केजरीवाल : कोरोना युद्ध में जीता दिल्ली वालों का विश्वास
-आदित्य नरेन्द्र
कोविड-19 अर्थात कोरोना वायरस सिर्फ भारत के लिए ही नहीं अपितु पूरी दुनिया के लिए एक बुरे सपने की तरह सामने आया है। चीन के वुहान शहर से शुरू हुईं इस बीमारी ने दुनिया का कोईं भी कोना ऐसा नहीं छोड़ा है जहां की सरकारें और वहां रह रहे लोग इससे जूझ न रहे हों। इस बीमारी ने अमेरिका, स्पेन, इटली, प्रांस, ब्रिटेन और ईंरान जैसे अनेक देशों की जो हालत बना दी है उसे सिर्प तीन महीने पहले कोईं सोच भी नहीं सकता था। जब पूर्ण रूप से विकसित देश इतनी भयावह हालत में हैं तो भारत जैसे विकासशील और घनी आबादी वाले देश में इसका क्या प्राभाव पड़ सकता है इसका अंदाज सहज ही लगाया जा सकता है।
आखिरकार सीमित संसाधन वाले हमारे देश के प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समय रहते एक महत्वपूर्ण पैसला किया और कोरोना से संव््रामित होने वाले लोगों की संख्या 650 पर पहुंचते ही संपूर्ण देश में तीन सप्ताह के लिए लॉकडाउन लागू कर दिया गया। तीन सप्ताह बाद इसके बेहतर परिणाम देखकर इसे 19 दिन आगे के लिए बढ़ा दिया गया। इससे देश को दो फायदे हुए। पहला फायदा यह हुआ कि हम कोरोना वायरस के पैलने की चेन को तोड़ने में काफी हद तक सफल रहे और हमने अभी तक खुद को इसके तीसरे चरण में जाने से बचाए रखा है।
दूसरा फायदा यह हुआ कि हमें कोरोना से मुकाबले के लिए अपने जरूरी संसाधन बढ़ाने और स्वास्थ्यकर्मियों को प्राशिक्षित करने का मौका मिल गया। इस दौरान दुनिया के दूसरे देशों द्वारा की गईं गलतियों से सबक लेते हुए हमने अपनी तैयारी जारी रखी। इसी का परिणाम है कि आज देशवासी कोरोना पीड़ित विकसित देशों और भारत के हालात में फर्व का आंकलन करते हुए वेंद्र सरकार की सराहना कर रहे हैं।
लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस कामयाबी में गोवा, त्रिपुरा, हरियाणा, उत्तर प्रादेश, दिल्ली, उड़ीसा जैसी कईं राज्य सरकारों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। गोवा और त्रिपुरा तो कोरोना मुक्त हो चुके हैं। लेकिन कईं राज्य सरकारें अभी भी स्थिति से निपटने का प्रायास कर रही हैं। कोरोना संक्रमितों की संख्या और उससे हुईं मौतों के मामले में सबसे टॉप पर महाराष्ट्र है और फिर गुजरात, दिल्ली और राजस्थान का नम्बर है। इनमें सबसे विचित्र स्थिति राजधानी दिल्ली की है जो पूर्ण राज्य नहीं है, क्योंकि इसकी कईं शक्तियां अभी भी वेंद्र सरकार के पास हैं। इसी वजह से पिछले दिनों वेंद्र और राज्य सरकार के बीच काफी तीखी तकरार भी रही है।
इसे ध्यान में रखते हुए यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि अपनी सीमित संवैधानिक शक्तियों के बावजूद दिल्ली की केजरीवाल सरकार बेहतर प्रादर्शन कर रही है। मुख्यमंत्री अपने सहयोगी उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के साथ लगातार हालात पर निगाह बनाए हुए हैं और जरूरत के अनुसार तुरन्त निर्णय लेकर कार्रवाईं कर रहे हैं। उपद्रवियों और शरारती जमातियों को लेकर उनका सख्त रुख इसी का नतीजा है। गरीब और जरूरतमंदों के लिए राशन का भरपूर इंतजाम किया जा रहा है। लाखों लोगों के लिए जगह-जगह दोनों समय का भोजन बनाकर उसे वितरित किया जा रहा है। पिछले दिनों हमने देखा की कश्मीरी गेट के आश्रय गृह में आग लगने के बाद वहां से विस्थापित लोगों के लिए जरूरी इंतजाम दिल्ली सरकार ने खबर मिलते ही प्राथमिकता के आधार पर कर दिए थे। कोरोना पीिड़तों के लिए अस्पतालों में बेहतर इंतजाम हैं।
इस बीच कोरोना पीड़ित चार मरीजों पर प्लाजमा थेरेपी परीक्षण के प्रारंभिक नतीजे काफी उत्साहजनक रहे हैं। अब दिल्ली सरकार कोरोना के गंभीर मरीजों पर इस थेरेपी के इस्तेमाल के लिए वेंद्र सरकार की मंजूरी लेने जा रही है। कोरोना को लेकर केजरीवाल सरकार की कामयाबी तब और भी ज्यादा स्पष्ट होगी जब हम उसकी तुलना मुंबईं से करते हैं। दोनों शहरों की आबादी लगभग समान है। दोनों शहरों में बड़ी संख्या में प्रावासी मजदूर हैं और लाखों लोग झुग्गी- झोपिड़यों में रहते हैं। महाराष्ट्र सरकार के विपरीत दिल्ली की केजरीवाल सरकार के पास सीमित अधिकार हैं।
इसके बावजूद भी यह लेख लिखे जाने तक दिल्ली में जहां संव््रामितों की संख्या 2514 थी और 53 लोगों की मौत हो चुकी थी वहीं मुंबईं में 4589 लोग संक्रमित थे और 179 काल के गाल में समा चुके थे। दिल्ली और मुंबईं के बीच का यह फर्व बताता है कि दिल्लीवासी केजरीवाल को जिन अपेक्षाओं के साथ दोबारा सत्ता में लाए थे उस पर वह खरे उतर रहे हैं। उम्मीद है कि केजरीवाल सरकार जनता के इस विश्वास को टूटने नहीं देगी।