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अखिलेश लोकतंत्र की रक्षा कर रहे हैं?

👤 admin5 | Updated on:19 May 2017 3:35 PM GMT
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श्याम कुमार

पूर्व मुख्यमंत्री एवं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी की सांप्रदायिक राजनीति से लोकतंत्र खतरे में है। कुछ लोगों ने इस पर टिप्पणी की कि अखिलेश यादव को स्पष्ट करना चाहिए कि यह कथन उनका वास्तविक बयान है अथवा उन्होंने चुटकुला सुनाया है। लोगों ने कहा कि देश में सांप्रदायिकता की जननी यदि कांग्रेस पार्टी व नेहरू वंश है तो सांप्रदायिकता को फैलाने एवं उसे भरपूर खाद-पानी देने का काम समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी, तृणमूल कांग्रेस पार्टी, आम आदमी पार्टी आदि तमाम पार्टियों ने किया।

इन सभी पार्टियों ने फर्जी सेकुलरवाद का चोला ओढ़कर मुस्लिम-तुष्टिकरण, हिन्दू-विरोध एवं पाचीन भारतीय संस्कृति के दमन की नीति अपनाई। उन्होंने समाज को हिन्दू-मुस्लिम, दो वर्गों में बांटने का तथा उन्हें एक-दूसरे से लड़ाने का काम किया।

वे अपनी विनाशकारी तुष्टिकरण की नीति द्वारा अपने को मुसलमानों को सबसे बड़ा रहनुमा बताते रहे तथा हिन्दुओं से उन्हें भयभीत करते रहे। इन फर्जी सेकुलरियों द्वारा पिछले सत्तर साल से देश का पच्छन्न रूप से इस्लामीकरण किया गया। अखिलेश यादव की सरकार ने यह चालाकी की कि बीच-बीच में हिन्दुओं के हित की बात भी कर देती थी, किन्तु वह कृत्य मात्र दिखावा व छलावा होता था। अखिलेश यादव के शासनकाल में सिर्प `हाय मुसलमान, हाय मुसलमान' होता रहा। आजम खान ने तो अपनी कट्टर मुस्लिम परस्ती से गलत मुसलमानों को भरपूर अनुचित संरक्षण दिया तथा पदेश के माहौल में सांप्रदायिकता का जहर खूब घोला। अखिलेश यादव क्या उन सभी कुकृत्यों को लोकतंत्र की रक्षा मानते हैं?

लोगों का अखिलेश यादव से सवाल है कि विधानमंडल के संयुक्त अधिवेशन में राज्यपाल के अभिभाषण के समय जो शर्मनाक दृश्य उपस्थित किया गया, क्या उससे लोकतंत्र मजबूत होगा? स्वयं अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी के लोगों ने जिस तरह की अशोभनीय हरकतें कीं, क्या उनसे लोकतंत्र खत्म नहीं होगा? सदन में एक से एक बुरे दृश्य पस्तुत किए गए, जिन्हें टीवी पर पूरे देश ने देखा। राज्यपाल विधानमंडल का अंग होता है तथा राज्य का सर्वेच्च मुखिया है। उसके अभिभाषण में व्यवधान डालना उस सर्वेच्च पद को अपमानित करना है। राज्यपाल पर निशाना साधते हुए सदन में कागज के गोले फेंके गए। सपा के विधायक जो पोस्टर साथ लाए थे, उन्हें फाड़-फाड़कर उनके गोले बनाकर फेंके जा रहे थे।

