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ट्रेनें चलाने के लिए इमरजेंसी चाहिए?

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:6 July 2018 3:22 PM GMT
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श्याम कुमार

हमारा देश विचित्रताओं का देश है। यहां भगवान राम पूजे जाते हैं तो रावण के भक्त भी मिल जाया करते हैं। यही कारण है कि गोस्वामी तुलसीदास ने वंदनीयों का नमन करने के साथ खल (दुष्ट) को भी नमन किया। भारतीय संस्कृति में तर्प की पधानता रही है, लेकिन ऐसा पतीत होने लगा है कि पाश्चात्य रंग में रंगने से तर्प का स्थान कुतर्प लेता जा रहा है। सोशल नेटवर्पिंग साइट फेसबुक पर ऐसी-ऐसी बेसिरपैर की पोस्टें देखने को मिलती हैं कि आश्चर्य होता है कि हमारे यहां कंस और रावण के दुष्कर्मों को पूरी तरह भूलकर उनकी भक्ति करने वाले विचरण कर रहे हैं। बिल्कुल यही बात गत दिवस उस समय मिली, जब इमरजेंसी का पक्ष लेने वाले भी मुखर दिखाई दिए। उनकी बातें पढ़कर ऐसा आभास होता है, जैसे उन्होंने बुद्धि का कपाट बंद कर लिया है। इमरजेंसी का गुणगान करने वाले इन लोगों में अधिकांशतः वे फर्जी सेकुलरिये हैं, जिनमें कांग्रेसी, कम्युनिस्ट आदि पजातियां शामिल हैं। कांग्रेसियों का एकसूत्री कार्यक्रम नेहरू वंश की गुलामी होता है, इसलिए इमरजेंसी का गुणगान करना उनके लिए स्वाभाविक है।

तथ्य यह है कि भ्रष्टाचार के आरोप में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी का रायबरेली से लोकसभा का चुनाव रद्द कर दिया था, जिससे उनकी पधानमंत्री की कुर्सी खतरे में पड़ गई थी। यदि इंदिरा गांधी के मन में सचमुच जनता की सेवा की भावना होती तो वह सत्ता से बाहर रहकर भी तन्मयता से जनता की सेवा कर सकती थीं। लेकिन मोती लाल नेहरू से पगट हुआ नेहरू वंश चरित्र से पूरी तरह स्वार्थी, ढोंगी, कुटिल एवं सत्तालोलुप रहा है। अपने स्वार्थ के आगे उसने देशहित की हमेशा उपेक्षा की। जवाहर लाल नेहरू इसके ज्वलंत उदाहरण थे। इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता बचाने के लिए जितने कुकर्म हो सकते थे, सब किए। उन्होंने संविधान तक को तहस-नहस कर डाला तथा न्यायपालिका को अपनी गुलामी करने को विवश किया। पूरे देश को जेल बना दिया तथा अखबारों पर क"ाsर अंकुश लगाकर उन पर कहर ढाया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंट दिया। अखबारों में सिर्प इंदिरा सरकार का गुणगान छप सकता था। देश इतना अधिक आतंकित हो गया था कि लोग घरों के भीतर भी इंदिरा गांधी की आलोचना करने से डरते थे। तनिक भी शक होने पर पुलिस पकड़कर जेल में डाल देती थी। इंदिरा गांधी के आलोचकों को ऐसी-ऐसी यातनाएं दी गईं, जिनकी इस समय लोग कल्पना नहीं कर सकते हैं। एक जिलाधिकारी ने तो नाखून उखड़वा दिए थे। इमरजेंसी की वह पूरी गाथा पुराने लोग भूल चुके हैं तथा नई पीढ़ी को जानकारी नहीं है।

जो लोग आरोप लगा रहे हैं कि मोदी सरकार के शासनकाल में इमरजेंसी वाला वातावरण बना हुआ है, उनका यह आरोप इसी बात से झू" सिद्ध हो जाता है कि वे लोग पूरी स्वतंत्रता एवं स्वच्छंदता से इस पकार के मिथ्या एवं ऊटपटांग आरोप लगा रहे हैं, क्योंकि यदि इंदिरा गांधी की इमरजेंसी के समय वे ऐसे आरोप लगाते तो लखनऊ के रामसागर मिश्र आदि की तरह परलोक भेज दिए जाते। पप्पू, टीपू, केजरीवाल, कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद, दिग्विजय सिंह, मनीष तिवारी, रणदीप सुरजेवाला, गुलाम नबी आजाद, मणिशंकर अय्यर, मायावती आदि जैसे जहर उगलने वाले अनगिनत लोग उस इमरजेंसी में चूं तक नहीं कर सकते थे। आश्चर्य तब होता है, जब कुछ अवकाशपाप्त वरिष्" अधिकारी नेहरू वंश की स्तुति करते दिखाई देते हैं।

