ड्रैगन 2021 तक हो जाएगा बेनकाब
चीन की चालों से भारत पूरी तरह से वाकिफ है। हिन्दी चीनी भाई का नारा देकर जिस तरह से चीन भारत की पी" पर खंजर घोप चुका है, उससे कोई अनजान नहीं है। चीन की कूटनीति बहुत ही खतरनाक है। सहयोग के नाम पर चीन की कर्ज नीति किसी सूदखोर से कम नहीं है। भूटान, श्रीलंका, मालदीप, पाकिस्तान और नेपाल चीनी की कर्ज नीति का खमियाजा भुगत रहे है। चीन छोटे-छोटे देशों को महंगी दरों पर कर्ज देकर परियाजनाओं का हिस्सा बन जाता है और कर्ज न चुका पाने पर उन परियोजनाओं का मालिक बन जाता है। ऐसे कई उदाहरण फिलहाल सामने आ चुके हैं जबकि वर्ष 19, 20 और 21 में कई और ऐसे खुलासे हो जाएगें जिससे देश दुनिया के बीच चीन का पूरी तरह से बेनकाब होना तय है। भारत के पड़ोसी देश को बरलगालने के के साथ भारत के चीन के साथ कई द्विपक्षीय मामले है। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद इनमें ब्रिटिश भारत और तिब्बत ने 1914 में शिमला समझोंते के तहत अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में में कम होने रेखा निर्धारित की थी लेकिन चीन इसे नहीं मान रहा है। ब्रम्हापुत्र नदी पर डैम, भारत और वियतनाम का साथ मिलकर पाकृतिक गेंस की खोज करने पर भी चीन को एतराज है। द्विपक्षीय कारोबार में भी वह चालबाजी कर रहा है। भारत में तो 7309 अरब डॉलर का व्यापार कर रहा है लेकिन भारतीय सामान के लिए उसने चीन पर पतिबंध लगा रखा है। ओबोर परियोजना में वह भारत को हिस्सेदार नहीं बना रहा है जबकि जापान, अमेरिका और ऑस्टेलिया की परियोजनाओं में पूरा हिस्सा ले रहा हे। एनएसजी की सदस्यता में वह भारत का खुलकर विरोध कर रहा है। अरुणाचल और लद्दाख के विवादित हिस्सों के लिए वह नत्थी वीजा जारी कर भारत की शांति का पभावित करता चला आ रहा है। अब बात करे भारत के पड़ोसी छोटे राज्यो को लेकर चीन की कुटिल चालों की तो वह इन छोटे राज्यों को आसानी से कर्ज देकर फंसा लेता है। हालांकि मालदीप और श्रीलंका मदद की आड़ में चीन की कर्ज जाल नीति को समझ चुके है। जल्द ही पूरी दुनिया को इस बात का पता चल जाएगा कि चीन कितनी खतरनाकर चल से विश्व शिखर पर पहुंचने को आतूर है। भूटान ने अपने पड़ोसी राज्य तिब्बत पर चीन का कब्जा होते देखा है। इसीलिए वह डोकलाम मामले में भारत के साथ है। चीन लंबे अरसे से भूटान को लुभाने की कोशिश कर रहा है। नेपाल फिलहाल चीन के जाल का शिकार हो रहा है। कूटनीति के तहत चीन ने नेपाल को अपने चार बंदरगाहों के उपयोग की अनुमति देकर बड़ी चाल चली है। लेकिन नेपाल के पधानमंत्री खड़ग पसाद शर्मा ने भारत की पहली यात्रा में जो सद्भाव भारत के पति दिखाया था उससे चीन बौखला गया था। पाकिस्तान को चीन अपना सबसे अहम साझीदार मानकर उसकी लगातार मदद कर रहा हैं। पिछले पांच सालों में पाकिस्तान के ऊपर चीन का कर्ज 60 अरब डॉलर से बढ़कर 95 अरब डॉलर पहुंच गया है। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाक की हो रही किरकिरी से पाकिस्तान परेशान होकर भारत की तरफ टुकटुकी लगा रहा है। पाकिस्तान में चीनी कांसुलेट पर आतंकी हमले के बाद चीन और पाकिस्तान एक दूसरे की नीयत को अच्छी तरह से समझ चुके हैं। मालदीप में अब्दुला यामीन की सरकार आने के बाद भारत कमजोर हुआ। विपक्षी नेताओ जजों की गिरफ्तारी का जब भारत ने विरोध किया तो मालदीप चीन के करीब चला गया। लेकिन मालदीप के राष्ट्रपति के रूप में जब सोलिह ने पदभार संभाला तो सबसे पहले उन्होंने चीन की चाल से देश को बचाने के लिए भारत और अमेरिका से मदद की गुहार लगाई। श्रीलंका के मामले में चीन की चाल सार्वजानिक हो चुकी है। कर्ज न चुका पाने पर 2017 में श्रीलंका ने अपना हंबनटोटा पोट चीन को सौंप दिया। श्रीलंका में कुल कर्ज का 10 फीसदी कर्जा चीन का है। ऐसे में श्रीलंका के नागरिक यह समझ चुके हैं कि देश को चीन के हाथों बेचा जा रहा है। भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ धनिष्" संबंध है। इसे कमजोर करने के लिए चीन दक्षिण एशिया के पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीप, श्रीलंका