बैंकों की मोहताज हुईं देश की आर्थिक व्यवस्था
-आदित्य नरेन्द्र
हम नीरव मोदी-मेहुल चोकसी जैसों के घोटालों की जिम्मेदारी आम आदमी पर नहीं डाल सकते। कोरोना महामारी की स्थिति में अमीर और अमीर व गरीब और गरीब हो रहे हैं। हमें गरीबों को आगे बढ़ाने के उपाय खोजने होंगे। इसमें बैंकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि कोईं एमएसएमईं लोन के लिए बैंक के पास जाता है और बैंक उसे यह कहकर टरका दे कि उसके पास एमएसएमईं को लोन देने के लिए अभी गाइडलाइंस नहीं हैं तो ऐसे बैंकों के खिलाफ क्या कार्रवाईं होगी इसे भी सरकार को स्पष्ट करना चाहिए।
देश में हरियाली तीज और रक्षाबंधन के साथ जो त्यौहारों का सीजन शुरू होता है वह साल के अंतिम सप्ताह में आने वाले व््िरासमस व न्यू ईंयर ईंव तक चलता रहता है। इन्हीं चार-पांच महीनों में कईं बिजनेसमैन पूरे साल का काम कर लेते हैं। इसी से भारतीय अर्थव्यवस्था में त्यौहारों के सीजन के महत्व का अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन इस बार हालात बेहद अलग हैं।
अर्थव्यवस्था में सुस्ती के बाद कोरोना महामारी ने देश में जो आर्थिक संकट पैदा किया है उसका अंतिम परिणाम देखना अभी बाकी है लेकिन यह तय है कि लोअर और मिडिल क्लास इसके चव््राव्यूह में पंस चुका है और बाहर निकलने के लिए छटपटा रहा है। यह वही लोअर और मिडिल क्लास है जिसका भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में सबसे बड़ा योगदान माना जाता है। इसीलिए भारत को एक मिडिल इनकम ग्राुप की अर्थव्यवस्था के रूप में परिभाषित किया जाता है। जब भी हमारे यहां कभी आर्थिक संकट आता है तो सबसे बड़ी मार इसी मिडिल क्लास पर पड़ती है। क्योंकि मिडिल क्लास में आने वाली निचले स्तर की आबादी जिसे हम लोअर-मिडिल क्लास के रूप में भी जानते हैं, वह लोअर क्लास में शिफ्ट हो जाती है। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि लोअर-मिडिल क्लास की यह बड़ी आबादी गरीबों की आबादी में शामिल हो गईं है। ऐसी स्थिति से निकलने के लिए सरकार बैंकों का इस्तेमाल करती है। बैंकों पर जिम्मेदारी होती है कि वह अपने नपे-नुकसान का आंकलन करते हुए लोगों की मदद करें। लेकिन कोरोना महामारी से लोगों के एक या दो समूह ही नहीं बल्कि पूरा देश एक साथ प्राभावित हुआ है। ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था बैंकों की मोहताज हो रही है।
सरकार ने लोन की किश्तें जमा करने के लिए जो छूट दी है वह नाकाफी साबित हो रही है। उदाहरण के लिए एक व्यक्ति ने अपनी नौकरी के दौरान घर खरीदने के लिए बैंक से लोन लिया। आधी किश्तें चुकाने के बाद कोरोना महामारी के दौरान उसकी नौकरी चली गईं। अभी तो बैंक शांत बैठे हैं लेकिन सरकार द्वारा किश्तें जमा करने के लिए छूट का समय खत्म होते ही बैंक देनदारों पर किश्तें जमा करने के लिए दबाव बनाएंगे ताकि उनका एनपीए एक निाित सीमा के अंदर रहे। जिसकी नौकरी चली गईं हो यदि बैंक उसका घर भी बकाए के नाम पर जब्त कर ले तो ऐसे लोग क्या करेंगे और कहां जाएंगे। आने वाले समय में बहुत बड़ी संख्या में बैंकों के सामने ऐसे मामले आने की आशंका है जिसमें लोग अपना कर्ज चुकाने की स्थिति में ही नहीं होंगे। इसीलिए लोगों की मदद के लिए बैंकों पर सरकार को शिवंजा कसना होगा। दरअसल बैंक, ग्राहक, दुकानदार और सरकार एक पूरी प्राव््िराया के हिस्से हैं। यदि बैंक अनाप-शनाप तरीके से ब्याज लेंगे तो ग्राहक सामान खरीदने से कतराएगा। ऐसे में दुकानदार का सामान नहीं बिकेगा और सरकार को टैक्स नहीं मिलेगा। इससे ले-देकर सभी का नुकसान होगा। इसलिए सरकार बैंकों को ब्याज दर आधी करने का निर्देश दे। भारत कोईं छोटामोटा नहीं बल्कि 135 करोड़ लोगों का मुल्क है। बैंकों के लॉकर में आम आदमी की खुशियां वैद हैं। सरकार इन्हें बाहर निकालकर जनता तक पहुंचाएगी तो देश में आर्थिक व््रांति आएगी। हम नीरव मोदीमेहुल चोकसी जैसों के घोटालों की जिम्मेदारी आम आदमी पर नहीं डाल सकते। कोरोना महामारी की स्थिति में अमीर और अमीर व गरीब और गरीब हो रहे हैं। हमें गरीबों को आगे बढ़ाने के उपाय खोजने होंगे। इसमें बैंकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि कोईं एमएसएमईं लोन के लिए बैंक के पास जाता है और बैंक उसे यह कहकर टरका दे कि उसके पास एमएसएमईं को लोन देने के लिए अभी गाइडलाइंस नहीं हैं तो ऐसे बैंकों के खिलाफ क्या कार्रवाईं होगी इसे भी सरकार को स्पष्ट करना चाहिए। व््रोडिट कार्ड से मिला ब्याज बैंकिग सेक्टर में आमदनी का एक बड़ा साधन है लेकिन इस पर लगने वाला भारी-भरकम ब्याज आंखों में चुभता है।
इसकी लिमिट तय होनी चाहिए। हमारे देश में बहुत बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो वरिष्ठ नागरिक हैं। ऐसे लोग अपनी जिदगी-भर की जमा पूंजी को फिक्स्ड डिपाजिट (एफडी) के रूप में बैंकों में रखते हैं। बैंकों ने पिछले दो-तीन साल में एफडी पर मिलने वाला ब्याज दो से ढाईं प्रातिशत तक घटा दिया है जिससे उन्हें खर्च चलाने में दिक्कत हो रही है। हालांकि इस दौरान दिल्ली सरकार ने डीजल लगभग आठ रुपए सस्ता कर दिया है। इससे डीजल का इस्तेमाल करने वालों को राहत मिलेगी।
उम्मीद है कि ट्रांसपोर्टेशन सस्ता होने से सामान सस्ते होंगे और इसका फायदा आम लोगों को मिलेगा। वेंद्र सरकार को भी चाहिए कि वह आम लोगों को राहत पहुंचाने के लिए ऐसे ही उपाय करे। यदि त्यौहारों का यह सीजन फीका निकलेगा तो अंत में इससे देश की अर्थव्यवस्था को ही नुकसान होगा।