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रसूखदारों को निपटाए बिना नहीं निपटेंगे भूमाफिया

👤 admin5 | Updated on:4 May 2017 3:35 PM GMT
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राजनाथ सिंह `सूर्य'

उत्तर पदेश के डेढ़ दर्जन जनपदों में 75000 से अधिक ऐसे अवैध निर्माण को चिन्हित किया गया है जिन्हें गिराया जाना है। यदि "rक सर्वेक्षण किया जाए तो अकेले राजधानी में ऐसे एक लाख से अधिक अवैध निर्माण-जिन्हें भू-उपयोग की परिभाषा बदलकर वैध किया गया है निर्माण के सबूत मिल जाएंगे। भूमि भवन पर जबन कब्जा एक अवैध निर्माण को `वैध' बना देने में सत्ता की शक्ति का महत्व होता है। उत्तर पदेश में योगी सरकार आने के बाद सत्ता की शक्ति के दुरुपयोग की संभावना कम होता दिखाई देने लगा है तथापि तू डाल-डाल तो मैं पात-पात में आस्थावानों से अपेक्षा है कि कुछ दिनों में योगी सरकार का जोश "ंडा पड़ जाएगा और अर्से से चली आ रही परंपरा बदस्तूर जारी रहेगी क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रसूखदार लोगों के कब्जे से सरकार आवास खाली कराने का जो आदेश जारी किया गया था उसे निष्पभावी बनाने के लिए अखिलेश सरकार ने विधानमंडल से जो विधेयक पारित कराया उसका विरोध भाजपा ने नहीं किया था तथा राज्यपाल ने उस विधेयक को स्वीकृति पदान करने में कोई विलंब नहीं किया।

कानून बनाकर अवैध या अनैतिक या अनौचित्यपूर्ण जो भी कहा जाए, कब्जेदारी का भाजपा विरोध इसलिए नहीं कर सकी क्योंकि उसके दो पूर्व मुख्यमंत्री पभावित हो रहे थे। चाहिए तो यह था कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद वे स्वतः बंगला को खाली कर देते लेकिन उन्होंने विधानमंडल द्वारा पारित किए जाने वाले कानून का सहारा लेना ज्यादा उचित समझा। इस कानून को बनाए जाने को नतीजा यह है कि राजधानी के आधे से अधिक सरकारी बंगलों पर पूर्व में सत्ताधारी रह चुके लोगों का येन-केन-पकारेण कब्जा बना हुआ है। कुछ पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में तथा अधिकांश सत्ता में रहते हुए स्थापित ट्रस्टों, पार्टी कार्यालयों या अन्य पकार के संग"नों के नाम से काबिज इन बंगलों में या तो ताला लटका रहता है या फिर यदाकदा कुछ चहल पहल हो जाती है। कभी मंत्रियों के आवास के रूप में चिन्हित विक्रमादित्य मार्ग पूरी तरह से `समाजवादी' हो गया है और अधिकारियों के आवास के रूप में चिन्हित माल एवेन्यू `बहुजन समाजवादी।'

पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने तो अपने लिए चार बंगलों को तोड़कर एक आवास बना लिया है। पूर्व मंत्रियों की संतानों ने अपने पिता के नाम पर ट्रस्ट बनाकर बंगलों पर कब्जा कर रखा है। अवैध और अनैतिक इस पकार की कब्जेदारी रहे, अवैध निर्माण को जो पायः रसूखदार लोगों के ही हैं, कैसे ढहाया जाएगा? योगी सरकार के इस कदम की अनुगम किए जाने की पतीक्षा रहेगी और उसकी सफलता असफलता ही कानून का शासन स्थापित करने की गारंटी की विश्वसनीयता साबित करेगी।

पिछले कुछ दशकों में जो भी शहर विकसित हुए हैं उनमें अवैध निर्माणों को भूमि उपयोग नियम बदलकर वैध कर देने का, कुछ जुर्माना लेकर जो खेल खेला जा रहा है उससे जहां सत्ताधारी लोगों जिनमें राजनेता के साथ बड़ी संख्या में नौकरशाही अमला शामिल है, न केवल भ्रष्टाचार बढ़ा है अपितु यातायात बाधित हुआ है, गंदगी बढ़ी है और साथ ही अपराध में इजाफा हुआ है।

उत्तर पदेश की राजधानी लखनऊ में `कंपाउडिंग' के जरिये भूमि उपयोग को बदलकर आवासीय परिसर को व्यावसायिक उपयोग में बदलने का ऐसा दुष्परिणाम में हुआ है कि न केवल पुरानी बस्तियों की शक्ल बदल गई है। अपितु नवीन नगरों में ट्रैफिक जाम होने लगे हैं। मुख्य सड़कें दोनों ओर बने आवासीय निर्माण को व्यावसायिक के रूप में परिवर्तित करने के परिणाम देखने हो तो आधुनिक सुविधाओं के साथ विकसित किए जाने का दावा जिस गोमतीनगर में किया जाता है, उसका निरीक्षण करना चाहिए, जहां गंदगी और सड़क जाम से रूबरू होना नित्य का नियम हो गया है।

