बेरोजगारी के अभिशाप से मुक्ति दिलाए सरकार
-आदित्य नरेन्द्र
सरकार को बेरोजगारी के अभिशाप से देश को मुक्त कराना आवश्यक है। जब तक देश में आर्थिक गतिविधियां कमजोर रहेंगी तब तक बेरोजगारी की समस्या से पार नहीं पाया जा सकता। इसके लिए वुछ सेक्टरों की मदद करने और वुछ को नजरंदाज करने से काम नहीं चल सकता है क्योंकि ज्यादा या कम रोजगार तो हर सेक्टर में मिलता है। बेरोजगारी किसी भी देश के विकास में आने वाली प्रामुख बाधाओं में से एक है।
भारत सहित पूरी दुनिया में बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है। बेरोजगारी की परिभाषा को इस तरह समझा जा सकता है कि जब किसी देश में काम करने वाली जनशक्ति अधिक होती है लेकिन काम करने की इच्छा होने के बावजूद भी उनमें से बहुतों को प्राचलित मजदूरी पर काम नहीं मिलता तो उस अवस्था को बेरोजगारी कहा जाता है। बेरोजगारी के दौर में युवाओं के लिए अपनी योग्यता के हिसाब से सही नौकरी पाना किसी जंग जीतने से कम नहीं होता। देश में हर साल लाखों युवक और युवतियां डिग््िरायां लेकर निकल रहे हैं लेकिन हाथ में डिग््िरायां होने के बावजूद भी बड़ी संख्या में लोगों को काम नहीं मिलता और वह बेरोजगार रह जाते हैं। क्योंकि बेरोजगारी का अस्तित्व श्रम की मांग और उसकी आपूर्ति पर निर्भर करता है। बेरोजगारी की यह बढ़ती समस्या किसी भी देश व समाज के लिए एक अभिशाप है। सीएमआईंईं के दो अगस्त 2020 को खत्म हुए आंकड़ों के अनुसार जुलाईं में रोजगार दर 37.6 प्रातिशत थी जो 2019- 20 की तुलना में बहुत कम है। कोरोना से पहले के दौर में यह 39 प्रातिशत थी। जून की तुलना में जुलाईं में रोजगार रिकवरी दर धीमी रही। जून में इसकी रफ्तार 6.7 प्रातिशत थी जो जुलाईं में महज 1.7 प्रातिशत रह गईं।
इसकी वजह यह है कि जून में अनलॉक प्रक्रिया शुरू होने के बाद आर्थिक गतिविधियों ने जोर पकड़ा लेकिन जुलाईं में इसकी रफ्तार धीमी पड़ गईं। कोरोना महामारी का आर्थिक गतिविधियों पर बुरा असर पड़ा है। लेबर माव्रेट में युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है लेकिन उस हिसाब से रोजगार के अवसरों में वृद्धि नहीं हो पा रही है। इसके लिए कईं कारणों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इनमें प्रामुख रूप से जनसंख्या में तेज वृद्धि, धीमा आर्थिक व औदृाोगिक विकास, मशीनों का अंधाधुंध प्रायोग और त्रुटिपूर्ण शिक्षा प्राणाली शामिल हैं। जनसंख्या में तेज वृद्धि बेहतर विकास दर से मिलने वाले फायदों को खत्म कर देती है।
धीमे आर्थिक व औदृाोगिक विकास से देश उन फायदों को पाने से वंचित रह जाता है जो उसे मिलने चाहिए। मशीनों का अंधाधुंध प्रायोग भी बेरोजगारी को बढ़ाता है। जहां तक त्रुटिपूर्ण शिक्षा प्राणाली का सवाल है तो इसने हमारे सामने व्हाइट कॉलर जॉब चाहने वाले ऐसे युवाओं की फौज खड़ी कर दी है जो कईं राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पैमानों पर खरे नहीं उतरते। हालांकि वेंद्र सरकार ने इस स्थिति को देखते हुए अभी पिछले दिनों नईं शिक्षा नीति की घोषणा की है जिससे भविष्य में रोजगार के अवसरों में वुछ बेहतर बदलाव आने की उम्मीद है। यह उम्मीद कहां तक सही साबित होगी इसके लिए हमें अगले वुछ वर्षो का इंतजार करना होगा। बेरोजगारी का परिणाम कईं रूपों में हमारे सामने आता है। रोजगार छिन जाने का डर बढ़ते हुए आत्महत्या के मामलों से हमारे सामने आ रहा है। कईं मामले ऐसे भी हैं जहां आर्थिक तंगी के चलते पूरे परिवार ने आत्महत्या कर ली। समाज पर बढ़ती बेरोजगारी का एक और प्राभाव बढ़ते हुए अपराध के रूप में भी सामने आता है। कईं ऐसे युवक जिन्हें मनचाहा रोजगार नहीं मिलता या फिर वह बेरोजगारी का सामना कर रहे होते हैं ऐसे लोग अपराध की दुनिया में उतर जाते हैं। कोरोना काल में कईं क्षेत्रों में कार्यंरत लोगों का रोजगार छिन गया है और वह बेरोजगार हो गए हैं। हालांकि सरकार ने समाज के वुछ वर्गो और उदृाोगों को आर्थिक मदद जरूर दी है लेकिन न्यूज पेपर इंडस्ट्री को अभी तक वुछ नहीं मिला।
उल्लेखनीय है कि इस इंडस्ट्री में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से 30 लाख लोग काम करते हैं। यदि जल्दी ही इस इंडस्ट्री को कोईं राहत पैकेज नहीं मिला तो बड़ी संख्या में मध्यम एवं लघु स्तर के समाचार पत्रों के बंद होने की आशंका है जिससे बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो सकते हैं। सरकार को बेरोजगारी के अभिशाप से देश को मुक्त कराना आवश्यक है। जब तक देश में आर्थिक गतिविधियां कमजोर रहेंगी तब तक बेरोजगारी की समस्या से पार नहीं पाया जा सकता। इसके लिए वुछ सेक्टरों की मदद करने और वुछ को नजरंदाज करने से काम नहीं चल सकता है क्योंकि ज्यादा या कम रोजगार तो हर सेक्टर में मिलता है।