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कई अर्थों में खास रही 16वीं लोकसभा

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:15 Feb 2019 3:15 PM GMT
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सुशील कुमार सिंह

बजट सत्र के सम्पन्न होने के साथ मई 2014 में ग"ित 16वीं लोकसभा में सत्रों का सिलसिला खत्म हो गया हालांकि इसका कार्यकाल मई तक बना रहेगा। एक फरवरी को बजट पेश करने की शुरुआत साथ ही आम बजट और रेल बजट का एकीकरण का गवाह 16वीं लोकसभा ही कहा जाएगा। ध्यानतव्य हो कि औपनिवेशिक काल में पहली बार एक्वर्थ कमेटी की सिफारिश पर रेल बजट को अलग से पेश करने की परंपरा 1924 में शुरू हुई थी। तब से यही परंपरा जारी थी पर मोदी शासनकाल में इसे सामान्य बजट में शामिल कर दिया गया। सबसे बड़ी खासियत यह भी रही कि पूरे पांच साल के कार्यकाल में सरकार राज्यसभा के मामले में अल्पमत में भी रही। इसी कारण तीन तलाक और नागरिकता संशोधन विधेयक सरकार पारित नहीं करवा पाई जो आगामी जून में इतिहास बनकर रह जाएगा। फिलहाल लोकसभा की कुल 327 और राज्यसभा की 325 बै"कें इस पांच साल के दौरान हुईं। कुल 219 विधेयक पेश किए गए जिसमें से 203 पारित हुए। जीएसटी को क्रांतिकारी आर्थिक कानून की दृष्टि से देखा और जाना गया। दिवालिया कानून, और आर्थिक भगोड़े के खिलाफ कानून भी पारित किए गए। लोकसभा को उत्पादकता की दृष्टि से देखा जाए तो यह 83 फीसदी है जो 2009 से 2014 के बीच 15वीं लोकसभा की तुलना में 20 फीसदी अधिक है। हालांकि 2004 से 2009 14वीं लोकसभा से तुलना किया जाए तो उससे 16वीं लोकसभा की उपादकता दर 4 फीसदी कम है। 16वीं लोकसभा का एक अच्छा संदर्भ यह भी है कि इसमें 44 महिला सांसद चुनकर आई थी जो अब तक की सर्वाधिक संख्या है। इनकी उपस्थिति तथा संसद में भागीदारी साथ ही सवाल पूछने आदि के मामले में भी भूमिका अग्रणी देखी जा सकती है।

सबसे महत्वपूर्ण यह है कि 1984 के बाद 2014 में "ाrक तीन दशक बाद एक पूर्ण बहुमत की सरकार भारत में बनी। उम्मीद की गई थी कि जो कृत्य ग"बंधन की सरकारों में कई बाधाओं के कारण पूरा नहीं हो पाए थे उनके पूरक का काम मोदी की यह 16वीं लोकसभा वाली बहुमत की सरकार करेगी। लोकतंत्र का अद्भुत परिपेक्ष्य यह भी रहा है कि कमजोर सरकार हो तो खींचातानी में वक्त गंवा देती है और मजबूत हो तो मनमानी के पभाव से मुक्त नहीं रहती है। महात्मा गांधी ने कहा था कि मजबूत सरकारें जो करते हुए दिखाई देती हैं असल में वो करती नहीं है। मोदी सरकार पर यह तोहमत लगता रहा है कि उन्होंने मजबूत सरकार का मनमाने ढंग से उपयोग किया है। ऐसे में सवाल है कि 16वीं लोकसभा ने अपने पूरे 14 सत्रों में क्या हासिल किया और यह मोदी सरकार के लिए कितना खास रहा। पधानमंत्री मोदी ने 16वीं लोकसभा में अपने आखिरी भाषण में कहा कि कांग्रेस के गोत्र के बगैर तीन दशकों से यह पहली बहुमत की सरकार है। अपनी उपलब्धियों का जिक्र किया। विरोधियों पर तंज कसा और मुलायम सिंह यादव का अभिवादन स्वीकार किया। गौरतलब है कि समाजवादी के मुलायम मोदी को पुनः पधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। इसमें कोई दुविधा नहीं कि कुछ महत्वपूर्ण कानून बने और कई ऐतिहासिक फैसले लिए गए। नोटबंदी एवं जीएसटी आर्थिक परिवर्तन की दिशा में उठाए गए बड़े कदम थे। हालांकि इसे लेकर कई आर्थिक क"िनाइयों को भी देश ने देखा। सुगम पथ क्या है इसकी पड़ताल पूरी नहीं हुई है और जनता को सरकार से क्या मिला। इसका भी रिपोर्ट कार्ड अभी अधूरा है। हालांकि सरकार अपनी ओर से खास मान रही है पर यह तभी पूर्णांक को पाप्त कर पाएगा जब 17वीं लोकसभा में इनकी वापसी होगी।

