Home » द्रष्टीकोण » पतिस्पर्धा, चाटुकारिता की

पतिस्पर्धा, चाटुकारिता की

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:8 July 2018 4:45 PM GMT
Share Post

तनवीर जाफरी

संत कबीर जी फरमाते हैंö`निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाए। बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुखाए।। अर्थात जो हमारी निंदा करता है उसे अधिक से अधिक अपने पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बताकर हमारे स्वभाव को स्वच्छ करता है। क्या वर्तमान सत्ताधारी कबीरदास की इस वाणी को चरितार्थ कर रहे हैं? यदि हम अपने राजनैतिक व सामाजिक वातावरण में गंभीरता से नजर डालें तो हम यही देखेंगे कि आज के दौर में आलोचकों या सवाल करने वालों की नहीं बल्कि खुशामदपरस्तों व चाटुकारों की पौ बारह हुई पड़ी है। ऐसे चाटुकारों व खुशामदपरस्तों के समाज में जिन्हें पचलित भाषा में `चमचा' भी कहा जाता है, लगता है चाटुकारिता की पतिस्पर्धा-सी छिड़ गई है।

चाटुकारिता की इस पतिस्पर्धा में अपने आकाओं को खुश करने के लिए यह खुशामदपरस्त प्रवृत्ति के लोग कभी-कभी चमचागीरी की हदों को इतना पार कर जाते हैं कि उनके आका बजाय खुश होने के या उन्हें उसका राजनैतिक व सामाजिक लाभ मिलने के बजाय उलटे संकट का सामना करना पड़ता है। इन दिनों भारतीय जनता पार्टी में ही कई नेताओं के बीच चाटुकारिता की ऐसी पतिस्पर्धा मची है कि वे समझ ही नहीं पा रहे कि आखिर अपने आकाओं को किन शब्दों में, अपनी किन कारगुजारियों से या अपने किस पकार के बयानों से खुश रखा जाए।

जाहिर है खशामदपरस्ती की इस पराकाष्ठा का एकमात्र कारण उनका उज्जवल राजनैतिक भविष्य बनाए रखना ही होता है यानि वे जिस कुर्सी पर किसी खुशामदपरस्ती के माध्यम से या धर्म-जाति के समीकरणों के सदके में पहुंचे हैं वह बरकरार रहे। और यदि इसमें भी तरक्की हो जाए या और मलाईदार विभाग मिल जाए फिर तो सोने में सुहागा अन्यथा कम से कम खुशामदपरस्ती के बल पर पीछे खिसकने या अपनी कुर्सी गंवाने की नौबत तो न ही आने पाए। इस पतिस्पर्धा में इस समय वैसे तो कई लोग बराबर के पतिस्पर्धी बने हुए हैं परंतु यहां इनमें से कुछ नेताओं के नाम काबिल-ए-जिक हैं।

पायः भगवा रंग का लिबास धारण करने वाले केंद्रीय मंत्री मुख्तार अबास नकवी नेहरू-गांधी परिवार को तो अभद्र भाषा में कोसते ही रहते हैं। परंतु पिछले दिनों उन्होंने मोदी जी को खुश करने के लिए उनकी तुलना पंडित नेहरू से ऐसे शब्दों में की कि उन्होंने मोदी को नेहरू से बड़ा नेता बता डाला। नकवी ने फरमाया कि पधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकपियता तथा उनकी स्वीकार्यता पंडित नेहरू से भी अधिक है। परंतु नकवी साहब को नरेंद्र मोदी व पंडित नेहरू के पशंसकों की श्रेणी पर भी गौर करना चाहिए। उन्हें नेहरू की पत्येक धर्म-जाति, क्षेत्र व समाज में उनकी स्वीकार्यता को भी महसूस करना चाहिए। नरेंद्र मोदी बेशक देश के निर्वाचित पधानमंत्री हैं। परंतु यह भी सच है कि वे एक हिंदूवादी सोच रखने वाले तथा हिंदुत्ववाद के समर्थकों के स्वीकार्य व आदर्श नेता हैं जबकि पंडित नेहरू धर्मनिरपेक्ष भारतवर्ष में धर्मनिरपेक्ष सोच रखने वाले समग्र भारतवासियों के सर्वस्वीकार्य नेता थे। परंतु ऐसा वक्तव्य देकर नकवी ने नेहरू की शान तो कम नहीं की हां खुशामदपरस्ती की अपनी पराकाष्ठा से जरूर अवगत करा दिया।

