Home » द्रष्टीकोण » अखबार उद्योग की आवाज की अनसुनी क्यों

अखबार उद्योग की आवाज की अनसुनी क्यों

👤 Veer Arjun | Updated on:18 May 2020 8:04 AM GMT

अखबार उद्योग की आवाज की अनसुनी क्यों

Share Post

-आदित्य नरेन्द्र

अखबार उद्योग देश की छोटी लेकिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण इंडस्ट्री है। इसके सामाजिक प्राभाव को देखते हुए इसे लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की संज्ञा दी गईं है। कभी मिशन के रूप में शुरू हुईं यह इंडस्ट्री आजकल प्रोपेशन की बाध्यताओं से जूझ रही है। वैश्वीकरण के इस दौर में इस पर काफी आर्थिक दबाव है। इसके बावजूद भी अखबार उद्योग किसी न किसी तरह अपना अस्तित्व बचाए रखने का प्रायास कर रहा है लेकिन पिछले वुछ सालों से इस पर आर्थिक दबाव इतना ज्यादा बढ़ चुका है कि एक ओर जहां छोटे और मझौले अखबार प्राकाशन संस्थानों के अस्तित्व पर प्राश्नचिन्ह लग चुका है तो वहीं बड़े और आर्थिक रूप से मजबूत माने जाने वाले प्राकाशन संस्थानों को चलाने वाले लोगों के माथे पर भी चिन्ता की लकीरें उभर आईं हैं। अखबारों का प्रामुख कार्यं लोगों तक सही सूचनाएं पहुंचाकर उन्हें शिक्षित करना है ताकि वह अपने भले-बुरे के बारे में स्वतंत्र रूप से पैसला कर सवें। अपने इस उद्देश्य में अखबार काफी हद तक सफल भी रहे हैं। आगे भी ऐसा ही होता रहे इसके लिए अखबार उद्योग आज भी इसी कोशिश में जुटा हुआ है। अखबार से जुड़े लोगों खासतौर से रिपोर्टिग से जुड़े लोगों का काम इतना आसान नहीं है जितना बाहर से देखने से लगता है। यह रिपोर्टर भी पुलिस बलों की तरह अपनी जान जोखिम में डालकर अपनी ड्यूटी करते हैं जबकि इनके पास कोईं विशेष सुरक्षा कवच भी नहीं होता। इसी के चलते यह कईं बार अवांछनीय तत्वों का शिकार भी बन जाते हैं। यही कारण है कि हम अकसर पत्रकारों पर हमले और कईं बार उनकी मौत की खबर भी सुनते हैं। आजकल पत्रकारों का सामना कोरोना महामारी से भी हो रहा है क्योंकि उन्हें सूचनाएं एकत्रित करने और उन्हें आगे तक पहुंचाने के लिए ग्राउंड जीरो पर जाना होता है।

इस दौरान उनके कोरोना से संक्रमित होने का खतरा भी बढ़ गया है। इस तरह देखा जाए तो आज की तारीख में जिस तरह पुलिस जिन अपराधियों, भ्रष्टाचारियों और कोरोना से मुकाबला कर रही है अखबारों के रिपोर्टर भी अपनी जान को खतरे में डालकर उनसे ही मुकाबला कर रहे हैं। सीधी-सी बात है कि इस तरह का काम जोखिमभरा होने के बावजूद देश और जनहित में है। इसलिए सरकार को चाहिए था कि वह अखबार उद्योग की मदद विशेष रूप से करती। लेकिन इसके विपरीत उसने न्यूज प्रिंट पर पांच फीसदी आयात शुल्क लगा दिया जबकि इससे पूर्व स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ था। सरकार के इस पैसले ने पहले से ही आर्थिक संकटों से जूझ रहे अखबार उद्योग की हालत खराब कर दी। कोरोना महामारी के बाद तो निजी व सरकारी विज्ञापनों की कमी ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। अपनी मांगों को लेकर अखबार उद्योग के संगठनों ने कईं बार सरकार का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का प्रायास किया लेकिन कोईं फायदा नहीं हुआ। उनकी आवाज अनसुनी ही रह गईं। अखबार उद्योग मांग कर रहा है कि न्यूजपेपर इंडस्ट्री को डूबने से बचाने के लिए आयात शुल्क हटाया जाए। दो साल तक टैक्स माफ किया जाए और आवश्यक खर्चो से निपटने के लिए उन्हें बिना ब्याज लोन दिया जाए ताकि वह कोरोना महामारी के इस दौर में भी अपना काम बिना किसी परेशानी के कर सवें। देश और समाज की सेवा के लिए अखबार उद्योग को सरकार की मदद की आवश्यकता है। यदि सरकार उसकी मदद करेगी तो अखबार उद्योग और भी ज्यादा उत्साह व ताकत के साथ देश सेवा में जुटेगा।

Share it
Top