आवासीय भूखंडों पर अनेक बड़े-बड़े मॉल, शोरूम, होटल, खाने-पीने के ढाबे शराब की मॉडल शाप, जहां बै"कर पीने की छूट है और आधे से अधिक सड़क पर वाहन पार्किंग के कारण बाधित आवागमन, दुर्घटनाएं भूमि उपयोग नियम बदलने के औचित्य पर भले ही पश्नचिन्ह लगा रही हो लेकिन राजसत्ता पर कोई पभाव नहीं है। क्योंकि कुछ नियम में बदलाव से लाभान्वित हैं और कुछ नित्य की वसूली के पभाव में हैं। यद्यपि राजनीतिक और उच्च पशासनिक अधिकारियों के कुछ ही ऐसे निर्माण हैं जिन्होंने भू-उपयोग नियम में बदलाव का लाभ उ"ाया है, लेकिन उनको मिले लाभ ने आम लोगों यहां तक कि जागरुकता के लिए पहरुआ ने पत्रकारों को भी नियम बदलाव से लाभान्वित होने का अवसर पदान किया है। ऐसा केवल राजधानी में ही नहीं है। पत्येक नगर में यही स्थिति है।

नगरों में अधिकाधिक संख्या में बढ़ती आबादी और चारपहिए वाहनों की बहुलता तो कारण है ही लेकिन सबसे बड़ा कारण है नियम बदलकर अवैधता को वैध किया जाना जिनके सामने की पार्किंग आवागमन को बाधित करती है। सर्वोच्च न्यायालय ने तालाबों का पुनरुद्धार करने के लिए उन पर बन गए आवासीय भवनों को गिरा देने का आदेश दिया है। लखनऊ में कई मोहल्ले झील और तालाब के नाम से अभी भी विदित हैं लेकिन वहां अब न तो झील ही है और न तालाब। ग्रामीण अंचलों में तो वन, तालाब, झील, गांव समाज की भूमि पर उसी पकार अवैध कब्जे किए गए हैं जैसे शहरों में वक्फ और धर्मार्थ की जमीन पर। काई भी मंदिर-मस्जिद, गुरुद्वारा शायद ही हो जो व्यावसायिक निर्माण के घेरे में न आ गया हो। आबादी के बीच में आने वाले चर्च या स्कूल भी अब इसी राह पर चल पड़े हैं।

क्या कुछ हजार अवैध निर्माण ढहाए जाने से जिन पर अमल में संदेह बना हुआ है अवैधता को समाप्त किया जा सकता है। एक पकार की अवैधता जा सुविधा को भी लोगों को वैध बनाकर जब तक उपलब्ध होती रहेगी किसी भी पकार की अवैधता को समाप्त कर पाना संभाव नहीं होगा।

सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली में सरकारी बंगलों पर काबिज `पूर्व' लोगों के हटाने के बार-बार के निर्देश को अभी तक लागू नहीं करा सकी है। उत्तर पदेश की योगी सरकार ने जिस गति से काम करना शुरू किया है और अवैध वधशालाओं को बंद कराने में जो सफलता पाप्त किया है, उससे यह विश्वास करना स्वाभाविक है कि वह सभी पकार के अवैध कामों को जिनमें निर्माण भी शामिल है, से पदेश को मुक्ति मिल सकेगी। लेकिन इसमें यदि संदेह की गुंजाइश है, जो सफलता पर पश्नचिन्ह लगाती है तो वह है रसूखदार लोगों के अवैध कब्जों से मुक्त कराने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को निष्पभावी करने के लिए पिछली सरकार के द्वारा बनाया गया कानून पभावी रहना।

भाजपा का संकोच यदि अपनी ही वर्गों के दो नामधारी व्यक्तियों के बंगलों को बचाने के लिए चुप्पी साधे रखने का रवैया बना रहा तो न केवल राजधानी अपितु सारे पदेश को अवैधता से मुक्ति दिलाना संभाव नहीं होगा।

आश्चर्य तो यह है कि इस वैधता का लाभ वे लोग उ"ा रहे हैं, जिनके पास राजधानी में अपने स्वयं के आवास हैं। इनमें राजनेता हैं ही बड़ी संख्या में वरिष्ठ पशासनिक अधिकारी भी शामिल हैं। एक ओर तो वे अनुदानित सुविधायुक्त सरकारी आवासों पर काबिज हैं चाहे सत्ता से बाहर रहे या स्थानांतरित हो जाए दूसरे अपने निजी आवासों को किराये पर ज्यादातर सरकारी विभागों को उ"ाकर आमदनी भी कर रहे हैं।

क्या योगी सरकार रसूखदार लोगों को जनहित में कानून का सहारा लेकर अनैतिक कृत्यों से विरत होने के लिए माहौल बना सकेगी? ऐसा संभव होने पर ही अवैधता के खिलाफ वैधता का अभियान सफल हो सकेगा अन्यथा `कुछ दिनों में यह भी सरकार पुराने ढर्रे पर लौट आएगी' की पनप रही भावना का पभाव कम नहीं होगा। रसूखदार लोगों के अवैध कब्जे को वैध बनाने के पभाव कितने भवनों पर पड़ा है और उन लोगों की रुचि के अनुरूप सामंजस्य में कितना धन व्यय किया गया है तथा रखरखाव पर क्या व्यय हो रहा है इसका एक `श्वेत पत्र' सरकार को पकाशित करना चाहिए।

रसूखदार लोगों के कब्जे के ये भवन राजभवन, मुख्यमंत्री कार्यालय विधानभवन और सचिवालय से दस से पचास मीटर की दूरी पर ही है, क्या सुरक्षा की दृष्टि से यह उपयुक्त है। इनके कारण हो रहे ट्रैफिक जाम कभी भी संकट का कारण बन सकता है। सचिवालय में तो कारों की इतनी बहुलता हो गई है कि उनको सड़क के दोनों तरफ पार्प किया जा रहा है।
भू-माफियाओं से मुक्त करने का लाभ रसूखदार लोगों के लिए वैध किए गए अवैधता को समाप्त किए बिना सफलता मिलना क"िन है।

(लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं।)

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