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अनुच्छेद 35ए पर क्यों मचा है संग्राम

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:27 Aug 2018 2:54 PM GMT
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सुशील कुमार सिंह

भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर राज्य को विशष दर्जा पाप्त है और यह विशेष स्थिति अनुच्छेद 370 के तहत है मगर बीते एक वर्ष से अनुच्छेद 35ए को लेकर कोहराम मचा हुआ है। अनुच्छेद 35ए आखिर है क्या और इसके चलते जम्मू-कश्मीर में समस्या क्यों बढ़ी है इसे लेकर स्पष्ट राय नहीं आ पा रही है। इस अनुच्छेद को हटाने के लिए दलील दी जा रही है कि इसे संसद के जरिये लागू नहीं कराया गया है। शोध बताती है कि देश के विभाजन के समय बड़ी संख्या में पाकिस्तान से शरणार्थी भारत आए थे जिनमें लाखों की तादाद में जम्मू-कश्मीर में रह रहे हैं। अनुच्छेद 35ए के जरिये ही इन सभी भारतीय नागरिकों को जम्मू-कश्मीर सरकार ने स्थायी निवास पमाण पत्र से वंचित कर दिया। जिसमें 80 फीसदी लोग पिछड़े और दलित हिन्दू समुदाय से हैं। इतना ही नहीं जम्मू-कश्मीर में विवाह कर बसने वाली महिलाओं और अन्य भारतीय नागरिकों के साथ यहां की सरकार इस अनुच्छेद की आड़ लेकर भेदभाव करती है। इसी को लेकर इसे हटाने की मांग हो रही है। अनुच्छेद 35ए में यह भी है कि अगर जम्मू-कश्मीर की लड़की किसी बाहर के लड़के से शादी करे तो उसके सारे अधिकार खत्म हो जाएंगे इतना ही नहीं उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं। गौरतलब है कि जब 1956 में जम्मू-कश्मीर का संविधान बनाया गया था तब स्थायी नागरिकता को कुछ इस पकार परिभाषित किया गया था। संविधान के अनुसार स्थायी नागरिक वह व्यक्ति है 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के दस वर्षों से राज्य में रह रहा हो और वहां सम्पत्ति हासिल की हो। इसी दिन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र पसाद ने एक आदेश पारित किया जिसके तहत संविधान में अनुच्छेद 35ए जोड़ा गया था। अब सवाल है कि क्या अनुच्छेद 35ए अनुच्छेद 370 का ही हिस्सा है और 35ए को हटाने पर 370 स्वयं हट जाएगा।

उच्चत्तम न्यायालय में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 35ए को हटाए जाने के लिए 6 अगस्त को सुनवाई शुरू हुई। हालांकि अब यह सुनवाई 27 अगस्त को होनी थी किन्तु अब यह सुनवाई 31 अगस्त को होगी। सुनवाई से पहले पदेश में पदर्शन चल रहा है और तरह-तरह के बयानबाजी भी हो रही है। कश्मीर घाटी में अलगाववादियों की ओर से बुलाई गई हड़ताल के कारण यहां दुकानें बंद रही।

दरअसल अलगाववादी अनुच्छेद 35ए को हटाए जाने के विरोध में हैं। वैसे बड़ा सच तो यह है कि अलगाववादी घाटी को ही अमन से नहीं रहने देना चाहते हैं और जब तब यहां हिंसा और उपद्रव को आमंत्रित करते रहते हैं। आतंकियों को शह देना और पाकिस्तान परस्त व्यवहार करना इन अलगाववादियों की आदत है। अब अनुच्छेद 35ए को लेकर इनका सियासी खेल चरम पर है। बताते चलें कि अनुच्छेद 35ए को लेकर आरएसएस के नजदीकी गैरसरकारी संग"न वी द पीपुल्स ने सुपीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है जिसमें उन्होंने कहा है कि इसी अनुच्छेद के कारण भारतीय संविधान में पदत्त समानता के अधिकार के अलावा मानवाधिकार का भी घोर हनन हो रहा है।

गौर करने वाली बात यह है कि अनुच्छेद 35ए के तहत पश्चिमी पाकिस्तान से आकर बसे शरणार्थियों और पंजाब से यहां लाकर बसाए गए वाल्मीकि समुदाय नागरिकता से वंचित हैं। हैरत वाली बात तो यह है कि 35ए को लेकर घाटी के अलगाववादी आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। इस अनुच्छेद को लेकर सोशल मीडिया पर भी जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है और सभी अपने-अपने ढंग से इसकी व्याख्या कर रहे हैं। कश्मीर बंद की गई और अमरनाथ यात्रा भी रोक दी गई। इस अनुच्छेद के समर्थन में फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस भी बंद के साथ रही। बंद के बाद पत्थरबाजी के साथ कई छिटपुट घटनायें भी हो रही हैं। जाहिर है कि पत्थरबाजी में पूरी तरह पशिक्षित अलगाववादी को पत्थर चलाने का नया अवसर मिल गया है।

