Home » द्रष्टीकोण » भारतीय संस्कृति का पतीक है देश की पहली मस्जिद

भारतीय संस्कृति का पतीक है देश की पहली मस्जिद

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:20 May 2018 3:00 PM GMT
Share Post

तनवीर जाफरी

भारतवर्ष के सत्तालोभी चतुर राजनीतिज्ञों द्वारा भारतीय समाज को हिंदू-मुस्लिम व मंदिर-मस्जिद के नाम पर विभाजित कर सत्ता शक्ति पाप्त की जा रही है। देश में कई जगह इस पकार के विवादों की खबर आती रहती है। पिछले दिनों तो कुछ मनचले तथाकथित स्वयंभू हिंदुत्ववादी नवयुवकों द्वारा कुछ ऐसी हरकतें की गईं जिससे भारतवर्ष के धर्मनिरपेक्ष स्वभाव तथा हमारे देश के संविधान की मूल भावना को काफी गहरा आघात पहुंचा। मुट्ठीभर लोगों द्वारा उत्तर पदेश व हरियाणा में कुछ स्थानों पर शुकवार की सामूहिक नमाज अदा करने वाले सैकड़ों नमाजियों को कुछ गिने-चुने असामाजिक तत्वों द्वारा नमाज पढ़ने से रोक दिया गया तथा उन्हें अन्यत्र जाकर नमाज पढ़ने को कहा गया। ऐसी घटनाओं में काबिल-ए-तारीफ बात यह रही कि नमाजियों द्वारा उन उत्पाती युवकों के साथ किसी तरह के टकराव की स्थिति नहीं पैदा की गई। अन्यथा इन जगहों पर सांपदायिक तनाव फैल सकता था। बहरहाल इस घटना के बाद ऐसे युवकों की हौसला अफजाई करने वाले कई बयान सत्ताधारी नेताओं की ओर से दिए गए। किसी ने कहा कि नमाज पढ़ने की जगह मस्जिद में है तो किसी ने अपना उपदेश इन शब्दों में दिया कि जमीन पर कब्जा करने की गरज से नमाज पढ़ना ठीक नहीं तो किसी ने नमाजियों को बंगलादेशी नागरिक बता कर मामले को दूसरा मोड़ देने का पयास किया।
बहरहाल उपरोक्त संदर्भ में कुछ बातें समझना बहुत जरूरी हैं। सर्वपथम तो निश्चित रूप से नमाज केवल मस्जिदों में ही अदा की जानी चाहिए और अपनी इबादत के लिए मस्जिद का पबंध करने की जि मेदारी मुसलमानों की ही है। दूसरी बात यह कि लगभग पूरे देश में जहां-जहां अधिक मुस्लिम आबादी रहती है ऐसी जगहों पर खासतौर पर पत्येक शुकवार को यह देखा जाता है कि मुस्लिम समाज मस्जिद में जगह भर जाने के बाद सड़कों पर अपना मुसल्ला बिछा देता है।
अब यह बताने की जरूरत नहीं कि वह सड़क या गली नमाज पढ़ने के एतबार से कितनी पाक-ओ-पाकीजा रहती है और सोने पर सुहागा यह कि नमाज पढ़ते समय अकसर नमाजी अपनी सजदा करने की जगह के सामने ही चोरी हो जाने के भय से अपना जूता-चप्पल भी संभाले रखते हैं। साफ जाहिर होता है कि ऐसे नमाजियों को अपने जूते की ज्यादा फिक रहती है नमाज और सजदे की गरिमा और उसकी इस्मत व मर्यादा की कम। इस संदर्भ में यह बात भी साफ है कि सड़कों व गलियों में नमाजियों का मुसल्ला बिछने के बाद राहगीरों को बेहद परेशानी का सामना करना पड़ता है। तमाम दुकानदारों की दुकानदारी उतनी देर चौपट रहती है। राहगीर रास्ता नहीं चल पाते, स्कूल की छुट्टी होने पर बच्चों को उधर से निकलने में परेशानी उठानी पड़ती है। मैं नहीं समझता कि दूसरों को तकलीफ देकर या दूसरों के दिलों की बददुओं लेकर की गई इबादत को खुदा कुबूल करता होगा। इस पकार की आपत्ति के उत्तर में यह कहना कि हिंदुओं या अन्य गैर मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा सड़कों पर जागरण किए जाते हैं या शोभा यात्रा निकाली जाती है या पुंभ, महापुंभ व अनेक स्नान व पर्व के नाम पर सड़कों व पार्कों आदि का इस्तेमाल किया जाता है तो इस पकार के तर्प भी कुतर्प ही कहे जाएंगे। क्योंकि बुराई तो बुराई ही है। किसी बुराई का जवाब दूसरी बुराई से नहीं दिया जा सकता। हां यदि इस पकार के सवाल-जवाब में उलझने की कोशिश की गई तो साजिश कर्ताओं को सफलता जरूर मिलेगी।
