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चौ. ब्रह्मप्रकाश : एक इतिहास पुरुष

👤 admin5 | Updated on:15 Jun 2017 3:53 PM GMT
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रामदत्त यादव

चौ. ब्रह्मप्रकाश का विराट व्यक्तित्व था। वह दिल्ली के मुगले आजम के रूप में पहचाने जाने वाले दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों एवं सवर्ण, गरीबों के पक्के महानायक के रूप में पहचाने गए। इस महापुरुष की पताका दिल्ली में ही नहीं, संपूर्ण भारत में उच्च शिखर पर 1952 में फहरानी शुरू हुई। तमाम तूफानों का मुकाबला करते हुए दिल्ली के इस शेर का राष्ट्र के क्षितिज पर उदीयमान नक्षत्र के रूप में सन 1918 में उदय हुआ था और सन 1993 में पश्चिमी सभ्यता को ध्वस्त करते हुए पिछड़े, दलितों एवं अल्पसंख्यक वर्गों को हिन्दुस्तान की हर दिशा में कोने-कोने में जाकर उनकी पहचान और अधिकारों की लड़ाई लड़ता-लड़ता सदा के लिए अस्त हो गया।

चौ. ब्रह्मप्रकाश का जन्म 16 जून, 1918 को नैरोबी पूर्वी अफ्रीका में चौ. भगवान दास के घर हुआ। चौधरी साहब के पिता दिल्ली में शकूरपुर गांव के बहुत बड़े जमींदार थे। 19वीं शताब्दी में चौ. भगवान दास अफ्रीका चले गए थे और वहां पर अपना व्यापार करते थे तथा अफ्रीका की आजादी के लिए महात्मा गांधी के नेतृत्व में वहां सक्रिय काम किया। जब अफ्रीका आजाद हो गया तो चौ. भगवान दास अपने देश व गांव शकूरपुर वापस आ गए। यहां आकर गांव मेंअपनी खेतीबाड़ी को संभाला तथा घर गृहस्थी को संभालते हुए स्वतंत्रता आदोलन में कूद पड़े और खेतीबाड़ी की सारी कमाई स्वतंत्रता आंदोलन में लगाते रहे। चौ. भगवान दास सन 1932 में स्वर्ग सिधार गए। उस समय चौ. ब्रह्मप्रकाश की उम्र सिर्प 14 साल थी। उनकी माता श्रीमती पार्वती देवी सन 1929 में स्वर्ग सिधार चुकी थीं।

चौधरी साहब की प्राइमरी शिक्षा शकूरपुर गांव में हुई तथा हाई स्कूल की शिक्षा रामजस स्कूल आनंद पर्वत से हुई। उसके बाद कालेज में शिक्षा ग्रहण की जो कि कमर्शियल कालेज दरियागंज के नाम से था जो आजकल श्रीराम कालेज कहलाता है। वहां से बीए पास किया। चौधरी साहब ने सामाजिक कार्य तथा देश को आजाद कराने के लिए सन 1933 में ही कार्य शुरू कर दिया था। सबसे पहले महात्मा गांधी जी व पं. जवाहर लाल नेहरू जी से प्रभावित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े और एक बड़ा जलसा नांगलोई चौक में कई गांवों के लोगों के साथ किया। वह जलसा बहुत बड़ा था वहां चौधरी साहब ने एक बुलंद आवाज में देश को आजाद कराने का एक नारा दिया कि आप मुझे खून दो मैं आपको आजादी दूंगा। इस नारे पर चौधरी साहब को तथा अन्य कई साथियों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। इस गिरफ्तारी का दिल्ली देहात तथा पूरी दिल्ली में बहुत बड़ा पैगाम गया और सारी दिल्ली के लोग स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े जिनमें श्री आसफ अली साहब, देशबंधु गुप्ता साहब, मीर मुश्ताक अहमद, चौ. हीरा सिंह तथा सभी वर्गों और धर्म के लोग देश को आजाद कराने के लिए कूद पड़े और एक बहुत बड़ा आंदोलन दिल्ली में छिड़ गया। अत अंग्रेजों को चौधरी साहब तथा उनके साथियों को जेल से रिहा करना पड़ा।

चौधरी साहब ने कांग्रेस संगठन को दिल्ली देहात में इतना मजबूत बना दिया कि इनको सन 1937 में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का मंत्री बना दिया और सन 1938 में आल इंडिया नेशनल कांग्रेस का दिल्ली की तरफ से डेलिगेट बना दिया गया। दिल्ली में देश को आजाद कराने के लिए सत्याग्रह आंदोलन छिड़ गया था। उस समय चौधरी साहब को दिल्ली देहात का चार्ज सौंपा गया और सन 1940 में चौधरी साहब के नेतृत्व में दिल्ली देहात ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और गांव-गांव जाकर आंदोलन करते हुए दो बार जेल में बंद हुए। सन 1941 में दो साल की कैद हुई। इसी आंदोलन को मजबूत करते हुए पांच बार जेल गए तथा 1941 से 1945 तक जेल में रहे। इसी दौरान श्रीमती अरुणा आसफ अली के नेतृत्व में क्विट इंडिया आंदोलन में 1943-44 में शामिल हुए और जेल गए। इस तरह कांग्रेस को मजबूत करने तथा देश को आजाद कराने के लिए दिल्ली के सभी नेताओं को साथ रखते हुए दिल्ली में कांग्रेस का एक बहुत बड़ा संगठन बना दिया। इस बात को देखते हुए पं. जवाहरल लाल नेहरू ने सन 1946 में चौधरी साहब को दिल्ली प्रदेश का महामंत्री बना दिया।

