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रोटी, कपड़ा और मकान पर मंडराया खतरा

👤 Veer Arjun | Updated on:5 July 2020 7:20 AM GMT

रोटी, कपड़ा और मकान पर मंडराया खतरा

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-आदित्य नरेन्द्र

अब समय आ गया है कि सरकार मध्यम वर्ग की बुनियादी जरूरतों का भी उसी तरह से ख्याल रखे जिस तरह से वह अभी तक गरीब एवं वंचित वर्ग का रखती आईं है। अद्भुत स्थितियों में सरकार को अदभुत पैसले लेने होते हैं। इसलिए अब अद्भुत कदम उठाते हुए सरकार को आम आदमी के हाथ में पैसा पहुंचाना होगा। रोटी, कपड़ा और मकान महज तीन शब्द नहीं हैं बल्कि एक आम आदमी के लिए जिन्दगी जीने की तीन बुनियादी जरूरतें हैं। पेट्रोल-डीजल की महंगाईं के चलते आज भी आम आदमी के लिए उसकी रोटी, कपड़ा और मकान पर उतना ही खतरा मंडरा रहा है जितना दशकों पहले मंडरा रहा था। काफी हद तक मैं इसका जिक्र अपने पिछले दो लेखों 28 जून को छपे 'आम आदमी को और निचोड़ेगी पेट्रोल-डीजल की महंगाईं' और 22 जून को छपे 'कोरोना के बाद हालात : आमदनी अठन्नी और खर्च पांच रुपए' में कर चुका हूं। लेकिन यह विषय इतना विस्तृत है कि इस पर जितना भी कहा या लिखा जाए वह कम ही होगा। हालात ऐसे हैं कि पिछले छह महीने तो बेहाली में कटे हैं, इससे साल के अगले छह महीने भी ऐसे ही कटने की आशंका है। पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों ने बढ़ोतरी का एक ऐसा नया रिकॉर्ड बना डाला जिसके चलते पहली बार डीजल की कीमतें पेट्रोल से ज्यादा हो गईं। इसका पहला असर रोजमर्रा के उपयोग की चीजों जैसे फल, सब्जी आदि पर पड़ चुका है और इससे फल तो वैसे ही आम आदमी की हैसियत से बाहर हो चुके हैं। सब्जियां भी 25 प्रातिशत तक महंगी हो गईं हैं। यदि यह और ज्यादा महंगी हुईं तो इन्हें आम आदमी की पहुंच से बाहर होते ज्यादा देर नहीं लगेगी। उधर डीजल की महंगाईं का किसानों और उदृाोगों पर भी असर पड़ना तय है। किसानों के लिए ट्रैक्टर से बुवाईं और फसल काटने के बाद उसे मंडियों तक पहुंचाना महंगा हो जाएगा वहीं उदृाोगों पर भी इसका अच्छा-खासा असर पड़ेगा। उनकी कच्चा माल मंगवाने और तैयार माल को भेजने की लागत महंगी हो जाएगी।

इससे प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर अभियान को कितना नुकसान हो सकता है यह शोध का विषय है। क्योंकि परिवहन लागत किसी भी वस्तु के दाम तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। विशेषज्ञों का कहना है कि अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ने के साथ महंगाईं बढ़ने का भी खतरा है। आगामी रक्षाबंधन से त्यौहारों का सिलसिला शुरू हो जाएगा और बाजार में मांग बढ़ेगी। महंगाईं का असर उसी समय देखने में आएगा। आर्थिक सुस्ती और चीन की बॉयलाजिकल कोरोना वार से त्रस्त हर नागरिक की सरकार से उम्मीद है कि वह उसे राहत पहुंचाने का प्रायास करेगी। प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में जब देश को संबोधित किया था तो 80 करोड़ गरीब एवं वंचित नागरिकों के लिए प्राधानमंत्री गरीब कल्याण योजना को नवम्बर अंत तक के लिए बढ़ाने की घोषणा की थी।

यह उचित समय पर उठाया गया एक अच्छा कदम है। लेकिन देश का मध्यम वर्ग भी प्राधानमंत्री से राहत की उम्मीद रखता है। क्योंकि यह समय उसके लिए भी दिक्कतों से भरा है। उसकी आमदनी नौकरी जाने से या तो खत्म हो चुकी है या फिर काम- धंधा कम होने से काफी हद तक घट चुकी है। ऐसे में बिजली-पानी के बिल, एलपीजी के रेट, मकानों की किस्त, बच्चों की स्वूल फीस, महंगी दवाइयां, महंगा इंटरनेट उस पर कहर बनकर टूट रहे हैं।

वूलर चलाकर बैठना एक लग्जरी हो जाएगा और महंगे रेटों के चलते जब टीवी डिश का बिल आएगा तो यह छोटी-सी खुशी भी जीवन में भारी लगने लगेगी। लग्जरी आइटमों को तो छोिड़ए आने वाले समय में लोग रोजमर्रा की चीजों से भी महरूम हो जाएंगे। पहले लोग लोन लेकर छुट्टियां मनाने बाहर जाया करते थे लेकिन अब हालात यहां तक बदल चुके हैं कि लोग रोजमर्रा की जिन्दगी चलाने के लिए भी लोन ले रहे हैं। लॉकडाउन के बाद नौकरियां गंवाने वाले युवाओं के अपराध की ओर मुड़ने का खतरा भी सामने है।

अब जो लोग अपना वाहन छोड़कर मेट्रोबसों से चलने की सोच रहे हैं तो इससे आने वाले समय में ऑटो इंडस्ट्री को नुकसान होना तय है। व््रोडिट कार्ड पर हमारे देश में 50 प्रातिशत तक ब्याज लिया जाता है। इतना दुनिया में कहीं नहीं लिया जाता। इस महंगाईं के चलते मध्यम वर्ग में त्राहिमाम मच सकता है क्योंकि कोरोना की वजह से निजी वाहन हों या व्यवसायिक वाहन, दोनों ही तरह से वाहनों में कम सवारी बैठाने से यह भी महंगे पड़ेंगे। ऐसे में हालात बेहद नाजुक हैं। अब समय आ गया है कि सरकार मध्यम वर्ग की बुनियादी जरूरतों का भी उसी तरह से ख्याल रखे जिस तरह से वह अभी तक गरीब एवं वंचित वर्ग का रखती आईं है। अद्भुत स्थितियों में सरकार को अद्भुत पैसले लेने होते हैं। इसलिए अब अद्भुत कदम उठाते हुए सरकार को आम आदमी के हाथ में पैसा पहुंचाना होगा। चाहे वह उसे इनकम टैक्स, आधार, व््रोडिट कार्ड या अन्य किसी जरिये से पहुंचाए। हालांकि दोनों वर्गो की आर्थिक स्थिति एवं जरूरतें अलग-अलग हैं लेकिन उनके रोटी, कपड़ा और मकान पर मंडराता संकट एक जैसा है। इसलिए उम्मीद है कि सरकार मध्यम वर्ग को दरकिनार करने की बजाय उसे जरूरी सपोर्ट देगी।

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