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तीन तलाक के संरक्षण के लिए बाबरी मस्जिद कुर्बान कर दी जाएगी?

👤 admin5 | Updated on:18 May 2017 3:31 PM GMT
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खुर्शीद आलम

तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल द्वारा पक्ष रखते हुए इसे आस्था से जुड़ा मामला बताने पर मुसलमानों में गहरी चिन्ता व्यक्त की जा रही है। `रोजनामा खबरें' में संपादक कासिम सैयद ने पहले पेज पर प्रकाशित अपनी समीक्षा में सवाल उठाया है कि तीन तलाक के संरक्षण के लिए बाबरी मस्जिद कुर्बान कर दी जाएगी? बोर्ड के वकील तीन तलाक की तुलना राम के अयोध्या में जन्म से करके क्या कहना चाहते हैं। कपिल सिब्बल ने तीन तलाक को 1400 वर्ष पुरानी परंपरा बताया है तो क्या यह मान लिया जाए और जिस तरह तुलना की है तो क्या बोर्ड का भी यही दृष्टिकोण है। यह सवाल आगे उठ सकता है कि जब तीन तलाक शरीयत का नहीं आस्था का है और सुप्रीम कोर्ट इसे मान ले तो इसको दलील बनाकर बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम के पैदा होने को आस्था से जुड़ा समझकर बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले में इसे नजीर बनाया जा सकता है और इसे किसी बुनियाद पर चैलेंज करना मुश्किल हो जाएगा। इसका मतलब यह है कि मुसलमान खुद ही अपना दावा छोड़ देंगे यदि नहीं तो पूछा जा सकता है कि तीन तलाक पर आस्था स्वीकार लेकिन राम जन्मभूमि पर आस्था स्वीकार क्यों नहीं? बोर्ड को स्पष्ट करना चाहिए कि तलाक शरीयत का हिस्सा है आस्था का नहीं।

गत दिनों सुप्रीम कोर्ट के वकील अब्दुर्रहमान द्वारा एक प्रेस कांफ्रेंस में पर्सनल लॉ बोर्ड पर बाबरी मस्जिद और तीन तलाक के लिए हवाला द्वारा पैसा लेने का आरोप लगाया था और इसी आधार पर दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर मामले की जांच की मांग की है, पर चर्चा करते हुए जावेद कमर ने दैनिक `सियासी तकदीर' में लिखा है कि वकील अब्दुर्रहमान ने अपनी याचिका में बहुत गंभीर और खतरनाक आरोप लगाए हैं कि देश के कुछ मौलवी और बोर्ड द्वारा यह अफवाह फैलाई जा रही है कि मोदी सरकार की ओर से मुस्लिम पर्सनल लॉ को खत्म करने की कोशिशें की जा रही हैं और शरीयत पर हमला हो रहा है और इस आधार पर यह कहा जा रहा है कि यदि देश के 15 लाख मुसलमान मरने का फैसला करें तो शरीयत के खिलाफ चलाई जाने वाली मुहिम रुक जाएगी हमें नहीं मालूम कि सच क्या है? लेकिन जिस तरह प्रेस कांफ्रेंस करके बोर्ड पर आरोप लगाया और हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की उसके लिए जरूरी है कि बोर्ड के पदाधिकारी इन आरोपों पर अपनी सफाई पेश करें। कहीं ऐसा तो नहीं कि यह मामला बोर्ड के खिलाफ रची गई किसी षड्यंत्र का हिस्सा हो।

`तलाक का नया कानून' से दैनिक `जदीद खबर' ने अपने संपादकीय में लिखा है कि तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में जारी बहस के दौरान सरकार ने कहा है कि यदि तीन तलाक का तरीका खत्म हुआ तो सरकार उसके विकल्प के तौर पर मुसलमानों के शादी-ब्याह और तलाक से संबंधित नया कानून बनाएगी। अर्थात मुस्लिम पर्सनल लॉ को खत्म करके अपनी तरफ से बनाया कानून लागू करेगी। तीन तलाक को खत्म करने के पीछे वास्तव में देश में मुसलमानों को हासिल धार्मिक आजादी को खत्म करने की मुहिम है। सरकार सीधे तरह इस आजादी को खत्म नहीं कर सकती क्योंकि इसमें देश का संविधान सबसे बड़ी रुकावट है, लेकिन वह इस धार्मिक आजादी को कानून और संविधान से टकराव की आड़ में धीरे-धीरे कमजोर और अव्यवहारिक बना सकती है। तीन तलाक की आड़ लेकर इस समय पूरे देश में इस्लामी शरीयत और मुस्लिम पर्सनल लॉ को निशाना बनाने की मुहिम चल रही है। मुस्लिम महिलाओं के लिए तो हमदर्दों के आंसू बहाए जा रहे हैं लेकिन दहेज के नाम पर जिन्दा जलाने, करोड़ों तलाकशुदा विधवाओं और आश्रमों में दयनीय जिन्दगी गुजराने वाली महिलाओं पर कोई चर्चा नहीं कर रहा है।