चौधरी साहब ने सब नेताओं के साथ रात-दिन मेहनत की और 1947 में देश को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई। 1947 में देश आजाद हुआ। देश के बड़े-बड़े नेताओं ने चौधरी साहब के कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा की और इसको देखते हुए चौधरी साहब को 1951 में दिल्ली प्रदेश का कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया तथा उनक नेतृत्व में असैम्बली के चुनाव लड़ने का फैसला पं. जवाहर लाल नेहरू ने दिया। चौधरी साहब के नेतृत्व में चुनाव हुआ और चौधरी साहब ने अपने हलके शकूरपुर से चुनाव लड़ा तथा भारी बहुमत से चुनाव जीते तथा अपने सब साथियों को चुनाव जिताया। इस तरह कांग्रेस का बहुमत आया और पं. जवाहर लाल नेहरू जी ने चौधरी साहब को पार्टी का नेता चुना तथा 1952 में सबसे कम उम्र यानी 34 साल की उम्र में ही चौधरी साहब दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने। 1952 से लेकर 1955 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे और दिल्ली के सभी कार्य बहुत अच्छे ढंग से किए जिनमें कुछ कानून देश के हित में तथा कुछ लोगों के हित में बनाए।

1957 में संसद के चुनाव हुए और चौधरी साहब ने सदर क्षेत्र से संसद चुनाव भारी मतों से जीता और पांच साल तक संसद में रहकर दिल्ली और देश के हित के लिए कार्य करते रहे। 1962 में संसद का फिर चुनाव हुआ और चौधरी साहब बाहरी दिल्ली से भारी मतों से जीते और देश व कांग्रेस संगठन को मजबूत बनाते रहे। उसके बाद 1966 में चौधरी साहब को पुन दिल्ली प्रदेश का अध्यक्ष बना दिया गया। 1967 में फिर संसद के चुनाव हुए। उस समय चौधरी साहब कांग्रेस के अध्यक्ष थे। टिकटों के बंटवारे में चौधरी साहब की श्रीमती इंदिरा गांधी से सहमति न हो पाई और चौधरी साहब के हिसाब से टिकटें नहीं बंटी जिसे कांग्रेस पार्टी को दिल्ली में नुकसान उठाना पड़ा तथा सात सीटों में से सिर्प एक सीट चौधरी साहब की बाहरी दिल्ली से आई। बाकी सभी छह सीटें कांग्रेस हार गई। इसके बाद 1968 में द्ली में मैट्रोपोलिटन के चुनाव आए और उसमें चौधरी साहब ने कोई दिलचस्पी नहीं ली। इस तरह दिल्ली में 1967 1968 में जनसंघ का पदार्पण हुआ। 1971 में चौधरी साहब के कांग्रेस के साथ मतभेद इतने गहरे हो गए कि उन्हें कांग्रेस छोड़नी पड़ी।

1977 में इमरजैंसी समाप्त हुई। चुनाव हुए और जेपी साहब ने चौधरी साहब को बाहरी दिल्ली से चुनाव लड़ने को कहा। चौधरी साहब ने चुनाव लड़ा और भारी बहुमत से चुनाव जीते। सरकार बदली और 1979 में चौ. चरणEिसह प्रधानमंत्री बने। चौ. चरण सिंह ने चौधरी साहब को कृषि मंत्री, सिंचाई सहकारी तथा खाद्य मंत्री का कार्य सौंपा जो कि चौधरी साहब ने बड़ी कुशलता से संभाला जिसमें उन्होंने फसलों का उचित मूल्य निर्धारण करना, पशुओं के पालन के लिए बैंक को तथा सहकारी बैंकों से ऋण उपलब्ध कराना, श्वेत, हरित क्रांति को किसानों तक पहुंचाना तथा उसके लिए सरकार से पूरी-पूरी मदद करना इत्यादि-इत्यादि। 1975 से 1977 तक आपने श्री चंद्रशेखर साहब से मिलकर सारे देश तथा खासकर बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश में जा-जाकर जेपी आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई।

चंद्रशेखर साहब से तो इतने नजदीक रहे कि कई दिनों तक साथ रहकर आंदोलन को मजबूत करते रहे। इस बात का यह सबूत है कि जब 1993 में चौधरी साहब ने शरीर पूरा किया, तब चंद्रशेखर जी को सबसे ज्यादा दुख हुआ था और उन्होंने कहा था कि मेरे बड़े भाई हमसे सदा के लिए जुदा हो गए। हमने चौधरी साहब से बहुत कुछ सीखा और पाया। उनकी आंखों में चिता के पास आंसुओं के सिवाय कुछ नहीं था।

आखिरी दिनों में चौधरी साहब बीमार हो गए। पहले आल इंडिया मेडिकल में भर्ती कराया गया। चौधरी साहब बहुत कमजोर हो गए थे। उनको हृदय रोग हो गया था। मृत्यु से एक दिन पहले मैं उनसे मिला तो उन्होंने कहा रामदत्त आप मेरे लड़कों की तरह हो, आपने मेरी तीन बातों पर अमल करना है। पहला मेरा जन्मदिन और पुण्य तिथि मनाते रहना। दूसरा मेरी संस्था एनयूबीसी को सारे देश में बड़े स्तर पर फैलाना तथा पिछड़े दलितों के लिए रात दिन मेहनत करना और तीसरा मैंने जो बुनियादी संघर्ष पत्रिका का प्रकाशन किया है वह प्रकाशन हर महीने निकलते रहना चाहिए। 11 अगस्त 1993 को चौ. साहब का स्वर्गवास हो गया।

(लेखक भारतीय यादव महासभा के महासचिव हैं।)

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