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क्या शाहीन बाग का बम डिफ्यूज नहीं कर पाए वार्ताकार

👤 manish kumar | Updated on:24 Feb 2020 5:19 AM GMT

क्या शाहीन बाग का बम डिफ्यूज नहीं कर पाए वार्ताकार

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-आदित्य नरेंद्र

इसमें कोईं शक नहीं कि यदि वुछ लोग सिर्प अफवाह का सहारा लेकर इस तरह के प्रादर्शनों पर उतरेंगे तो हमें आने वाले समय में कदमकदम पर शाहीन बाग देखने को मिल सकते हैं। अब गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में है और उसे ही इसका समाधान ढूंढना होगा।

पिछले लगभग 70 दिनों से दिल्ली के शाहीन बाग में सीएए, एनपीआर और एनआरसी के विरोध में महिलाओं का धरना जारी है जो हाल फिलहाल किसी तार्विक परिणति की ओर जाता दिखाईं नहीं दे रहा है। यह आंदोलन एक ऐसा बम बन चुका है जिससे निकली चिगारियां दिल्ली और देश के कईं दूसरे हिस्सों को अपनी लपेट में ले रही है। राजधानी दिल्ली में शनिवार की रात ऐसी ही एक और कोशिश हुईं जब सीएए और एनआरसी के विरोध में जाफराबाद रोड पर पिछले डेढ़ महीने से धरने पर बैठी महिलाएं अचानक जाफराबाद की मेन रोड पर पहुंच गईं और नारेबाजी करते हुए सड़क को एक तरफ से बंद कर दिया गया।

जाफराबाद मेट्रो परिसर में उनके जमा होने के चलते डीएमआरसी ने इस मेट्रो स्टेशन को बंद कर दिया। उधर पुलिस के आला अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर प्रादर्शन कर रही महिलाओं को समझाने का प्रायास किया लेकिन कोईं फायदा नहीं हुआ। यह विरोध प्रादर्शन भी लगभग शाहीन बाग की ही तर्ज पर है जहां मामले को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त वार्ताकार संजय हेगड़े, साधना रामचंद्रन और वजाहत हबीबुल्ला चार दौर की बातचीत के बाद भी अभी तक कोईं सर्वमान्य हल नहीं निकाल पाए हैं। यह वार्ताकार सुप्रीम कोर्ट को क्या रिपोर्ट देंगे यह तो वही जानते हैं लेकिन अभी तो ऐसा लग रहा है कि वार्ताकार लाख कोशिशे करने के बाद भी शाहीन बाग का बम डिफ्यूज नहीं कर पाए हैं क्योंकि यदि उन्हें थोड़ी-सी भी कामयाबी मिली होती तो वह अब तक मीडिया की सुर्खियां बन चुकी होती।

इस आंदोलन के पक्ष और विपक्ष में कईं बातें कही जा रही हैं। जहां वुछ लोग इस आंदोलन का समर्थन करते हुए कह रहे हैं कि यदि रास्ता न रोका जाता तो मीडिया इस आंदोलन को नजरंदाज कर सकता था। वहीं केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने सीएए के खिलाफ सड़क पर जिद करके बैठने को आतंकवाद करार देते हुए कहा है कि संसद से पास किसी भी कानून या सरकार की किसी भी नीति पर मतभेद जताने का सबको अधिकार है और इस अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए। लेकिन यदि पांच लोग दिल्ली के विज्ञान भवन में बैठ जाएं और कहें कि जब तक संसद हमारे मुताबिक कोईं प्रास्ताव पास नहीं करती है तब तक हम यहां से नहीं उठेंगे तो यह ठीक नहीं है। यह एक दूसरी तरह का आतंकवाद है। इस आंदोलन से कम से कम दो प्रामुख सवाल देश की जनता के सामने हैं। पहला सवाल यह है कि लोकतंत्र बहुमत के आधार पर चलता है और बहुमत के आधार पर बनाए गए किसी कानून को बदलवाने के लिए ऐसे प्रादर्शन कहां तक उचित हैं। दूसरा सवाल यह है कि क्या अपनी मांगें मनवाने के लिए दूसरे नागरिकों के हकों पर हमला किया जा सकता है। यह सड़वें सभी नागरिकों के इस्तेमाल के लिए हैं। इन्हें अवरूद्ध करके क्या दूसरे नागरिकों को उनके अधिकार से महरूम नहीं किया जा रहा। आंदोलनकारियों की ओर से सरकार पर आरोप लगाया जा रहा है कि सरकार इन आंदोलनकारियों से बात नहीं करना चाहती। लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त वार्ताकार मसले को सुलझाने वहां पहुंचे तो उन्हें अजीबोगरीब स्थिति और मांगों का सामना करना पड़ा। जैसे उनसे सभी प्रादर्शनकारी महिलाएं बातचीत करेंगी। वेंद्र सरकार पहले सीएए कानून वापस ले और एनआरसी कभी नहीं आएगा इसके लिए सरकार एफिडेविट दे। क्या यह संभव है।

दरअसल यह मांगें वार्ताकारों की कोशिशों को असफल करने और सरकार पर दबाव बनाने के लिए ही थीं। प्रादर्शन के दौरान महिलाओं की प्रामुख भूमिका को देखते हुए पुलिस पूंक-पूंक कर कदम रख रही है।

यह वही दिल्ली पुलिस है जिसने स्वामी रामदेव के रामलीला मैदान में चल रहे आंदोलन को किस तरह निपटाया था उसे लोग भूले नहीं हैं।

उधर प्रादर्शनकारी महिलाओं के खिलाफ कार्रवाईं को लेकर पुलिस की हिचक को भांपते हुए आंदोलन को देश के दूसरे भागों में पैलाने का प्रायास किया जा रहा है। आशंका है कि पािम बंगाल, बिहार के चुनावों से पहले वहां भी इस मॉडल का इस्तेमाल किया जा सकता है।

इसीलिए एक ओर जहां सरकार की रणनीति इन आंदोलनकारियों को थका देने की लगती है तो वहीं दूसरी ओर यदि मांगें पूरी हुए बिना 70 दिन से चल रहा धरना खत्म कर दिया गया तो इसके औचित्य पर ही सवाल खड़े हो जाएंगे। विपक्ष के लिए तो यह अस्तित्व का प्राश्न बन चुका है।

इसमें कोईं शक नहीं कि यदि वुछ लोग सिर्प अफवाह का सहारा लेकर इस तरह के प्रादर्शनों पर उतरेंगे तो हमें आने वाले समय में कदम-कदम पर शाहीन बाग देखने को मिल सकते हैं।

अब गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में है और उसे ही इसका समाधान ढूंढना होगा।

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