अमेरिकी जेल में अवैध भारतीय आव्रजकों से अपराधियों जैसा बर्ताव
अस्टोरिया (अमेरिका), (भाषा)। अमेरिका में शरण मांग रहे 50 से ज्यादा अवैध भारतीय आव्रजकों के साथ जेल में अपराधियों की तरह सलूक किया गया है। इन बंदियों में ज्यादातर सिख हैं जिनकी पगड़ियां भी उतरवा ली गयी हैं। इन बंदियों को कानूनी मदद कर रहे लोगों ने उनकी हालत के बारे में बताया है।
ट्रंप प्रशासन के विवादास्पद जीरो टॉलरेंस की नीति में फंसे इन आव्रजकों को ओरेगांव के एक संघीय जेल में रखा गया है। उल्लेखनीय है कि ट्रंप प्रशासन की सख्त आव्रजन नीति की वजह से इस साल 19 अप्रैल से 31 मई के बीच तकरीबन 2,000 बच्चों को उनके अभिभावकों से अलग कर विभिन्न आश्रय स्थलों में रखा गया है। हालांकि, विरोध प्रदर्शन के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विवादित फैसले को कार्यकारी आदेश के जरिए पलट दिया। इन बंदियों को मदद पहुंचा रही प्रोफेसर नवनीत कौर ने बताया, आप जब वहां जाते हैं तो यह देखकर बहुत दुख होता है कि किशोरों को वहां रखा गया है ... आपको हैरानी होती है कि उनके साथ अपराधियों सा बर्ताव होता है। उन्होंने अपराध नहीं किया है, उन्होंने सीमा पार की है और उन्होंने शरण मांगी है और यह इस देश में एक कानून है। पिछले कुछ हफ्ते में नवनीत ने ओरेगांव के शेरिडान में संघीय जेल में 52 भारतीय बंदियों में से अधिकतर के साथ बातचीत की है। जेल में अवैध प्रवासियों को कानूनी सहायता मुहैया करा रही गैर लाभकारी कानूनी कंपनी इन्नोवेशन लॉ लैब के लिए वह पंजाबी अनुवादक के तौर पर काम कर रही है। शेरिडान में कुल 123 अवैध प्रवासियों में सबसे ज्यादा भारतीय हैं। कुल 52 भारतीय में अधिकतर पंजाबी बोलने वाले और सिख हैं। इन बंदियों को जंजीरों में कैद कर दिया गया।
उन्होंने कहा, हाथों में हथकड़ी और जंजीर से जकड़े होने के बीच ही उन्हें खाना दिया गया। दुर्दांत अपराधियों के साथ भी ऐसा व्यवहार नहीं होता। सिख बंदियों के लिए स्थिति बहुत खराब है। जेल के भीतर उनकी पगड़ी भी ले ली गयी। सिर पर कपड़े का एक टुकड़ा तक रखने नहीं दिया गया। नवनीत ने कहा, उनकी पगड़ी ले ली गयी। एक ऐसे देश में जहां हर किसी को अपना धर्म पालन करने का अधिकार है उन्हें पगड़ी भी नहीं पहनने का हक नहीं है।
हाल में सान फांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास ने अपने अधिकारियों को इन बंदियों से मिलने के लिए भेजा था। लेकिन, यह स्पष्ट नहीं है कि क्या इन भारतीय नागरिकों ने उन्हें वापस वतन भेजने के लिए भारत सरकार की मदद स्वीकार की या नहीं।