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संदीप दीक्षित की सड़कछाप सियासत

👤 admin5 | Updated on:17 Jun 2017 3:49 PM GMT
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तारकेश्वर मिश्र

इतिहासकार और लेखक पार्था चटर्जी का मामला अभी थमा भी नहीं था कि कांग्रेस के एक और नेता ने आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत के खिलाफ विवादित बयान दे दिया है। कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने बिपिन रावत को `सड़क का गुंडा' कहा है। इस विवादित बयान के बाद अपनी किरकिरी से बचने के लिए कांग्रेस पार्टी ने खुद को अलग कर लिया है। साथ ही कांग्रेस पार्टी नेता मीम अफजल ने आर्मी चीफ के लिए इस तरह की बयानबाजी पर अफसोस जताया है। इस विवादित बयान के बाद भाजपा और कांग्रेस में तीखी बयानबाजी शुरू हो गई है। सेना पमुख पर अभद्र व ओछी टिप्पणी करने को किसी लिहाज से "rक करार नहीं दिया जा सकता।

इसमें किसी को कोई शक या शुबहा नहीं होना चाहिए की सेना आाwर उसके तीनों फ्रमुख किसी भाजपा या कांग्रेस के नहीं होते। वे तो राष्ट्रीय होते हैं। वे तो सीमा के रखवाले हैं। राष्ट्र के फ्रति उनकी पहली फ्रतिबद्धता होती है। लोकतंत्र में यह अपेक्षा रहती है कि सेना, राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रीय संस्थाओं के फ्रति सभी राजनीतिक दलों में सहमति का भाव हो। सभी दल इन तीन व्यवस्थाओं को सियासत से परे रखें। तो फिर पूर्व सांसद एवं कांग्रेस के फ्रवक्ता संदीप दीक्षित ने किस आधार पर सेना फ्रमुख को गाली दी है?

कांग्रेस के दो बार लोकसभा सांसद रहे संदीप दीक्षित ने देश के सेना फ्रमुख जनरल बिपिन रावत पर जो टिप्पणी की है, उसकी सीधी-सपाट व्याख्या है कि वह जनरल को `सड़क का गुंडा' करार दे रहे हैं। संदीप दिल्ली की 15 सालों तक मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के बेटे हैं। एक पुराने कांग्रेसी, संभ्रांत परिवार से उनका नाता रहा है। आखिर संदीप की राजनीतिक कुं"ाsं कहां तक पहुंच गई हैं कि उन्होंने देश के सर्वोच्च सैनिक को ही `सड़क का गुंडा' मान लिया है? यह शर्मनाक ही नहीं, देशद्रोह भी है और भारत राष्ट्र का अपमान भी है। सीमापार आईएसआई के साजिशकार, फौज के दल्ले आतंकी और हुकूमत तथा फौज का एक कट्टरपंथी तबका इस बयान पर "हाके लगा रहे होंगे! आखिर हमारी सियासत इतनी `सड़कछाप' कैसे हो गई? सवाल है कि क्या अब कांग्रेस देश में एक विमर्श को आकार देने की कोशिश में है, जिसमें वह सेना और सेना फ्रमुख को कलंकित करने की पराकाष्"ा तक जा सके? कांग्रेस के ही वरिष्" नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने भी एक साक्षात्कार के दौरान सेना फ्रमुख जनरल रावत के खिलाफ टिप्पणी की थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने न तो उनकी निंदा की और न ही उनके वक्तव्य को खारिज किया।

