Home » द्रष्टीकोण » कश्मीर समस्या और पाक फ्रायोजित आतंक एक चुनौती

कश्मीर समस्या और पाक फ्रायोजित आतंक एक चुनौती

👤 admin5 | Updated on:12 Jun 2017 3:49 PM GMT
Share Post

वाईएस बिष्ट

केंद्र सरकार ने अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है। इन तीन सालों के दौरान सरकार ने जो भी उपलब्धियां हासिल की हैं वह उन्हें जनता तक पहुंचाने में लगी हुई है। इसी क्रम में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने अपने मंत्रालय के पिछले तीन साल के कामकाज की उपलब्धियों का लेखाजोखा पत्रकारों को देते हुए कहा कि पिछले तीन साल में देश के सुरक्षा हालात सुधरे हैं। गृहमंत्री ने कहा कि दुनिया का खूंखार आतंकी संग"न आईएसआईएस भारत में पैर जमाने में कामयाब नहीं हो सका है। यह हमारी सुरक्षा एजेंसियों के बीच हुए खुफिया तालमेल का ही नतीजा है कि आईएसआईएस अपने नापाक इरादों में कामयाब नहीं हो पाया है। राजनाथ सिंह ने कहा कि पिछले तीन सालों के दौरान 90 से ज्यादा आईएसआईएस समर्थकों को गिरफ्तार किया गया। यह आतंकवाद के खिलाफ हमारी बड़ी सफलता कही जा सकती है।

राजनाथ सिंह ने कहा कि पिछले सालों के दौरान जम्मू-कश्मीर में भी हालात सुधरे हैं और वहां पर आईएसआईएस के खतरे को नियंत्रित करने में कामयाबी मिली है। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान से आतंकी गतिविधियों में 75 पतिशत की कमी आई है और पिछले तीन सालों के दौरान सुरक्षाबलों ने 368 आतंकियों को मार गिराया है। देश में पिछले 20 सालों के मुकाबले आतंकी घटनाओं में कमी आई है। उन्होंने कहा कि जो समस्या 1947 से चली आ रही है, उसका समाधान तुरन्त नहीं निकाला जा सकता है। लेकिन हम लोग पूरी कोशिश कर रहे हैं कि इस समस्या का समाधान जल्द से जल्द हो।

अगर हम पिछले 27 वर्षों में अलगाववादी हिंसा की बात करें तो इन सालों के दौरान जम्मू-कश्मीर में 40,961 लोगों की जानें जा चुकी हैं। 1990 से 9 अफ्रैल 2017 तक मौत के शिकार हुए इन लोगों में स्थानीय नागरिक, सुरक्षा बलों के जवान और आतंकवादी शामिल हैं। इस दौरान 5055 सुरक्षा बल के जवानों ने अपनी शहादत दी है, जबकि 13,502 सैनिक घायल हुए हैं। इसके अलावा 13,941 नागरिकों की मौत हुई और 21,965 आतंकवादी मारे गए। तीन दशक की हिंसा के दौरान 2001 में सबसे ज्यादा 3,552 मौतें हुई। जिनमें 996 स्थानीय लोग और 2020 आतंकवादी मारे गए, जबकि सुरक्षा बल के 536 जवान शहीद हुए। इसके बाद 2008 से स्थानीय नागरिकों और सुरक्षा बल के जवानों की मौत का आंकड़ा 2 अंकों में सिमट गया है। 2010 से 2016 तक स्थानीय नागरिकों की मौत का आंकड़ा 47 से 15 तक आ गया है। यह जानकारी जम्मू-कश्मीर के आरटीआई कार्यकर्ता रमन शर्मा को गृह मंत्रालय ने दी है।

केंद्र सरकार लगातार जम्मू-कश्मीर में अमन-चैन कायम करने के लिए कई तरह से कोशिश कर रही है। उसके लिए सरकार ने अब अलगाववादियों और आतंकवादियों को मिल रही फंडिंग की जांच करानी शुरू की है। इसी के तहत एनआईए ने कश्मीर में 14 और दिल्ली में 8 स्थानों पर आतंकवादियों को फंडिंग मामले के संबंध में छापेमारी की है। दिल्ली और श्रीनगर के हवाला ऑपरेटरों के घरों पर भी छापेमारी हुई है। ज्ञातव्य रहे कि एनआईए ने कुछ दिन पहले अलगाववादी नेता फारुक अहमद डार, जावेद अहमद बाबा और नईम खान को दिल्ली बुलाया था।