`प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन साल सब ठीक हैं लेकिन खतरा अपनों से है' से दैनिक `अखबारे मशरिक' ने लिखा है कि मोदी सरकार के तीन साल पर आए सर्वे के मुताबिक 60 फीसदी से ज्यादा जनता यह समझती है कि मोदी सरकार या तो उनकी उम्मीदों पर पूरी उतरी है या उनकी आशा से बढ़कर साबित हुई है। 81 फीसदी मानते हैं कि मोदी के नेतृत्व में भारत के विश्व स्तर पर बेहतरी हुई है। 64 फीसदी का मानना है कि भारत ने पाकिस्तान के हवाले से जो रणनीति अपनाई है वह ठीक है। मोदी और उनके साथी इससे खुश होंगे लेकिन उन्हें यह बात याद रखनी चाहिए कि इसमें बड़ा हिस्सा चीनी अर्थव्यवस्था में आई गिरावट का है। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र से 10 साल की सामाजिक शांति मांगी थी ताकि वह इस देश की तकदीर बदल सकें। लेकिन ऐसा लगता है कि आरएसएस और खुद भाजपा का एक वर्ग इनके सपनों को हाइजैक कर रहा है। जाहिर है ऐसी स्थिति में मोदी का सपना पूरा नहीं हो सकता।

`मोदी सरकार के तीन साल, कैसे कहें बेमिसाल' से डॉ. यामीन अंसारी ने दैनिक `इंकलाब' में लिखा है कि अप्रैल से जून 2017 की तिमाही के लिए केंद्र सरकार ने बचत खातों, पीपीएफ और किसान विकास पत्र पर मिलने वाले ब्याज पर गत तिमाही के मुकाबले 0.10 फीसदी कमी कर दी। आईटी सेक्टर में काम करने वाले इंजीनियरों को भी आने वाले दिनों में बड़ा झटका लग सकता है। आने वाले समय में इंजीनियरों के सामने काम का संकट पैदा होने की संभावना है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि अमेरिका की नई वीजा पॉलिसी से लोगों के सामने समस्याएं पैदा हो गई हैं। जिस तरह अवसर कम हो रहे हैं और बाजार में तब्दीली आ रही है उसे देखते हुए 2020 तक भारत के 40 लाख सॉफ्टवेयर इंजीनियरों में से 20 फीसदी अपनी नौकरी गंवा देंगे। भारत के 48 करोड़ वर्किंग क्लास सहित कई क्षेत्रों में भी अनिश्चितता के बादल छाए हैं। वोडाफोन और आइडिया एक होने जा रहे हैं इससे 30 से 40 फीसदी कर्मचारी प्रभावित हो सकते हैं। सबसे ज्यादा नौकरी देने वाला बैंकिंग सेक्टर के भी हालात बेहतर नहीं हैं।

`कुलभूषण जाधव केस में भारत की मजबूत घेराबंदी' से दैनिक `प्रताप' के संपादक अनिल नरेन्द्र ने अपने संपादकीय में लिखा है कि नीदरलैंड की राजधानी हेग में पीस पैलेस के द ग्रेट हॉल ऑफ जस्टिस में भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव के मामले में सोमवार को सुनवाई के दौरान भारत ने बहुत मजबूती से अपना पक्ष रखा। भारत ने जाधव की मौत की सजा पर तत्काल रोक लगाते हुए कहा कि पाकिस्तान ने इस मामले में न सिर्प वियना समझौते का बल्कि बुनियादी मानवाधिकारों का भी उल्लंघन किया है। यह पहला मौका है जब भारत सरकार अपने एक नागरिक को बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय तक पहुंची है। नेचुरल जस्टिस भी तो होना चाहिए। भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान की सैन्य अदालत में सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखने का मौका ही नहीं दिया और न ही उनके खिलाफ पाक के पास कोई पुख्ता सबूत हैं।

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