इसी पकार पिछले दिनों एक खबर यह आई कि उत्तर पदेश में मदरसों के बच्चे अब कुर्ता-पायजामा नहीं बल्कि पैंट-शर्ट पहनेंगे। वास्तव में इस पकार के निर्देश न तो दिल्ली से जारी किए गए थे न ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ऐसी कोई मंशा थी। इसके बावजूद उत्तर पदेश के अल्पसंख्यक विभाग के राज्यमंत्री मोहसिन रजा के हवाले से इस आशय के समाचार पकाशित हुए। मंत्री महोदय के मुताबिक `मदरसों में आमतौर पर बच्चे कुर्ता-पायजामा और खासतौर पर ऊंचे पायजामे पहनकर आते हैं जिससे उनकी पहचान एक धर्म विशेष से होती है।

लिहाजा छात्रों के मध्य इसे समाप्त किया जाना जरूरी है।' इसके पूर्व पदेश के मदरसों में लागू सिलेबस में बदलाव करते हुए एनसीईआरटी की पुस्तकों को भी अनिवार्य किया गया था। मोहसिन रजा के ड्रेस संबंधी इस विवादित बयान के बाद न केवल उत्तर पदेश के तमाम मुस्लिम धर्मगुरुओं द्वारा मोहसिन रजा की इस मंशा के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया गया बल्कि अल्पसंख्यक कल्याण एवं हज विभाग के कैबिनेट मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण ने मोहसिन रजा के बयान का खंडन करते हुए यह भी कहा कि उत्तर पदेश सरकार द्वारा मदरसों में ड्रेस संबंधी कोई नया कोड लागू करने का कोई इरादा नहीं है। बल्कि उन्होंने यह भी कहा कि ड्रेस संबंधी बयान उनके जूनियर मंत्री मोहसिन रजा की व्यक्तिगत राय पर आधारित हो सकता है। खबरों के मुताबिक मंत्री लक्ष्मी नारायण द्वारा मोहसिन रजा के बयान का खंडन पधानमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप के बाद आया। इतना ही नहीं बाद में मदरसा बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी किसी पकार के ड्रेस कोड परिवर्तन की योजना को खारिज किया।

ऐसे में यह सवाल उठना जरूरी है कि अपने कार्यालय को सबसे पहले भगवा रंग से रंगवाने का पदर्शन करने वाले, मीडिया के समक्ष भगवा रंग का गुणगान करने और योगी व मोदी की खुशामदपरस्ती का कोई भी अवसर अपने हाथ से न गंवाने की कोशिश में लगे रहने वाले मंत्री महोदय यह क्यों नहीं सोचते कि वे कभी-कभी खुशामदपरस्ती की पतिस्पर्धा में इतना आगे क्यों बढ़ जाते हैं कि उनके सरबराहों, वरिष्ठ नेताओं व उनके आकाओं तक को असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है? चाटुकारिता की इसी पतिस्पर्धा में कभी-कभी चमचों द्वारा अपने आकाओं को भगवान व देवी-देवताओं का रूप भी दे दिया जाता है। चुनावों के समय कभी नरेंद्र मोदी तो कभी सोनिया गांधी कभी अमित शाह, राहुल गांधी तो कभी वसुंधरा राजे सिंधिया कभी महाराष्ट्र के ठाकरे परिवार के नेतागण इन सबको देवी-देवताओं के रूप में बड़े-बड़े बैनर्स पर सुशोभित देखा जा सकता है। कोई अपने आराध्य आकाओं को पांडव बताता है तो विपक्ष को कौरव की संज्ञा देता है। उत्तर पदेश के सुरेंद्र सिंह नामक एक विधायक पिछले दिनों अपने उद्गार इन शब्दों में व्यक्त करते सुने गए कि पधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भगवान ने राम के अवतार में पृथ्वी पर भेजा है तथा ईश्वर ने भगवान के भाई लक्ष्मण को अमित शाह के रूप में अवतरित किया है जबकि योगी आदित्यनाथ को उन्होंने हनुमान का अवतार बताया। विधायक महोदय इन तीनों अर्थात राम-लक्ष्मण व हनुमान के नेतृत्व में रामराज्य की कल्पना भी कर रहे हैं। इन्हीं विधायक महोदय ने ममता बनर्जी की तुलना शुर्पणखा से की थी। और इन्होंने ही यह भविष्यवाणी भी की है कि 2019 का चुनाव `इस्लाम व भगवान राम' और `भारत व पाकिस्तान' के मध्य होने जा रहा है।

निश्चित रूप से चाटुकारिता भारतीय समाज के रग-रग में बसी हुई है। खुशामदपरस्ती देश के बहुसंख्य लोगों का मिजाज बन चुका है। परंतु चाटुकारिता का स्तर ऐसा भी नहीं होना चाहिए जिससे समाज में नफरत फैले, किसी दूसरे समुदाय के लोग आहत हों और चमचागीरी की बदौलत अपने ही लोग संकट में पड़ जाएं। भाजपा ही नहीं समस्त राजनैतिक दलों तथा देश की जनता को ऐसे खुशामदपरस्त व चाटुकार नेताओं से दूर रहना चाहिए।

Share it
Top