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भारत-जापान दोनों संतुलन की खोज में

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:12 April 2019 6:13 PM GMT
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किसी भी देश की विदेश नीति का मुख्य आधार उस देश को वैश्विक स्तर पर न केवल उपस्थिति दर्ज कराना बल्कि अपनी नीतियों के माध्यम से नई ऊंचाई हासिल करना भी होता है। अक्तूबर के आखिर में पधानमंत्री मोदी की जापान यात्रा को सरसरी तौर पर देखा जाए तो संबंधों को नई ऊंचाई और संतुलनवादी सिद्धांत में बढ़त मिली है। जापानी पधानमंत्री शिंजो एबे से मोदी की यह बारहवीं मुलाकात थी जिसमें दोस्ती और भरोसा दोनों का समावेश था। हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच संबंधों के लिहाज से गुणात्मक बदलाव फिलहाल देखने को मिल रहा है। गौरतलब है कि जापान के पधानमंत्री एबे की पिछले साल सितम्बर यात्रा वैसे तो बुलेट ट्रेन के चलते कहीं अधिक सुर्खियों में रही मगर गुजरात के गांधीनगर में मोदी के साथ द्विपक्षीय बै"क में जो कुछ हुआ था उससे यह स्पष्ट था कि रणनीति और सुरक्षा संबंधी मापदंडों पर भारत और जापान कहीं अधिक स्पीड से आगे बढ़ना चाहते हैं। इसी समय शिंजो एबे ने जय जापान, जय इंडिया का नारा दिया था। भारत के साथ जापान के बढ़ते रिश्तों को लेकर फिलहाल चीन भी हरकत में है। जापान के सहयोग से भारत चीन से लगी सीमा पर आधारभूत ढांचे का विकास कर रहा है और इसी इलाके पर चीन अपना दावा करता है। भारत और जापान की द्विपक्षीय वार्ता के दौरान पीएम मोदी और जापान के पीएम शिंजो एबे के बीच हाईस्पीड ट्रेन और नेवी कॉरपोरेश समेत कई समझौते हुए इस दौरान दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों और विदेश मंत्रियों के बीच टू प्लस टू वार्ता को लेकर भी सहमति बनी। इतना ही नहीं दोनों डिजिटल पार्टनर्स से साइबर स्पेस, स्वास्थ, रक्षा, समुद्र से अंतरिक्ष में सहयोग बढ़ाने को लेकर सहमत हुए। खास यह भी है कि जापान के निवेशकों ने ढाई मिलियन डॉलर निवेश करने का भी ऐलान किया। बीते कुछ वर्षों से नैसर्गिक मित्रता की ओर बढ़ रहे भारत और जापान आपस में पहले भी दोस्ती के अच्छे संकेत दे चुके हैं। गौरतलब है कि अहमदाबाद से मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन की परियोजना के कुल खर्च 110 हजार करोड़ के निवेश में 88 हजार करोड़ निवेश जापान द्वारा किया जाना तय है साथ ही तकनीक की उपलब्धता भी वह करा रहा है। भारत का उत्कृष्ट नेता बताते हुए एबे ने मोदी को सबसे भरोसेमंद दोस्त कहा है। भारत और जापान के संबंध दुनिया को बहुत कुछ दे सकने की क्षमता रखता है।

-राजेश चौहान,

रोहिणी, दिल्ली।

एंटीबॉयोटिक दवाओं का अपना ही महत्व है

एंटीबॉयोटिक दवाओं को लेकर अरसे से जताई जा रही चिंता भले ही गंभीर रूप लेती जा रही हो, लेकिन हकीकत यह है कि तमाम बीमारियों का रामबाण इलाज आज भी इन्हीं दवाओं से संभव हो पा रहा है। 75 साल पहले इन दवाओं का उत्पादन शुरू हुआ था। प्लेग जैसी महामारी से इन्हीं दवाओं ने छुटकारा दिलाया। 1340 में यूरोप में ढाई करोड़ से भी ज्यादा लोग प्लेग की चपेट में आकर मरे थे। किंतु अब यह महामारी लगभग पूरी तरह खत्म हो चुकी है। हकीकत यह भी है कि मलेरिया जैसी घातक और विश्वव्यापी बीमारी पर नियंत्रण इन्हीं एंटीबॉयोटिक दवाओं से है। बावजूद इन दवाओं को इसलिए दुफ्रचारित इसलिए किया जाता है, क्योंकि कभी-कभी ये शरीर में एलर्जी व अन्य नई बीमारियों को पैदा करने का सबब बन जाती है। इसी कारण यह आशंका उत्पन्न हो रही है कि ये दवाएं अपनी हीरक जयंती तो मना लेंगी, लेकिन शताब्दी समारोह मना पाएंगी अथवा नहीं? दरअसल आसानी से उपलब्ध होने और नीम-हकीम द्वारा रोग की "ाrक से पहचान नहीं किए जाने के बावजूद ये दवाएं रोगी को जरूरत से ज्यादा खिलाई जा रही है। इस कारण ये दवा-दुकानों के अलावा गांव की परचून दुकानों पर भी मिल जाती है। लिहाजा शरीर में जो जीवाणु व विषाणु मौजूद हैं, वे इन दवाओं के विरुद्ध अपना फ्रतिरोधी तंत्र विकसित करने में सफल हो रहे हैं। नतीजतन ये दवाएं रोग पर बेअसर भी साबित हो रही है। इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संग"न ने अपनी एक रिपोर्ट में एंटीबायोटिक दवाओं के विरुद्ध पैदा हो रही पतिरोधत्मक क्षमता को मानव स्वास्थ के लिए वैश्विक खतरे की संज्ञा दी है। इस रिपोर्ट से साफ हुआ है कि चिकित्सा विज्ञान के नए-नए आविष्कार और उपचार के अत्याधुनिक तरीके भी इंसान को खतरनाक बीमारियों से छुटकारा नहीं दिला पा रहे हैं। चिंता की बात यह है कि जिन महामारियों के दुनिया से समाप्त होने का दावा किया गया था, वे फिर आक्रामक हो रही है। तय है, मानव जीवन के लिए हानिकारक जिन सूक्ष्मजीवों को नष्ट करने की दवाएं ईजाद की गई थीं, वे स्थायी तौर से रोगनाशक साबित नहीं हुई। डब्ल्यूएचओ ने 114 देशों से जुटाए गए आकडों का विश्लेषण करते हुए रिपोर्ट में कहा है कि यह फ्रतिरोधक क्षमता दुनिया के हर कोने में दिख रही है। रिपोर्ट में एक ऐसे पोस्ट एंटीबायोटिक युग की आशंका जताई गई है, जिसमें लोगों के सामने फिर उन्हीं सामान्य संक्रमणों के कारण मौत का खतरा होगा, जिनका पिछले कई दशकों से इलाज संभव हो रहा है। यह रिपोर्ट मलेरिया, निमोनिया, डायरिया और रक्त संक्रमण का कारण बनने वाले सात अलग-अलग जीवाणुओं पर केंद्रित है। दो फ्रमुख एंटीबायोटिक का फ्रभाव नहीं पड़ा। स्वाभाविक तौर पर जीवाणु धीरे-धीरे एंटीबायोटिक के विरुद्ध अपने अंदर फ्रतिरक्षा क्षमता पैदा कर लेता है।

-सतीश कुमार,

पंजाबी बाग, दिल्ली।

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