सट्टेबाजी की छूट को अमली जामा पहनाना आसान नहीं
आदित्य नरेन्द्र
विधि आयोग ने गुरुवार को दी गई अपनी सिफारिशों में कहा है कि सरकार को खेलों में गेम्बलिंग और सट्टेबाजी की इजाजत देनी चाहिए और नियम कानून बनाकर इसे रेगुलेट करना चाहिए। इस पर टैक्स लगाने से एक ओर जहां सरकार की आमदनी में इजाफा होगा और लोगों को रोजगार मिलेगा वहीं दूसरी ओर कसीनो और गेम्बलिंग इंडस्ट्री की मार्पत बड़ी मात्रा में एफडीआई भी देश में आएगी। लेकिन बात न तो इतनी सीधी-सादी है और न ही इस पर कानून का बनाना इतना आसान है। यह मामला नैतिकता से लेकर कानून की जटिलता तक फैला हुआ है। 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सट्टेबाजी की वैधता पर विचार करने को कहा था। इस सन्दर्भ में विधि आयोग को इसके लिए कानूनी प्रणाली पर विचार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। आयोग की 256 पेज की रिपोर्ट में इसकी अनुशंसा करते हुए इसे वैध बनाने की सिफारिश की गई है। हालांकि भारतीय समाज में आमतौर पर जुए को एक बुराई के रूप में देखा जाता है। गांधी जी भी इसे एक सामाजिक बुराई मानते थे। उधर कानूनी रूप से देखा जाए तो सट्टेबाजी या गेम्बलिंग खेलों से संबंधित है और खेल राज्य सरकार का विषय है। विधि आयोग का मानना है कि इस बारे में संसद को आर्टिकल 249 या 252 के तहत दिए गए अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए मॉडल कानून बनाना चाहिए जिसे राज्य सरकारें अपने यहां लागू कर सकती है। स्पष्ट है कि इस पर राज्य सरकारों का सहमत होना जरूरी है। नैतिकता और कानून के अलावा इसमें एक पेंच बराबरी का भी है। कहा जा रहा है कि सट्टेबाजी को कानूनी मान्यता मिलने पर सिर्प उन्हीं लोगों को सट्टा लगाने की छूट दी जाए जिनके आधार कार्ड और पैन लिंग हो। यहां तक तो ठीक है लेकिन यदि आमदनी के आधार पर कुछ लोगों को जुआ खेलने से रोका जाता है या फिर कुछ लोगों को इसकी छूट दी जाती है तो बराबरी का मुद्दा भी कुछ लोगों द्वारा उठाया जा सकता है। कानून सबको बराबरी का हक देता है और गेम्बलिंग एक्ट का भी कानून और नैतिकता की कसौटी पर कसा जाना तय है। दरअसल सट्टेबाजी के जरिये आज दुनिया में लाखों करोड़ का कारोबार फल-फूल रहा है। बहुत से देशों ने इसके कारोबार के लिए कानून बना रखे हैं। यह कानून उन्होंने अपने-अपने देश की सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखकर बनाए हुए हैं। जैसे सिंगापुर में जुआ वैध है लेकिन वहां सिर्प विदेशी नागरिक ही इसे खेल सकते हैं। जबकि कई अन्य देशों में ऐसा नहीं है। वहां स्थानीय लोग भी जुआ खेल सकते हैं। जहां तक भारत का सवाल है तो यहां विधि आयोग की रिपोर्ट आते ही कांग्रेस ने उस पर सवाल उठाते हुए पूछा है कि खेलों में सट्टेबाजी को वैध बनाकर क्या सरकार देश को जुए के अड्डे में बदलना चाहती है। स्पष्ट है कि कांग्रेस अपने सहयोगी दलों के साथ इसका हरसंभव विरोध करेगी। वैसे देखा जाए तो शर्त, फिक्सिंग और गेम्बलिंग में जमीन-आसमान का फर्प है। आम लोगों के बीच शर्त (वैटिंग) और गेम्बलिंग को लगभग एक निगाह से देखा जाता है। हालांकि इन दोनों में काफी फर्प है। वैटिंग में स्किल पर ध्यान रखा जाता है जैसे रेसकोर्स में घुड़दौड़ पर शर्तें लगाई जाती हैं। इसके उलट गेम्बEिलग में ऐसा कुछ भी नहीं है। यह सिर्प रकम लगाने वालों की इच्छा पर निर्भर करता है। जैसे डेली लॉटरी में लोग अपनी मर्जी से किसी भी नम्बर पर रकम दांव पर लगा दिया करते हैं। यह एक निर्विवाद तथ्य है कि रोक के बावजूद भी गेम्बलिंग को रोकना आसान नहीं है। ऐसे में विधि आयोग की इसे कानूनी जामा पहनाने की सिफारिश एक हद तक तो ठीक है क्योंकि इससे आमदनी के साथ-साथ रोजगार सृजन भी होगा। अब अगले आम चुनाव में एक साल से भी कम वक्त बचा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार इस मामले में आगे बढ़ती है या फिर नैतिकता और कानून के मकड़जाल में यह रिपोर्ट उलझ कर रह जाएगी।