कुछ सम्मानित सदस्य पोस्टर फाड़कर पीछे से गोलों की सप्लाई कर रहे थे। इतना ही नहीं, मेजों पर चढ़कर राज्यपाल को लक्ष्य कर गोले फेंके जा रहे थे। सदन के सुरक्षाकर्मी जिस पकार जीतोड़ पयासकर उन `मिसाइलों' की बरसात को रोकने का पयास कर रहे थे, उसे सभी ने देखा। ऐसा लग रहा था, जैसे सदन में बैटमिंटन का खेल चल रहा है। अभद्रता की पराकाष्"ा तब हो गई, जब सीटी भी बजाई जाने लगी। आश्चर्य हुआ कि वे लोग सीटी साथ लेकर आए थे। सपा के दो सदस्य तो मेज पर खड़े होकर छाती पीट रहे थे। राज्यपाल को अपमानित करने के इस सुनियोजित षड्यंत्र की सफलता पर अखिलेश यादव वहीं खड़े होकर बड़ी पसन्नता एवं गर्व से पूरा दृश्य देख रहे थे। इस घटना पर मुझे `इमरजेंसी' के समय का एक पुराना पकरण याद आ गया। इलाहाबाद में पदेश की तत्कालीन वरिष्" मंत्री राजेंद्र कुमारी के आवास पर मैं बै"ा हुआ था। वह मुझे ड्राइंग रूम में बि"ाकर एवं चाय देकर कुछ काम से भीतर चली गईं। तभी पास के सोफों पर कांग्रेस के कई युवा आकर बै" गए और आपस में बातें करने लगे। उस समय उत्तर पदेश विद्युत परिषद के अध्यक्ष बालिगा थे, जो अत्यंत योग्य एवं ईमानदार अधिकारी थे।

वह अगले दिन इलाहाबाद आने वाले थे। उन्होंने शायद युवक कांग्रेस के लोगों की गलत बातों को मानने से इंकार कर दिया था, अतः वे युवा कांग्रेसी उनसे खफा थे। वे लोग अगले दिन बालिगा की घोर बेइज्जती करने की व्यूह-रचना बना रहे थे। मुझे बालिगा जैसे श्रेष्" एवं सज्जन अधिकारी के बारे में वह व्यूह-रचना सुनकर बहुत बुरा लगा तथा मैंने घर जाकर बालिगा को फोन कर इलाहाबाद में सावधान रहने को कह दिया था।

यहां मूलभूत पश्न यह है कि क्या हुड़दंग व अशोभनीय हरकतों को लोकतंत्र का हिस्सा माना जाए। संसद व विधानमंडलों पर देश एवं देशवासियों को सही दिशा देने की जिम्मेदारी होती है। क्या ऐसी हरकतों से वे देश को सही दिशा दे सकेंगे? ऐसा व्यक्ति जो हाल तक पदेश का मुख्यमंत्री रहा हो, ऐसी हरकतों को रोकने के बजाय उनका सूत्रधार बने, यह बहुत शर्मनाक है। अफसोस होता है कि जिस व्यक्ति की सज्जनता पर पदेश की जनता जान छिड़कती थी, उसने पप्पू एवं केजरीवाल की संगत में अपने को इतना निम्नस्तरीय बना लिया है! अगले दिन सपा विधायक दल के नेता रामगोविंद चौधरी जैसे सज्जन व्यक्ति की यह सफाई सुनकर लोगों ने अपना माथ पीट लिया कि सपा के लोग राज्यपाल पर कागज के गोले नहीं फेंक रहे थे, बल्कि उनकी सेवा में अपना ज्ञापन बढ़ा रहे थे। अखिलेश यादव अब पप्पू जैसी हरकतें करने लगे हैं। उनकी भाषा भी वैसी ही अभद्र हो गई है। कम से कम उत्तर पदेश में तो अब ऐसे उपाय किए जाने चाहिए कि भविष्य में ऐसी कोई शर्मनाक हरकत न हो। लोगों का सुझाव है कि विधानसभा एवं विधानपरिषद के सदनों में पवेश करने से पहले विधायकों की यह तलाशी ली जानी चाहिए कि वे अपने साथ पदर्शन की कोई वस्तु तो साथ लेकर भीतर नहीं जा रहे हैं। अन्य उपाय भी सोचे जाने चाहिए।