एनआईए की जांच में यह बात सामने आई है कि पिछले लगभग 9 सालों के दौरान भारत में ट्रेडिंग कंपनी के जरिये पुंछ और उरी के रास्ते व्यापार के नाम पर डेढ़ हजार करोड़ रुपए से ज्यादा आए। आशंका जताई जा रही है कि ये पैसा आंतकी मंसूबों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया गया। इसीलिए सरकार को शक है कि व्यापार के जरिये हुर्रियत नेताओं, जेकेएलएफ, हिज्बुल आतंकियों के पास ये पैसा पहुंचा होगा। अब एनआईए यह जांच करने में लगी हुई है कि किन-किन व्यापारियों के जरिये यह पैसा कहां कहां तक पहुंचा है। अब सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह फंडिंग के मामले को जल्दी से जल्दी अंजाम तक पहुंचाए जिससे कि कश्मीर के युवाओं की आंखें खुले और वह गलत रास्ते में जाने से बचें।

जम्मू-कश्मीर में सेना के खिलाफ शरारती तत्वों द्वारा किए जो रहे पदर्शन में पाकिस्तान और इस्लामिक स्टेट के झंडे लहराने वालों के खिलाफ भारतीय सेना सख्त कदम उठाएगी। यह बात जनरल विपिन रावत ने कही। उन्होंने कहा कि सेना अब ऐसी किसी भी गतिविधि को बर्दाश्त नहीं करेगी, जो भी कश्मीर में पाकिस्तान और इस्लामिक स्टेट के झंडे लहराएगा, भारतीय सेना उसे भी अब आतंकवादी मानेगी और जैसी कार्रवाई आतंकियों के खिलाफ की जाती है, पाक और इस्लामिक स्टेट के झंडे लहराने वालों के खिलाफ भी वैसी कार्रवाई की जाएगी। ज्ञातव्य रहे कि कश्मीर में आए दिन शरारती तत्वों द्वारा भारत विरोधी नारे लगाए जाते हैं जिसके कारण कई बार सुरक्षा बलों और शरारती तत्वों के बीच झड़प भी हो जाती है और उसमें कई लोग घायल भी हो जाते हैं और तब इसका इल्जाम भारतीय सेना के ऊपर थोपा जाता है।

कश्मीर के हालात बिगाड़ने पर तुले आतंकी किस तरह बौखलाए हुए हैं, इसे बयान कर रही है शेपियां में लेफ्टिनेंट उमर फैयाज की हत्या। शोपियां में 23 साल के लेफ्टिनेंट उमर फैयाज की हत्या यह साबित करती है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकी अपनी जमीन खिसकने से बौखला गए हैं और उसी का नतीजा है कि उन्होंने सेना के निहत्थे जवान के साथ बर्बता दिखाई है। लेफ्टिनेंट उमर फैयाज की यह पहली छुट्टी थी और वह अपने रिश्तेदार की शादी में शामिल होने के लिए वहां जा रखे थे। उसी दौरान आतंकवादियों ने उनकी हत्या कर दी। किसको पता था कि उमर फैयाज की यह छुट्टी उनकी आखिरी छुट्टी बन जाएगी।

जम्मू-कश्मीर में लगातार सुरक्षा बलों पर हो रहे आतंकी हमलों के कारण अब सुरक्षा बल भी आतंकियों के सफाये में लग गए हैं। सुरक्षा बलों ने कश्मीर में एक के बाद एक कई आतंकियों को मार गिराया है। सबसे बड़ी कामयाबी 10 लाख के इनामी खूंखार आतंकी सब्जार अहमद भट्ट का मारा जाना है। कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों ने हिज्बुल मुजाहिद्दीन के शीर्ष कमांडर बुरहान वानी के वारिस सब्जार अहमद भट्ट को कुछ हिन पहले ही मार गिराया है। बुरहान वानी के बाद घाटी में हिज्बुल की कमान सब्जार अहमद के हाथ में आ गई थी। सब्जार के खात्मे से एक बार फिर यह साफ हुआ कि घाटी में भारत के खिलाफ बंदूक उ"ाने वालों की जिंदगी दो-चार साल से अधिक की नहीं। बुरहान और सब्जार का वही हश्र हुआ जो आतंक के रास्ते पर चलने वालों का होता आ रहा है लेकिन कश्मीर में आजादी की बेतुकी मांग के जरिए उन्माद पैदा कर युवाओं को आतंक के रास्ते पर धकेलने का सिलसिला जारी है। अब युवाओं को समझना होगा कि आतंक से किसी का भला नहीं हो सकता।

जम्मू-कश्मीर में अफवाहें फैलाने में शरारती तत्वों द्वारा सोशल मीडिया का भी उपयोग किया जा रहा है और सुरक्षा एजेंसियों के लिए सोशल मीडिया पर नियंत्रण करना इतना आसान नहीं है। सोशल मीडिया के माध्यम से केवल अफवाहें फैलाई जाती है बल्कि इससे युवाओं को भी भ्रमित किया जा रहा है। सुरक्षा अधिकारियों का मानना
है कि अब लड़ाई केवल हथियारों से लड़ी जा रही है बल्कि इसके अलावा कम्प्यूटर और स्मार्टफोनों के इस्तेमाल करके
Share it
Top