कश्मीरी पंडित अनुच्छेद 35ए हटाने के पक्ष में हैं। उनकी दलील है कि इस अनुच्छेद से हमारी बेटियों को दूसरे राज्य में विवाहित होने के बाद अपने सभी अधिकार जम्मू-कश्मीर से खोना पड़ रहा है। हतपभ करने वाली बात यह है कि भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 से लागू है और संविधान के अनुच्छेद 1 में यह स्पष्ट है कि भारत राज्यों का संघ है और उसी संघ का 15वां राज्य जम्मू-कश्मीर है। अनुच्छेद 370 के तहत विशेष राज्य है और इसकी कई बाध्यताएं हैं जैसे नीति-निर्देशक तत्व का यहां लागू न होना जबकि देश हर राज्य में यह लागू होते हैं। वित्तीय आपात यहां लागू नहीं किया जा सकता और अवशिष्ट शक्तियां राज्य को पाप्त हैं। ऐसी तमाम बातें इसे विशिष्ट बनाती हैं और सुविधापरख भी। बहुत कुछ जम्मू-कश्मीर के हक में होने के बावजूद वहां मामला बेपटरी ही रहा है। आतंक की चपेट में घाटी अकसर रही है और इसे जलाने में हुर्रियत के लोग कभी पीछे नहीं रहे।

रोचक यह भी है कि भाजपा और पीडीपी घाटी में तीन साल बेमेल सरकार चला चुके हैं और सत्ता के समय घाटी शांत थी और जब सत्ता से हटे तो घाटी जल रही थी। घाटी बर्बाद करने में जितना जिम्मेदार पीडीपी की महबूबा मुफ्ती हैं उतनी ही भाजपा भी है। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार में बराबर की भागीदारी थी। अनुच्छेद 35ए के मोह में वहां के सभी दल और अलगाववादी कमोबेश फंसे हैं। पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस और तो और सीपीआई (एम) भी अनुच्छेद 35ए को हटाने के पक्ष में नहीं है। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन्हें सियासत की चिंता है वहां के बाशिंदों की नहीं। जम्मू-कश्मीर से आईएएस टॉपर रहे शाह फैजल ने भी विवादित ट्विट किया है जिसमें उन्होंने कहा अनुच्छेद 35ए हटाने से जम्मू-कश्मीर का भारत से रिश्ता खत्म हो जाएगा। उन्होंने इस रिश्ते को शादी दस्तावेज और निकाहनामा से जोड़ा है। उपरोक्त से यह संदर्भित होता है कि जम्मू-कश्मीर के भीतर दो विचार चल रहे हैं। एक अनुच्छेद 35ए के पक्ष में और दूसरा विरोध में मगर असल में चिंता विरोधियों को अनुच्छेद 35ए की नहीं है बल्कि वहां फिजा में फैली उनके रसूख की है।

राजनेता हो या बुद्धिजीवी वर्ग अनुच्छेद 35ए को लेकर अपनी-अपनी व्याख्या में लगा है जबकि वहां के नागरिक मौलिक अधिकार और मानवाधिकार दोनों के खतरे से जूझ रहे हैं। अनुच्छेद 35ए जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को यह अधिकार देता है कि वह स्थायी नागरिक की परिभाषा तय कर सकें। अब यह अनुच्छेद न्यायायलय की शरण में है और फैसला आने वाले दिनों में जब होगा तभी दूध का दूध और पानी का पानी होगा। फिलहाल जिस तर्ज पर समस्या बढ़ी है उसका हल इतना आसान भी पतीत नहीं होता। राजनीतिक फलक पर जब अनुच्छेद 370 हटाने की बात जोर पकड़ती थी तब भी सियासत गरम होती थी और जम्मू-कश्मीर में लोग इसे लेकर सतर्प हो जाते थे। अब अनुच्छेद 35ए को लेकर घाटी में वह सब किया जा रहा है जिसके चलते वहां का अमन-चैन पटरी से उतरा है। कह सकते हैं कि अब गेंद न्यायालय के पाले में है और उसका निर्णय ही इस पर रोशनी डालने का काम करेगा। दो टूक यह भी है कि जम्मू-कश्मीर मुख्यतः कश्मीर अलगाववादियों, आतंकवादियों और स्वार्थपरख सियासतदानों के हाथों खिलौना मात्र बनकर रह गई और यहां के नागरिकों का दोनों हाथों से शोषण हुआ। गरीबी, बीमारी, बेरोजगारी आदि से परे अलगाववादी कश्मीर पर अपनी रोटी सेंक रहे हैं। लाखों कश्मीरी पंडितों को यहां से बेदखल किया गया और दशकों से अराजकता का माहौल यहां से जाने का नाम नहीं ले रहा।

(लेखक प्रयास आईएएस स्टडी सर्पिल, देहरादून के निदेशक हैं।)

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