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अब असम के मदरसों में मिलेगी आधुनिक तालीम

👤 manish kumar | Updated on:17 Feb 2020 5:25 AM GMT

अब असम के मदरसों में मिलेगी आधुनिक तालीम

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-अदित्य नरेंद्र

देश के दूसरे राज्यों की सरकारों को चाहिए कि वह असम सरकार के इस पैसले का अनुसरण करें ताकि लोग अपने बच्चों को इन मदरसों में मजबूरी में नहीं बल्कि उनके भविष्य के प्राति आश्वस्त होकर भेजें।तालीम अर्थात शिक्षा इंसान की प्रागति और विकास का आइना है। आज इंसान जिस मुकाम पर खड़ा है उसमें निस्संदेह शिक्षा का अहम योगदान है।कोईं भी देश आज किस स्थिति में है इसे तय करने वाले मानकों में शिक्षा की अनदेखी कतईं नहीं की जा सकती।इसलिए शिक्षा की उपेक्षा करके किसी भी देश के लिए आगे बढ़ना संभव नहीं।लेकिन यहां हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि शिक्षा का मतलब गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से है। इसका अर्थ एक ऐसी शिक्षा पद्धति से भी है जो विभिन्न पैमानों पर खरी उतरने की क्षमता रखती हो।

हालांकि कईं समाज अपने धार्मिक आग्राहों के चलते शिक्षा के दूसरे महत्वपूर्ण पक्षों पर हावी होने का प्रायास करते हैं। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए असम सरकार ने सभी मदरसों और संस्वृत स्वूलों को हाईं स्वूल और हायर सैवेंडरी स्वूलों में बदलने का पैसला किया है। हालांकि गैरसरकारी संगठनों द्वारा संचालित मदरसे जारी रहेंगे। असम में सरकारी पंड से चलने वाले मदरसों की संख्या 614 और संस्वृत संस्थानों की संख्या 101 है। जहां तक सरकारी मदद के बिना चलने वाले मदरसों का सवाल है तो उनकी संख्या तकरीबन 900 है। इन्हें जमीयत उलेमा द्वारा संचालित किया जाता है। दरअसल असम सरकार की मंशा है कि एक धर्मनिरपेक्ष देश के एक राज्य को आम लोगों का पैसा धार्मिक शिक्षा पर खर्च नहीं करना चाहिए। अपनी बात को स्पष्ट करते हुए असम के वित्तमंत्री हेमंत विश्व सरमा ने कहा है कि यदि सरकार द्वारा संचालित मदरसों में धार्मिक बातें पढ़ाने की अनुमति दी जाती है तो फिर गीता या बाइबल को भी सरकारी पंड से पढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार हर साल मदरसों पर तीन से चार करोड़ और संस्वृत संस्थानों पर एक करोड़ रुपए खर्च करती है। सरमा के अनुसार इन मदरसों में कार्यंरत अध्यापक कहीं और रोजगार की चिन्ता किए बिना घर पर रह सकते हैं। सरकार उनकी रिटायरमेंट तक उन्हें वेतन देती रहेगी।

जहां तक निजी मदरसों का सवाल है तो वह अब एक रेग्युलेटरी ढांचे के तहत चलेंगे। इसमें उन्हें अपने छात्रों की संख्या का खुलासा करना होगा और अपने यहां पढ़ने आने वाले छात्रों को धार्मिक विषय के साथ सामान्य विषयों को भी अनिवार्यं रूप से पढ़ाना होगा। जाहिर है कि शिक्षा के क्षेत्र में असम सरकार ने एक महत्वपूर्ण पैसला किया है। क्योंकि शिक्षा ही एक ऐसा सर्वसुलभ हथियार है जो किसी भी समाज का सशक्तिकरण करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। किसी भी इंसान या समाज को आधुनिक शिक्षा के अभाव में पिछड़ जाने का खतरा रहता है। जहां तक मदरसों का सवाल है तो यह कोईं छिपी हुईं बात नहीं है कि इन मदरसों में कमजोर वर्ग के छात्र ही शिक्षा लेने आते हैं। इन मदरसों से निकलने वाले ऐसे छात्र गिनती के ही होंगे जो कामयाबी की आज की परिभाषा पर खरे उतरते हैं। वक्त की जरूरत है कि इन मदरसों या संस्वृत संस्थानों में सुधार लाने के लिए वुछ ऐसे उपाय किए जाएं ताकि इनसे निकलने वाले छात्रों को जीवनयापन में कोईं परेशानी न हो।

देश और समाज को उनकी काबालियत का पूरा-पूरा फायदा मिल सके। वैसे तो असम सरकार ने यह पैसला राज्य की धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को ध्यान में रखते हुए लिया है, लेकिन इसके निहितार्थ काफी बड़े हैं। इन मदरसों की शिक्षा व्यवस्था में सुधार की काफी गुंजाइश है। असम सरकार का यह पैसला प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस सोच को भी आगे बढ़ाता हुआ दिखता है जिसमें वह एक हाथ में वुरान और दूसरे हाथ में कम्प्यूटर के साथ-साथ सबका साथ-सबका विकास और सबका विश्वास की बात कहते हैं। असम सरकार के इस पैसले से मदरसा जाने वाले आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को बेहतर शिक्षा का अवसर मिलेगा।

देश के दूसरे राज्यों की सरकारों को चाहिए कि वह असम सरकार के इस पैसले का अनुसरण करें ताकि लोग अपने बच्चों को इन मदरसों में मजबूरी में नहीं बल्कि उनके भविष्य के प्राति आश्वस्त होकर भेजें।

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