और नेपाल में भारी निवेश कर मजबूत आर्थिक तंत्र और कूटनीति पर काम कर रहा है। चीन की चालों से फिलहाल श्रीलंका और पाकिस्तान वाकिफ हो चुके हैं। नेपाल भले ही चीन की पूरी चाल को अभी समझ नहीं पाया लेकिन जल्द ही यथार्थ सामने होगा। फिलहाल चीन की चालों को समझाते हुए भारत को अमेरिका के मायाजाल से निकल कर अफगानी दोस्ती के पति आतुर नहीं होना चाहिए। आर्थिक मसले पर भले ही ईरान से दार्शनिक अंदाज में संबंध रखे जा सकते है। भूटान और बांग्लादेश से संबंध मधुर है लेकिन सतर्प रहकर ही संबंध बनाए रखना होगा। हम म्यांमार के मामले में धोखा खा चुके हैं। श्रीलंका में चीन का निवेश अब जांच के दायरे में आने लगा है। खासतौर पर पश्चिमी मीडिया और अधिकारियों ने इस पर सवाल उ"ाए हैं। इनका आरोप है कि चीन अपने पड़ोसी देशों के साथ कर्ज बढ़ाने वाली कूटनीति कर रहा है। पिछले साल ही श्रीलंका ने अपना हंबनटोटा बंदरगाह चीन की एक फर्म को 99 साल के लिए सौंप दिया था।
दरअसल श्रीलंका चीन की तरफ से मिले 140 करोड़ डॉलर का कर्ज चुका पाने में नाकाम था।इसके बाद विपक्ष के हजारों नेताओं ने श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में सरकार के खिलाफ विरोध फ्रदर्शन किया और सरकार पर देश की संपत्ति बेचने का आरोप लगाया। इसी तरह श्रीलंका में चीन के एक और फ्रोजेक्ट पर खतरा मंडरा रहा है, श्रीलंका के उत्तरी शहर जाफना में घर बनाने की चीन की योजना का विरोध हो रहा है। वहां लोगों ने कींट के घर की जगह ईंट के घरों की मांग की है।चीन के सबसे करीबी और भरोसेमंद एशियाई दोस्त के तौर पाकिस्तान को देखा जाता है। पाकिस्तान चीन के साथ अपनी मित्रता को `हर मौसम' में चलने वाली दोस्ती' के रूप में बयां करता है। लेकिन बीआरआई परियोजना के संबंध में पाकिस्तान ने भी थोड़ा-थोड़ा नाराजगी जाहिर करना शुरू कर दिया है। श्रीलंका की तरह म्यांमार भी अपने ऊपर बढ़ते चीनी कर्ज के चलते दबाव महसूस करने लगा है। यही वजह है कि वह बीआरआई से हटना चाह रहा है। इंडोनेशिया में बन रहा जकार्ता-बांडुंग हाई-स्पीड रेलवे नेटवर्प लगातार पीछे खिसकता जा रहा है। इसकी फ्रमुख वजहें में भूमि अधिग्रहण, लाइसेंस और फंड की समस्या है। 500 करोड़ डॉलर की चीन की यह परियोजना साल 2015 में शुरू हुई थी और इसकी डेडलाइन साल 2019 है। जकार्ता ग्लोब में फ्रकाशित एक रिपोर्ट में इंडोनेशिया ने नेता लुहुत पंडजाइतन ने कहा कि फिलहाल तो ऐसा लगता है कि साल 2024 से पहले इस नेटवर्प पर रेल नहीं चल पाएगी। इंडोनेशिया में चीन-विरोधी विचार भी लगातार उ" रहे हैं।
एक तरफ तो चीन कश्मीर पर भारत के हक को नकारती है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान का दावा कि ये हिस्सा उसका है इसे चीन स्वीकार करता है। ऐसे में भारत का चीन को अपना मित्र देश न समझना समझा जा सकता है।ये चीन की भारत पर दबाव डालने की कोशिश है। इस परियोजना में चीन के सहयोगी मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान, म्यांमार के पास इतना पैसा नहीं है कि वो चीन की परियोजना पर काम कर सकें, चीन की इस परियोजना में नेपाल ने अपना पैसा लगाया तो उसका पूरा जीडीपी ही इसमें चला जाएगा। चीन इस परियोजना में इतना घाटा उ"ाने के लिए इसीलिए तैयार है कि क्योंकि भारत पर दबाव पड़े और भारत के सिर तक चीन की सड़क आ जाये और भारतीय लोग उस सड़क का इस्तेमाल करने लगें। इतना ही नहीं नेपाल में चीन का जो हजारों टन सामान आएगा नेपाल के लोग उसे खरीद नहीं पाएंगे और वो तस्करी के जरिये नेपाल सीमा से होकर भारत आएगा। भारत के सामने तो बड़ी-बड़ी समस्याएं आ सकती हैं। आज कश्मीर मुद्दे पर चीन की बात स्वीकार करने का मतलब होगा कि कल आप अरुणाचल पर भी उनका दबाव देख सकते हैं। यह भारत के लिए गंभीर कश्मकश की स्थिति है। विदेश नीति का पूरा उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। भारत में 2019 में लोकसभा चुनाव भी होने वाले हैं और इसके मद्देनजर मोदी इस समस्या का सामना कैसे करते हैं यह देखने वाली बात होगी।
पेम शर्मा