन्ना के जिन्न को लेकर पगट हुआ जिसकी अभिव्यक्ति जामिया मीलिया के वाइस चांसलर तक ने की है। इस बात का सबूत है कि इस देश में पाकिस्तानी भावनायुक्त निष्"ा का व्याप्त संवैधानिक समानता की व्यवस्था के बावजूद तिरोहित .नहीं हुआ। सेक्युरिज्म के मुखौटे लगाकर जो हर पकार का विभाजन, भ्रष्टाचार, और दुराचार के पोषक हैं वे सभी ऐसे तत्वों के साथ खड़े दिखाई पड़ते हैं। स्वराज्य लाने के लिए इन तत्वों से आर-पार की लोकतांत्रिक लड़ाई को सैनिक बनने की नितांत आवश्यकता है। आजादी के लिए जो जद्दोजहद हुई थी उससे भी यही अधिक भारतीयता के पति आग्रह को नकारने वाले ही जिन्ना को संरक्षण पदान कर रहे हैं।
इन संस्थाओं को पहचान कर उनको उनकी औकात पर लाने की सबसे ज्यादा जरूरत है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों और अध्यापकों ने जिन्ना के चित्र पर औचित्य-अनौचित्य की बहस को पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी पर हमले की साजिशों में का जो पयास किया है, वह मूल मुद्दे से ध्यान बंटाने का पहला पयास नहीं है। यदि हम सिंहावलोकन करें तो सेक्युलरिज्म का मुखौटा लगाए लोगों ने सदैव ऐसे ही मूल मुद्दे से भटकाकर विभ्रम पैदा करने का पयास किया है।
(लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं।)
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