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टिकटॉक अमेरिकी हाथों में बिक रहा है, माइक्रोसाफट है ख़रीदार

👤 manish kumar | Updated on:1 Aug 2020 7:04 AM GMT

टिकटॉक अमेरिकी हाथों में बिक रहा है, माइक्रोसाफट है ख़रीदार

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लॉस एंजेल्स । चीनी विवादास्पद ऐप 'टिकटॉक' अमेरिकी हाथों में बिक रहा है। पहले खबर आई थी कि अमेरिकी निवेशक सिक्वॉअ कैपिटल और जनरल एटलांटिक इसे ख़रीदने के लिए क़रीब सौ अरब डॉलर निवेश कर रहे हैं। अब मीडिया में रिपोर्ट है कि माइक्रोसॉफ्ट ही इसे ख़रीद रहा है। हालाँकि माइक्रोसॉफ्ट

ने कोई प्रतिक्रिया करने से इनकार किया है।

शुक्रवार सुबह राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से पत्रकारों ने पूछा तो उन्होंने कहा कि वह तो इस ऐप पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहे हैं। ट्रम्प प्रशासन पहले ही इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा बता चुका है। भारत में इसे हाल में 59 चीनी एप्स के साथ प्रतिबंधित किया गया है। शुरू में बाइट डाँस ही पैतृक कंपनी थी, बाद में उसने ख़ुद को टिकटॉक में मिला दिया।

टिकटॉक एक पैतृक चीनी कंपनी 'बाइट डाँस' की उत्पत्ति है। बाइट डाँस की स्थापना सन 2014 में सैन फ़्रांसिस्को में हुई थी, तब शुरू में म्यूज़िक वीडियो तक सीमित थी। कालांतर में दुनिया भर की युवा पीढ़ी को लुभाने के लिए इसने सोशल मीडिया से संबद्ध किया। इसके बाद अब वैश्विक स्तर पर इसके 80 करोड़ यूज़र्स हो गए है। इसके न्यूयॉर्क और लॉस एंजेल्स दफ़्तरों में हज़ारों कर्मचारी हैं। इसने डिज़्नी के एक वरिष्ठ अधिकारी केविन मेयर को ऊँचे ओहदे पर रख लिया है। चीनी कंपनी भरपूर कोशिश में है कि वह वाल स्ट्रीट के धुरंधर लॉबिस्ट की मदद से किसी तरह इस कंपनी को ट्रम्प की निगाहों से बचने में सफल हो जाए और इसे किसी अमेरिकी कंपनी के हाथों में सुपुर्द कर दे।

अमेरिकी मीडिया के अनुसार 'टिकटॉक' पर नकेल कसने के लिए प्रशासन दो विकल्प पर चर्चा कर रहा है। टिकटॉक को किसी अमेरिकी कंपनी के हाथों बेच दिया जाए। ऐसा नहीं हो पाता है तो प्रशासन इसे 'एंटीटी लिस्ट' में डाल कर इसके विरुद्ध अमेरिकी सेवाएँ और उत्पादों के इस्तेमाल पर रोक लगा सकती है। इस स्थिति से बचने के लिए कंपनियाँ प्रशासन से एक अनापत्ति प्रमाण पत्र लेती हैं, जो मौजूदा विवाद के चलते एक मुश्किल प्रक्रिया है। इस कार्य में एक विदेशी कंपनी को अमेरिका की विदेशी मामलों की निवेश समिति से हरी झंडी लेना अनिवार्य होता है।

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