रहा सवाल यह कि जिन राजनीतिज्ञों ने नमाजियों को गुरुग्राम में नमाज पढ़ने से रोकने वालों की हौसला अफजाई की है उन्हें न तो भारतीय संस्कृति का पतिनिधि समझा जा सकता है न ही वे हिंदुत्व की वास्तविक भावनाओं की नुमाइंदगी करते हैं। शायद उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं कि भारत में लगभग साढ़े चौदह सौ वर्ष पूर्व अर्थात पैगंबर हजरत मोह मद के जीवनकाल में ही निर्मित की गई पहली मस्जिद जो केरल के त्रिशूर जिले के कोडुंगलूर क्षेत्र में बनाई गई थी यह मस्जिद न तो किसी मुस्लिम पूंजीपति ने बनाई थी न ही इसके लिए अरब से पैसा भेजा गया था और न ही इसके लिए मुसलमानों ने चंदा इकट्ठा किया था बल्कि इस मस्जिद का निर्माण केरल के तत्कालीन हिंदू राजा चेरामन पेरूमल ने स्वयं करवाया था। इस मस्जिद का निर्माण इसलिए कराया गया था ताकि अरब से समुद्री रास्ते से मालाबार आने वाले मसाला व्यापारी जब केरल ओं तो उन्हें नमाज पढ़ने के लिए कोई परेशानी न उठानी पड़े। आज भी राष्ट्रीय धरोहर के रूप में यह मस्जिद हिंदू-मुस्लिम एकता की कहानी बयान करती है। इस मस्जिद में हिंदू व मुस्लिम सभी धर्म के लोग आते हैं तथा यहां से शिक्षा भी ग्रहण करते हैं। इसी मस्जिद की स्वर्ण अलंकृत पतिकृति भारतीय पधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सऊदी अरब के शाह सलमान बिन अब्दुल अजीज को भेंट कर बड़े गर्व से यह समझाने का पयास किया कि भारत में हिंदू-मुस्लिम कितने भाईचारे से रहते हैं।
हमारे देश में मुंबई जैसे महानगर से कई बार ऐसी खबरें मिल चुकी हैं जिससे यह पता चला कि कभी मस्जिद में जगह भर जाने की वजह से तो कभी बारिश के चलते गणेश पतिमा के पूजा पंडाल में स्थानीय हिंदू भाईयों ने मुसलमानों को आमंत्रित कर नमाज पढ़ने का आग्रह किया। और सैकड़ों मुसलमानों ने गणेश पतिमा के समक्ष अपनी नमाज अदा की। पिछले दिनों पंजाब से एक ऐसी ही खबर सुनाई दी कि एक गांव में जहां गुरुद्वारा तथा मंदिर तो मौजूद थे परंतु मस्जिद नहीं थी। मस्जिद न होने की वजह यह थी कि उस गांव में मुसलमानों की संख्या सबसे कम भी थी और वे गरीब भी थे। ऐसे में गांव के हिंदुओं व सिखों न मिल कर उन्हें न केवल मस्जिद बनाने के लिए जमीन मुहैया कराई बल्कि मस्जिद की इमारत हेतु सामग्री भी खरीद कर दी। हमारे देश में हजारों ऐसी मिसालें मौजूद हैं जो हमें यह बताती हैं कि कहां-कहां मुस्लिम नवाबों, जागीरदारों व जमींदारों ने मंदिरों व गुरुद्वारों के लिए जमीन व धन-दौलत मुहैया कराया। यहां तक कि अयोध्या में हनुमानगढ़ी सहित कई ऐसे पाचीन मंदिर हैं जिन्हें मुस्लिम शासकों ने जमीनें भी दीं और धन-दौलत भी दिया। इसी पकार देश में हजारों ऐसी मस्जिदें, दरगाहें व इबादतगाहें हैं जो हिंदू राजाओं,जागीरदारों तथा धनवान लोगों द्वारा बनाई गई हैं। मोहर्रम के आयोजन से देश के लाखों हिंदू परिवार पूरी श्रद्धा के साथ जुड़े होते हैं।
सत्ता के नशे में चूर राजनेताओं ने चाहे बहुसंख्यवाद की राजनीति कर या फिर अल्पसंख्यकों को खुश करने की होड़ में देश के पाचीन सद्भावपूर्ण सामाजिक तान-बाने को भले ही बिगाड़ कर क्यों न रख दिया हो परंतु हमारा देश व देशवासियों का वास्तविक स्वभाव व उनके पाचीन संस्कार कल भी मुस्लिम कवि रहीम, रसखान व जायसी के रूप में हिंदू देवी-देवताओं का गुणगान कर रहे थे तो आज भी देश का हिंदू समाज उत्तर भारत की अधिकांश दरगाहों व खानकाहों पर पूरी श्रद्धा व भक्ति के साथ हाजिरी लगा कर अपने गौरवशाली धर्मनिरपेक्ष भारतीय नागरिक होने का पमाण पस्तुत करता है। आज भी देश की अधिकांश मस्जिदों में हिंदू व मुसलमान अपने बीमार बच्चों को लेकर नमाज के बाद दुओं लेने के लिए मस्जिदों की सीढ़ियों पर लाइन लगाकर बैठे दिखाई देते हैं। हरियाणा व पंजाब में तो पीरों-फकीरों की अनेक दरगाहें ऐसी हैं जहां के गद्दीनशीन व सेवादार सभी गैर मुस्लिम हैं। ऐसे में समाज को विभाजित करने वाले चंद नेताओं या मुट्ठीभर उपद्रवी लोगों की परवाह कतई नहीं की जानी चाहिए। भले ही पूरे देश की सत्ता ऐसे लोगों के हाथों में क्यों न चली जाए परंतु जनता का वास्तविक व पारंपरिक स्वभाव एक-दूसरे के धर्मों, धर्मस्थानों व उनकी आस्थाओं को पूरा मान-सम्मान देने का पहले भी था और भविष्य में भी ऐसा ही बना रहेगा।

Share it
Top