जवाहर लाल नेहरू का यशगान करने वाले ऐसे लोग तर्प देते हैं कि नेहरू ने भाखड़ा डैम बनवाया आदि-आदि। वे भूल जाते हैं कि नेहरू ने रूसी मॉडल अपनाकर देश की कितनी भीषण क्षति की। हमारे देश के गांव स्वावलंबी थे, जिन्हें नेहरू के रूसी मॉडल ने बरबाद कर दिया। नाथूराम गोडसे ने अपने स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि देशहित के मुद्दे को लेकर गांधीजी के शरीर की हत्या की थी। लेकिन जवाहर लाल नेहरू ने अपने स्वार्थ में गांधीजी के सिद्धांतों को कुचलकर नष्ट कर दिया और इस पकार गांधीजी की असली हत्या नेहरू ने की। जबकि गांधीजी की `ग्रामस्वराज' की अवधारणा से ही हमारे देश का वास्तविक कल्याण हो सकता था। विश्वशांति का नोबेल पुरस्कार पाने के लालच में नेहरू ने देश की सेना को इतना कमजोर कर दिया कि भारत को चीन से शर्मनाक पराजय झेलनी पड़ी।

इंदिरा गांधी की इमरजेंसी की स्तुति करने वाले `विद्वान' विशेष रूप से यह तर्प देते हैं कि इमरजेंसी में ट्रेनें समय से चलने लगीं थीं तथा लोग समय पर दफ्तर जाने लगे थे। यह विचित्र तर्प है। पहली बात तो यह कि इमरजेंसी से पहले यदि ट्रेनें समय से नहीं चलती थीं और लोग समय से दफ्तर नहीं जाते थे तो इसके लिए कौन जिम्मेदार था? आजादी के बाद से देश पर कांग्रेस ही तो राज कर रही थी और नेहरू वंश देश का कर्णधार बना हुआ था। जब देश आजाद हुआ था, उस समय देश में लोग चरित्रवान थे, आदर्श का अनुसरण करते थे, अनुशासनपिय थे तथा उनके जीवन में सच्चाई एवं ईमानदारी का जबरदस्त महत्व था। हमारे समाज के उन गुणों को नेहरू वंश के नेतृत्व में कांग्रेस ने ही तो अपनी भौतिकतावादी व हिन्दू-विरोधी नीतियों से खत्म किया। क्या ट्रेनें समय से चलाने एवं कार्यालयों में कर्मचारियों की समय से उपस्थिति होने के लिए नृशंस अत्याचारों की पतीक इमरजेंसी देश पर थोप दी जाए? शासन व पशासन अच्छी नीयत वाले इकबाल से चलता है। वैसे इकबाल का अभाव हो जाने से ही हमारा देश व समाज हर तरह की बुराइयों से ग्रस्त हो गया है। उत्तर पदेश में जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने थे तो शास्त्राr भवन (एनेक्सी) में रात दो-दो बजे तक बिजली जलती रहती थी और जबरदस्त कार्य-संस्कृति पैदा हो गई थी। लखनऊ के सचिवालय में जो कर्मचारी दिन में ग्यारह बजे कार्यालय पहुंचते थे और सायंकाल चार बजे भागने लगते थे, वे पातःकाल साढ़े नौ बजे दफ्तर पहुंचने लगे थे और पूरे समय तक निष्"ापूर्वक काम में जुटे रहते थे। लेकिन जब इकबाल की ओर ध्यान नहीं दिया गया और उसमें कमी आई तो पदेश के सरकारी कर्मचारियों की फिर पहले जैसी पवृत्ति हो गई।

वास्तविकता यह है कि इमरजेंसी के समय ट्रेनें मात्र एक-दो महीने ही समय से चली थीं, जिसके बाद उनका पुराना ढर्रा फिर शुरू हो गया था। सरकारी कर्मचारियों का अनुशासनपूर्ण आचरण भी मात्र एक-दो महीने ही रहा था, जिसके बाद पुनः पुराना रवैया हो गया था। डेढ़ साल की इमरजेंसी में बाद में भ्रष्टाचार को भी खुली छूट मिल गई थी तथा घूस की दरें कई गुना बढ़ गई थीं। कई वर्ष पूर्व नैनीताल में सूचना एवं पसारण मंत्रालय के गीत व नाट्य पभाग के सहायक निदेशक चौधरी ने मुझे इमरजेंसी के समय की एक रोचक घटना बताई थी। उस घटना के समय वह पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में तैनात थे। एक दिन केंद्र सरकार से उन्हें निर्देश मिला कि अन्य जगहों की भांति सिलीगुड़ी में भी इंदिरा गांधी के पचार में `टुब्लो' निकलवाएं। चौधरी ने सिलीगुड़ी के व्यवसायियों को बुलाकर इस आदेश का हवाला देते हुए `टुब्लो' निकालने के लिए कहा। वे व्यवसायी चुपचाप चले गए और अगले दिन पति व्यवसायी दस हजार रुपए के रूप में लाखों रुपए की धनराशि लेकर चौधरी के पास आए और उनसे कहा, `हम लोग टुब्लो का अर्थ नहीं जानते हैं, इसलिए ये रुपए लाए हैं, जिनसे आप ही टुब्लो निकलवा लीजिए।' `टुब्लो' का अर्थ झांकी वाली चौकियां था तथा इंदिरा सरकार के आदेश का आशय यह था कि देशभर में उनके पचार की झांकियां निकाली जाएं।

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