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प्र‍िय प्राकाश जावड़ेकर जी जरा हमारी भी सुनिए

👤 Veer Arjun | Updated on:21 Sep 2020 10:15 AM GMT

प्र‍िय प्राकाश जावड़ेकर जी जरा हमारी भी सुनिए

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-आदित्य नरेन्द्र

आर्थिक सुस्ती और कोरोना महामारी से जो व्यवसाय सबसे ज्यादा प्राभावित हुए हैं उनमें न्यूज पेपर इंडस्ट्री भी शामिल है। लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहे जाने वाली इस इंडस्ट्री से एक अनुमान के अनुसार प्रात्यक्ष एवं अप्रात्यक्ष रूप से लगभग तीस लाख लोगों की आजीविका जुड़ी है। अखबारों का 75 प्रातिशत रेवेन्यू विज्ञापनों और 25 प्रातिशत सर्वुलेशन से आता है लेकिन कोरोना महामारी के चलते इसमें काफी गिरावट आईं है और प््िरांट मीडिया हर गुजरते दिन के साथ अच्छा-खासा नुकसान झेल रहा है।

आर्थिक गतिविधियां सिवुड़ने का असर यह हुआ है कि न्यूज पेपर इंडस्ट्री में नकदी की किल्लत आम हो चुकी है। एक ओर जहां बड़े अखबार मुश्किल से अपना खर्च चला रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर मध्यम एवं लघु स्तर के अखबारों की हालत इतनी खराब हो गईं है कि वह अपने कर्मचारियों और वेंडरों को वेतन के भुगतान में खुद को असमर्थ महसूस कर रहे हैं क्योंकि इन अखबारों को या तो विज्ञापन मिल नहीं रहे हैं और यदि मिल भी रहे हैं तो बेहद कम संख्या में मिल रहे हैं जिससे उनके आगे आर्थिक कठिनाईं पैदा हो गईं है। ऐसी स्थिति में मध्यम एवं लघु स्तर के अखबार चला रहे अखबार मालिकों के पास दो ही विकल्प बचते हैं। पहला वह अपने संस्थान में कर्मचारियों की छंटनी करें और दूसरा विकल्प यह है कि अखबार बंद करके अपने गुजारे के लिए कोईं दूसरा काम- धंधा तलाशें। यह दोनों ही स्थितियां बेहद खराब होंगी। दोनों ही विकल्प कोरोना महामारी के दौरान पहले से ही परेशान न्यूज पेपर इंडस्ट्री के कर्मियों के पेट पर लात मारने जैसे हैं। स्थिति में सुधार के लिए राज्य एवं वेंद्र सरकारों से मदद मिलनी जरूरी है।

इसके लिए यह भी जरूरी है कि न्यूज पेपर इंडस्ट्री से जुड़े लोगों की आजीविका बचाने के लिए सरकार प्राकाशन संस्थानों को छंटनी रोकने का आदेश दे। आज न्यूज पेपर इंडस्ट्री की मांगों पर सरकार द्वारा तुरन्त संज्ञान लेने की जरूरत है। पिछले काफी समय से न्यूज पेपर इंडस्ट्री की तरफ से न्यूज प््िरांट से आयात शुल्क हटाने और दो साल तक टैक्स न लेने की मांग की जा रही है। इसके अलावा सरकार को चाहिए कि न्यूज प्रि‍ंट इंडस्ट्री के लिए एक राहत एवं प्राोत्साहन पैकेज उपलब्ध कराए जिसमें सरकारी विज्ञापनों को तुरन्त प्राभाव से सभी स्तर के अखबारों के लिए खोलना, इसकी दरों में 25 से 40 प्रातिशत का इजाफा और अखबारों के बकाए का तुरन्त भुगतान शामिल हो। कोरोना महामारी के दौरान न्यूज पेपर इंडस्ट्री में काम करने वाले ऐसे पत्रकारों एवं कर्मियों को जिन्हें नौकरी से निकाल दिया गया है उन्हें सरकार एकमुश्त सहायता राशि उपलब्ध कराए। पत्रकारों की सुरक्षा के साथ-साथ उनके इंश्योरेंस का इंतजाम भी किया जाना चाहिए ताकि न्यूज पेपर इंडस्ट्री से जुड़े लोग बेखौफ होकर अपने काम को अंजाम दे सवें। न्यूज पेपर इंडस्ट्री को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए सरकार को चाहिए की वह आसान शर्तो पर उसे लोन दिलवाने का इंतजाम करे।

न्यूज पेपर इंडस्ट्री को लग रहा है कि सरकार कहीं न कहीं टीवी चैनलों को ज्यादा महत्व दे रही है और प्रि‍ंट मीडिया की समस्याओं को नजरंदाज कर रही है। जबकि प्रि‍ंंट मीडिया सरकार के लोगों तक और लोगों के सरकार तक पहुंचने का बेहद विश्वसनीय माध्यम है। कोरोना संकट के काल में भी टीवी में एक घंटे में 15 मिनट तक के सरकारी विज्ञापन आ रहे हैं जिससे उनके रेवेन्यू पर कोईं फर्व नहीं पड़ा बल्कि इजाफा ही हुआ है। क्योंकि टीवी विभिन्न सूचनाएं देने का माध्यम बन गया है जबकि प्र‍िंंट मीडिया की अनदेखी की गईं है। टीवी हर जगह नहीं पहुंच सकता परन्तु अखबार हर जगह पहुंच सकता है। नकदी के संकट के चलते हिन्दी, उर्दू और प्रादेशिक भाषाओं के मध्यम एवं छोटे अखबारों के खत्म होने का खतरा बढ़ रहा है। इसलिए वेंद्रीय सूचना एवं प्रासारण मंत्री प्राकाश जावड़ेकर से न्यूज पेपर इंडस्ट्री अपनी मांगों को लेकर समर्थन चाहती है। 75 से 80 प्रातिशत मध्यम एवं लघु स्तर के अखबारों पर एनडीए शासन के दौरान बंद होने का खतरा मंडरा रहा है। कहीं ऐसा न हो कि प्रि‍ंंट मीडिया सरकार के समर्थन के अभाव में बीते जमाने की बात हो जाए। यह पूरे विश्व में शर्मिदगी की बात होगी कि दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में प्रि‍ंट मीडिया दम तोड़ने लगे। उम्मीद है कि जावड़ेकर जी हमारी बात सुनेंगे और हमारी समस्याओं के समाधान के लिए जरूरी कदम उठाएंगे।

दृष्टिकोण 75 से 80 प्रातिशत मध्यम एवं लघु स्तर के अखबारों पर एनडीए शासन के दौरान बंद होने का खतरा मंडरा रहा है। कहीं ऐसा न हो कि प््िरांट मीडिया सरकार के समर्थन के अभाव में बीते जमाने की बात हो जाए। यह पूरे विश्व में शर्मिदगी की बात होगी कि दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में प््िरांट मीडिया दम तोड़ने लगे। उम्मीद है कि जावड़ेकर जी हमारी बात सुनेंगे और हमारी समस्याओं के समाधान के लिए जरूरी कदम उठाएंगे।

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