ईमानदारी उस युग

की पहचान थी

पहले पिता गए, फिर मां गईं, फिर पत्नी का देहावसान हुआ और अब गत 22 अपैल, 2017 को पितातुल्य बड़े भाई भी विदा हो गए। जैसे, एक आदर्श युग का अंत हो गया। वह युग, जिसका कलेवर सज्जनता व परोपकार की भावना थी तो ईमानदारी उसकी आत्मा थी। लेकिन वह ऐसी बलिवेदी थी, जिस पर हमारा परिवार एक के बाद एक भेंट चढ़ गया। मेरे पिताजी तीन भाई थे, ताऊजी बड़े कानूनविद् थे तथा विधि जगत में उनका बहुत सम्मान था। उनकी एक पुत्री थी, जिसका विवाह अत्यंत वैभवपूर्ण ढंग से किया गया था। दामाद इलाहाबाद में ख्यातिपाप्त सीएवी कॉलेज के उपपधानाचार्य थे तथा योग्यता एवं क"ाsर अनुशासन के मामले में उनकी बड़ी शोहरत थी। उनसे गलत काम कोई भी नहीं करा सकता था। मेरे पिता का ही रूप उनमें साकार था। हमारे चाचा के कोई संतान नहीं थी। पिताजी की पहली संतान के रूप में जब बड़े भाई साहब का जन्म हुआ तो परिवार में जो खुशी हुई थी, उसके वृत्तांत मैंने बचपन में न केवल घर में सुने थे, बल्कि बाहर भी उसके किस्से चर्चित थे। भाई साहब का जन्म लखनऊ में हुआ था। उस समय लखनऊ में घर में बहुत जश्न मना था। लखनऊ की मशहूर भांड मंडली का कार्यक्रम भी विशेष चर्चित हुआ था। बड़े पैमाने पर भोज का आयोजन हुआ था।

वाराणसी जनपद में स्थित गांव में हमारी विशाल जायदाद थी, जिसमें बहुत बड़ा घर, तमाम खेत, आम आदि के कई बड़े-बड़े बाग, कई तालाब, मंदिर आदि शामिल थे। मुझे बचपन की याद है, गांव से इलाहाबाद हमारे घर में अनाज व अन्य सामग्रियां आया करती थीं। आम के मौसम में कई बैलगाड़ियों में भरकर आम आता था, जो नीचे दो कमरों व दालान में बिछा दिया जाता था। आम-सेवन के लिए घर में रिश्तेदारों व अन्य लोगों का तांता लग जाता था। काफी आम वितरित किए जाते थे। आम के अचार, अमावट, सिरका आदि बना करते थे।

आम का एक अचार `नोनचा' भी बनता था, जो पिछले कई दशकों से मैंने नहीं देखा है। मां तथा अन्य लोग बताते थे कि भाई साहब का जन्मोत्सव गांव में बहुत बड़े पैमाने पर मनाया गया था। कई दिनों तक लंगर चला था। गुलाबजामुन व पूड़ियां हमारे गांव की विशेषता थीं। पूड़ियां बहुत बड़े आकार की कागज-जैसी पतली बेली व छानी जाती थीं। इतनी पतली होती थीं कि लोग कई पूड़ियां एक साथ मिलाकर खाते थे। सब्जियां भी बहुत स्वादिष्ट बनती थीं। लेकिन बड़े आकार के गुलाबजामुन लाजवाब होते थे तथा पूड़ियों की तरह उनकी भी दूर-दूर तक ख्याति थी। पिताजी गांव में घर के सामने स्थित मंदिर में रामनवमी एवं जन्माष्टमी के अवसर पर वृहत पूजा एवं भोज आयोजित करते थे तथा बाद में पूड़ियों व गुलाबजामुनों का काफी पसाद इलाहाबाद में हमारे घर आता था। गांव पिताजी ही जाया करते थे और वही पूरी जायदाद संभालते थे। अचानक उनका निधन हो गया। उस समय खेतों की चकबंदी नहीं हुई थी तथा बिखरी हुई जायदाद की हमें जानकारी नहीं थी। परिणाम यह हुआ कि करोड़ों की वह जायदाद हाथ से निकल गई। हमारे भाई बाहर थे तथा इलाहाबाद में पत्रकारिता एवं समाजसेवा में मेरी ऐसी भीषण व्यस्तता थी कि उस जायदाद के बारे में पता लगाने का समय ही नहीं मिल पाया।

मां ने बताया था कि जब बड़े भाई साहब का जन्म हुआ था, उस समय हमारे चाचा गांव में रहते थे। लेकिन भाई साहब के जन्म के बाद उनके पाण भाई साहब में ही बस गए थे और वह उनके बिना नहीं रह पाते थे, अतः अब वह अधिकतर इलाहाबाद में हमारे पास रहने लगे थे। एक बार बाल्यावस्था में भाई साहब अस्वस्थ हो गए तो चाचा चिंता
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