सीपीएम के ही मुखपत्र में इतिहासकार पार्था चटर्जी का एक लेख छापा गया है, जिसमें जनरल रावत की तुलना 1919 के जलियांवाला बाग कांड में हजारों मासूम भारतीयों को मरवा देने वाले जनरल डायर से की गई है। क्या देश के सेना फ्रमुख के साथ ऐसा सियासी बर्ताव उचित है? बेशक कश्मीर के संदर्भ में जनरल रावत ने कुछ तीखे बयान दिए होंगे, जो कश्मीर के ही हालात से पनपे हैं। यदि आज कुछ पत्थरबाज युवाओं का मानस बदलने के संकेत हैं और वे सरकार के खर्च पर देश के विभिन्न हिस्सों में घूमकर विकास और वहां की जिंदगी देखना चाहते हैं, तो इसमें गुंडई क्या है? और गलत क्या है? मेजर गोगोई ने भी जीप से एक पत्थरबाज आतंकी को बांध कर सरकारी कर्मचारियों और नागरिकों को बचाया था। उसे भी `जनरल डायर की कूरता' करार नहीं दे सकते। देश की सुरक्षा के लिए जीवन न्यौछावर करने को हमेशा तैयार रहती है भारतीय सेना। उसी सेना के सेना फ्रमुख के बयान को तोड़मरोड़ कर राजनैतिक मुद्दा बनाने की मूर्खतापूर्ण कोशिश करना, कांग्रेस की हताश मानसिकता का फ्रमाण है।

यही नहीं, पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक के संदर्भ में खुद राहुल गांधी ने `खून की दलाली' सरीखे शब्दों का इस्तेमाल किया था। बेशक संदीप ने माफी मांगते हुए अपने शब्दों को वापस ले लिया है और राहुल गांधी ने भी निर्देश दिए हैं कि कोई भी नेता सेना पर टिप्पणी न करे, लेकिन यह अफसोसनुमा फ्रतिक्रिया ही पर्याप्त नहीं है। कांग्रेस में मणिशंकर अय्यर, दिग्विजय सिंह और संजय निरूपम सरीखे नेताओं की पूरी परंपरा है, राहुल जिनकी जुबान पर ताला नहीं जड़ सकते। बहरहाल यह राष्ट्रहीनता कांग्रेस तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सीपीएम पार्टी के पूर्व महासचिव फ्रकाश करात का आरोप यह है कि सेना फ्रमुख फ्रधानमंत्री मोदी की भाषा बोल रहे हैं। इसी पार्टी के वरिष्" लोकसभा सांसद एम सलीम का तो यहां तक मानना है कि जनरल रावत की भारतीय समाज को समझने की क्षमता और योग्यता पर ही उन्हें शक है। जनरल बिपिन रावत ने अपने एक में कहा था कि, सेना पर पत्थरबाजी करने वालो अब बर्दाश्त नहीं करेगी सेना। जो भी सैनिको पर पत्थर बरसाएगा उसके साथ वही बर्ताव किया जाएगा जो आतंकी के साथ किया जाता है। सैनिक के पास बंदूक है और वो उसका अब उपयोग करेगा। इस पर बिहार से कांग्रेस की लोकसभा सांसद रंजीत रंजन ने अभद्र टिप्पणी करते हुये कहा था कि, सेना फ्रमुख अपने हद में रहे ये न भूले की कश्मीरी युवक भी हमारे देश के नागरिक है, पत्थर फेंकने पर क्या उन्हें मार डालेंगे? इतना ही नहीं इस कांग्रेसी सांसद ने पत्थरबाजों के अधिकार तक गिनवा दिए और कहा कि, कश्मीरी युवकों को भी विरोध करने का अधिकार है। वो अलग बात है कि रस्मी तौर पर कांग्रेस पार्टी ने इस बयान का खंडन किया।

अपने काले कारनामों से पहले ही गर्त में गिर चुकी कांग्रेस अगर इसे ही राजनीति समझती है, तो उसका कोई भविष्य नहीं है। या फिर शायद, कांग्रेस के नेता, अपने बचकाने नेतृत्व और निरंतर मिलती हार से, अपना मानसिक संतुलन खो बै"s हैं। वजह जो भी हो, कांग्रेस के हथकंडे अब अक्षम्य होते जा रहे हैं, अब भी वक्त है,
उन्हें राजनीति का अर्थ नहीं पता, तो फिर से पढ़ाई करें। राजनीति देश की सेवा के लिए करो, खुद के स्वार्थ के लिए
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