इस लोकसभा का विशेष महत्व इसलिए भी कहा जाएगा क्योंकि यहां मान्यता पाप्त विपक्ष का आभाव था। गौरतलब है कि कांग्रेस 44 सीट पर सिमट गई थी जो विरोधियों में सबसे बड़ा दल था। विपक्ष की मान्यता हेतु 55 सदस्य होने अनिवार्य हैं। सत्ता पक्ष और कांग्रेस के बीच संबंधों में तल्खी पूरे दौर तक बनी रही बल्कि स्तर भी तुलनात्मक काफी गिरा हुआ था। राज्यसभा में भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जाएगी। यहां भी सदन के भीतर स्तर काफी नीचे था। खास यह रहा कि लोकसभा में पूर्ण बहुमत की सरकार और राज्यसभा में 16वीं लोकसभा के पूरे कार्यकाल के दौरान अल्पमत की स्थिति बनी रही। सत्तासीन और विपक्ष के बीच जिस तरह से तरकश पूरे 5 साल छोड़े गए वह लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है। जीएसटी, तीन तलाक और राफेल मुद्दे को लेकर दोनों सदनों में सबसे ज्यादा हंगामा हुआ। राफेल मुद्दे पर तो हंगामा इस कदर बरपा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पस्ताव और वित्त विधेयक जैसे महत्वपूर्ण संदर्भ बिना बहस के ही पारित करने पड़े।

यह चिंता लाजिमी है कि सदन की गरिमा बनाने वाले कहां से आएंगे। संभव है कि लोकतंत्र में जनता के पतिनिधि ही फिर चुनकर आएंगे। क्या उनसे फिर यह उम्मीद की जाए कि 17वीं लोकसभा में बहुत कुछ सकारात्मक होगा? इन सबसे जनता को यही संदेश गया है कि संसद में बहस का स्तर गिरता जा रहा है। सूझबूझ भरा संदर्भ यह भी है कि उच्च सदन को वरिष्" और बुद्धजीवियों का सदन माना जाता है वहां भी अफरातफरी 5 साल बरकरार रही। कहा जाए तो राज्यसभा में लोकसभा से अधिक हंगामा हुआ। 16वीं लोकसभा का कामकाज खत्म होने के मौके पर पक्ष-विपक्ष गिले-शिकवे दूर करते हुए दिखे। सवाल है कि क्या सदन से जो अपेक्षित था वह पांच वर्षों में पूरा हुआ है संभव है इसका जवाब न में ही होगा पर मोदी सरकार अपने रिपोर्ट कार्ड बड़ा और व्यापक मानेगी।

अगली लोकसभा की चुनावी लड़ाई एक बार फिर मैदान में है। आरोप-पत्यारोप का दौर भी बुलंदी पर है। 16वीं लोकसभा में बहुमत से भरी मोदी सरकार को 17वीं लोकसभा में धूल चटाने के लिए विपक्षी लामबंद हो रहे हैं। उत्तर पदेश के सियासी अखाड़े में जहां सपा-बसपा और आरएलडी ग"बंधन के साथ मोदी से मुकाबला करने का इरादा जता चुका हैं वही कांग्रेस में पियंका गांधी की एंट्री सियासत को एक नया रुख दे दिया है। राजनीति रोजाना की दर से परिवर्तन ले रही है और 17वीं लोकसभा को जीतने का मंसूबा सभी के मन में कुलांछे मार रहा है।

एक तरफ मोदी तो दूसरी तरफ मोदी विरोधी हैं। मोदी के 5 साल के कार्यकाल में किए गए कृत्यों को जनता के विरुद्ध मानते हुए विरोधी लोकतंत्र को जहां हथियाने की फिराक में है वहीं मोदी इसे अव्वल दर्जे का रिपोर्ट कार्ड मानते हैं। 16वीं लोकसभा कई महत्वपूर्ण विधाओं से युक्त कही जाएगी। इसकी एक नकारात्मक खासियत यह भी रही है कि सरकार बहुमत में होने के बावजूद गैर मान्यता पाप्त विपक्ष से कहीं अधिक परेशान रही है। क्या यह उम्मीद लगाई जानी चाहिए कि लोकतंत्र में चौकन्ना लोगों को ही रहना है। सियासी पैतरें में जिस तरह की तस्वीरें उभरती हैं उससे तो यही लगता है कि राजनीतिज्ञ अपनी महत्वाकांक्षा को लेकर कहीं अधिक पभावित रहते हैं। किसान, गरीब और बेरोजगार को इस सरकार ने क्या दिया। इसकी पड़ताल सब अपने ढंग से कर रहे हैं। सवर्णों को दस फीसदी आरक्षण इसी लोकसभा की देन है। इतना ही नहीं किसानों के पतिमाह सम्मान राशि को भी सरकार ने देकर अंतिम समय में कुछ और अंक बढ़ाने का पयास किया है।

बावजूद इसके यह बात समझने वाली रहेगी कि पांच साल की सरकारें सब कुछ अंतिम साल में ही क्यों करती हैं। महंगाई की मार से पूरा पांच साल कमोबेश अटा रहा इससे इंकार करना मुश्किल है। हालांकि सरकार सब कुछ सही करने की बात कहकर जनता से राहत मांगती रही। नोटबंदी के बाद यह चित्र तेजी से उभरा था। फिलहाल 16वीं लोकसभा अंत की ओर है और 17वीं का आगाज होने वाला है क्या खोया, क्या पाया की पड़ताल आगे भी होगी, इस उम्मीद में कि भविष्य में सरकार चाहे मजबूर आए या मजबूत जनता की भलाई में चूक न हो।

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