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राष्ट्रपति चुनाव : मोदी-शाह सुनेंगे सबकी, करेंगे मन की

👤 Admin 1 | Updated on:18 Jun 2017 4:42 PM GMT

राष्ट्रपति चुनाव : मोदी-शाह सुनेंगे सबकी, करेंगे मन की

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आदित्य नरेन्द्र


राष्ट्रपति चुनाव की आहट होते ही विपक्षी दलों ने बेदाग, धर्मनिरपेक्ष और सर्वसम्मति वाले उम्मीदवार को राष्ट्रपति बनाने की मांग करते हुए तलवारें भांजनी शुरू कर दी हैं। यह जानते हुए भी कि एनडीए के पास लगभग 48 फीसदी वोट हैं और उसे अपने उम्मीदवार को राष्ट्रपति बनाने के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी। विपक्ष की इस पैंतरेबाजी का सत्तापक्ष ने भी तुर्की व तुर्की जवाब देने का फैसला करते हुए राजनाथ सिंह, अरुण जेटली और वेंकैया नायडू की एक समिति गठित कर दी जो विपक्षी दलों के साथ सलाह-मशविरा कर राष्ट्रपति के सर्वसम्मत नाम पर चर्चा करेगी।

दरअसल आजादी के बाद पहली बार भाजपा के पास ऐसा मौका आया है कि वो अपने और अपने सहयोगियों के दम पर खालिस अपनी पसंद के व्यक्ति को राष्ट्रपति चुनवा सकती है। विपक्ष भी इस बात को जानता है तो फिर विपक्ष की इस हायतौबा के पीछे क्या है। असलियत यह है कि विपक्ष चाहता है कि आम जनता में सरकार की छवि एक ऐसी अहंकारी सरकार के रूप में बने जो लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों के विपरीत कार्य करती हुई दिखे। मोदी मैजिक से तबाह विपक्ष को इसमें अपनी एकजुटता का फार्मूला भी दिखाई दे रहा है जो उसके अस्तित्व को काफी हद तक बचा सकता है।

राष्ट्रपति पूरे देश का प्रमुख होता है। आम सहमति राष्ट्रपति पद की प्रतिष्ठा और गरिमा को बढ़ाती है। इस तथ्य को सत्तारूढ़ पक्ष नजरंदाज करता हुआ न दिखाई दे यही सोचकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने दूसरे दलों के साथ सर्वसम्मति बनाने का प्रयास करते हुए जो तीन सदस्यों की समिति बनाई है उसके सदस्यों ने सोनिया और येचुरी से मुलाकात तो की है लेकिन अपनी ओर से राष्ट्रपति पद के लिए अभी तक कोई नाम नहीं सुझाया। इस पर आजाद और येचुरी ने अलग-अलग मौकों पर कहा भी कि सरकार ने जब कोई नाम ही नहीं बताया तो चर्चा कैसे संभव है। तो फिर राजनाथ और वेंकैया की जोड़ी बिना राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के नाम के विपक्षी नेताओं से किस बात की चर्चा करती घूम रही है। कहीं वह यह तो नहीं चाहती कि विपक्ष ही कोई ऐसा नाम सुझा दे जो उसमें फूट का कारण बन जाए। प्रादेशिक अस्मिता के नाम पर ऐसा पहले भी हो चुका है। यदि ऐसा हुआ तो विपक्षी एकता का गुब्बारा फूलने से पहले ही फट जाएगा। यह तो राजनीति का अदने से अदना जानकार भी नहीं मान सकता कि जब नामांकन एक सप्ताह से भी कम समय में होना हो तो सबसे बड़े स्टेक होल्डर के पास अपने उम्मीदवार का नाम तक न हो। जो लोग मोदी-शाह के स्वभाव को जानते हैं उनका कहना है कि चौंकाने वाले फैसले लेना इन दोनों नेताओं का स्वभाव है। यह दोनों नेता इस मामले में भी सुनेंगे सबकी लेकिन करेंगे अपने मन की। यह संभव ही नहीं है कि उन्होंने अभी तक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार पर फैसला न किया हो। यह अवश्य है कि इसके रणनीतिक पहलू को देखते हुए इसकी घोषणा अंतिम समय पर की जाए। शाह अपने उम्मीदवार की जीत के लिए पूरा प्रयास कर रहे हैं। राजग में शिवसेना कमजोर कड़ी के रूप में मौजूद है। इसे देखते हुए वह मुंबई गए हैं।

जहां शिवसेना सुप्रीमो को मनाने का प्रयास करेंगे। आंध्र के स्थानीय दलों के नेताओं के. चन्द्रशेखर राव और जगन रेड्डी के अतिरिक्त तमिलनाडु की एआईडीएमके के दोनों धड़ों के अलावा और कुछ छोटी-छोटी पार्टियों पर भी भाजपा की नजर है। भाजपा नेता अपनी पसंद के उम्मीदवार की जीत को लेकर निश्चिंत है और वह इस जीत के अंतर को बढ़ाना चाहते हैं। यह अंतर जितना बढ़ेगा विपक्षी एकता उतनी ही कमजोर होगी। राष्ट्रपति चुनाव ने भाजपा को विपक्षी दलों के साथ चर्चा करने का एक बेहतरीन मौका दिया है। इससे भविष्य में भाजपा के लिए कांग्रेस, आरजेडी, टीएमसी और लेफ्ट पार्टियों को दूसरी छोटी पार्टियों से अलग करने का मौका भी निकल सकता है।

हालांकि इसे अभी दूर की कौड़ी कहा जा सकता है लेकिन राजनीति के लिए दूरदृष्टि बेहद जरूरी है। उम्मीद है कि आगामी कुछ दिनों में मोदी और शाह सत्तारूढ़ दल के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के नाम का खुलासा कर देंगे और वह पूरी तरह से उनकी पसंद का ही होगा। अब यह विपक्ष के ऊपर है कि वह मोदी-शाह की पसंद को स्वीकृति देगा या फिर चुनाव लड़कर हारने का खतरा उठाएगा। ऐसे में जबकि सत्तारूढ़ दल की जीत सामने दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ दिखाई दे रही है, विरोधी दलों के नेताओं के लिए सम्पूर्ण विपक्ष को एकजुट रखना आसान काम नहीं है। देखना होगा कि इन परिस्थितियों में विपक्ष मोदी-शाह के मास्टर स्ट्रोक के आगे क्या रणनीति अपनाता है।

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