स्कूल फीस : मुश्किलों के दौर में आम आदमी को राहत
-आदित्य नरेन्द्र
किसी भी देश अथवा समाज की प्रागति में सबसे महत्वपूर्ण योगदान अच्छी शिक्षा का होता है। आज के समय में किसी भी आम आदमी के पास शिक्षा ही एक ऐसा अहम हथियार है जिसके बल पर वह अपने और अपने परिवार के सपनों को साकार कर सकता है। इसलिए आज देश का गरीब से गरीब नागरिक भी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने का प्रायास करता है। देश में आज मुख्यतय: दो तरह की स्कूली शिक्षा संस्थाएं हैं जिन्हें सरकारी एवं निजी क्षेत्रों में बांटा जा सकता है।
आमतौर पर यह माना जाता है कि सरकारी शिक्षा संस्थाएं निजी शिक्षा संस्थाओं के मुकाबले कम स्तर की होती हैं और वहां छात्रों को कापी, किताबें, ड्रेस, जूते जैसी कईं सुविधाएं भी प्रादान की जाती हैं। देश में आज कईं ऐसे लोग मिल जाएंगे जिन्होंने किसी न किसी स्तर पर सरकारी स्कूलों में पढ़ाईं की है और वह अच्छे पदों पर पहुंचने में सफल रहे हैं। इसके बावजूद भी निजी क्षेत्र का जलवा अपनी जगह कायम है। इसी जनभावना का फायदा वुछ लोग जमकर उठा रहे हैं और देश के हर छोटे-बड़े शहर में निजी स्कूलों की बाढ़-सी आ गईं है।
आमतौर पर ऐसे स्कूलों को अलग स्वरूप देने के लिए इनके नाम में पब्लिक या कांवेंट जोड़ दिया जाता है। इनमें से जो अच्छे स्कूल हैं वह काफी महंगे हैं। उच्च वर्ग के बच्चों के लिए तो यहां दाखिला लेने में कोईं समस्या आड़े नहीं आती लेकिन मध्यम एवं निम्न मध्यम वर्ग के साथ ऐसा नहीं है। निम्न मध्यम वर्ग के किसी परिवार के यदि दो बच्चे इन स्कूलों में पढ़ रहे हो तो उसकी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा स्कूल की फीस में चला जाता है। बाकी बची हुईं आमदनी से वह वैसे अपने महीने भर का गुजारा करता होगा इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। अब जबकि कोरोना वायरस के चलते पूरे देश में लॉकडाउन लागू है और आर्थिक गतिविधियां लगभग ठप पड़ी हुईं हैं ऐसे में निजी स्कूलों द्वारा कईं स्कूलों में की गईं फीस वृद्धि और तीन महीने की फीस एक साथ देने की मांग पर अभिभावकों की चिता बढ़ गईं है।
इस पर संज्ञान लेते हुए वेंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने सभी निजी स्कूलों से अपील करते हुए कहा है कि वे लॉकडाउन के दौरान सालाना स्कूल फीस वृद्धि और तीन महीने की फीस एक साथ लेने के निर्णय पर पुनर्विचार करें। सीबीएसईं ने भी राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रादेशों को स्कूल फीस के मुद्दे पर संवेदनशीलता के साथ विचार करने की सलाह दी है।
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने तो एक कदम और आगे बढ़ते हुए स्पष्ट रूप से यह कह दिया है कि निजी स्कूल सरकार से अनुमति लिए बिना फीस नहीं बढ़ा सकते। स्कूल तीन महीने की फीस एक साथ वसूलने की बजाय अब सिर्प एक महीने की ट्यूशन फीस ही ले सकेंगे। उन्होंने कहा कि निजी स्कूल ट्रांसपोर्टेशन और वार्षिक या अन्य कोईं शुल्क भी नहीं वसूल सकते। कोईं भी स्कूल किसी छात्र को स्कूल फीस जमा न होने के चलते ऑनलाइन क्लास की सुविधा से वंचित नहीं कर सकता। सरकार के आदेशों का पालन नहीं करने वाले निजी स्कूलों के खिलाफ दिल्ली स्कूल ऑफ एजुकेशन एक्ट और नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत कार्रवाईं की जाएगी। सभी निजी स्कूल एक ट्रस्ट (संस्था) के जरिये चलते हैं और उनका मूल उद्देश्य समाज सेवा है। ऐसे में किसी बच्चे के फीस न देने की वजह से ऑनलाइन क्लास से उसका नाम हटा देना ठीक नहीं है।
स्कूली छात्रों के अभिभावकों को राहत देने के लिए केन्द्र और दिल्ली सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदम सराहनीय हैं। यह ठीक है कि आज स्कूलों के खच्रे बहुत बढ़ गए हैं और स्कूली शिक्षा महंगी होती जा रही है। ऐसे में हमारे सामने अच्छी शिक्षा को सस्ता एवं सर्वसुलभ बनाने की चुनौती है। यह उचित समय है जब सरकार पूरे देश में समग्रा शिक्षा क्रांति की पहल करते हुए शिक्षा की एकरूपता को लेकर कदम उठा सकती है। यदि ऐसा हुआ तो आने वाले दशकों में हम उन्नत राष्ट्रों की सूची में भारत को सबसे ऊपर पाएंगे।