Home » आपके पत्र » अलोकतांत्रिक है विपक्ष की गतिविधियों को रोकना

अलोकतांत्रिक है विपक्ष की गतिविधियों को रोकना

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:21 April 2019 6:34 PM GMT
Share Post

राजनीति में विरोधियों को पछाड़ने और परास्त करने की जुगत हमेशा चल करती है। लेकिन ये पतिस्पर्धा किसी जमाने में स्वस्थ तरीके से हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा थी। समय बीतने के साथ ही साथ लोकतंत्र में विरोध करने के तौर तरीके भी बदल गए। आज पतिस्पर्धा इतनी बढ़ चुकी है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुरूप दल व सरकार चलाने वाले तमाम अलोकतांत्रिक काम करने से परहेज नहीं करते हैं। यह राजनीति में अपनी शक्ति का फ्रयोग करके विपक्षियों को दबाव बनाना कोई नई बात नहीं है। भारत में तो यह आम बात है कि सत्ता पक्ष विरोधियों की आवाज दबाने के लिए तमाम हथकंडे अपनाता है। इसका सबसे ताजा उदाहरण पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा उत्तर पदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का हेलीकॉप्टर न उतरने देने का मामला है। वहीं दूसरा मामला उत्तर पदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का है, जिन्हें यूपी सरकार ने एक कार्यक्रम में जाने की इजाजत नहीं दी और अखिलेश यादव लखनऊ एयरपोर्ट से वापस लौटना पड़ा। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर फ्रदेश के निर्वाचित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का हेलीकॉप्टर बंगाल की सीमा में न उतर सके, तो उस स्थिति को क्या नाम दिया जाए? योगी आदित्यनाथ को झारखंड के बोकारो में हेलीकॉप्टर से उतरना पड़ा और फिर वह सड़क मार्ग से बंगाल की सीमा में पुरुलिया जा सके। वहां उन्होंने भाजपा की एक जनसभा को संबोधित किया और ममता को अराजक, अलोकतांत्रिक, असंवैधानिक और बर्बर, निर्मम शासक करार दिया। फ्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के रास्ते में किस तरह रोड़े बिछाए गए, वह तो पुरानी बात हो गई, लेकिन मध्य फ्रदेश के 13 साल तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान को बहरामपुर में रैली की इजाजत नहीं दी गई है और पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन मुर्शिदाबाद में रैली नहीं कर पाएंगे, तो सीधा सवाल है कि ममता उनसे खौफ क्यों खाती हैं? ममता किस संविधान और संघीय ढांचे की रक्षा करने को आंदोलित हैं? दुर्भाग्यपूर्ण है कि बंगाल में घुसपै"िए रोहिंग्या को तो शरण और रोटी-पानी नसीब है, लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं को जनसभाएं करनी हैं या चुनाव फ्रचार करना है, तो ममता `दादा' का परमिट लेना पड़ेगा। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किन कानूनों और संवैधानिक फ्रावधानों के तहत बंगाल के दरवाजे बंद कर रखे हैं? बंगाल में सीबीआई के फ्रवेश को मंजूरी नहीं। सेना अभ्यास करे, तो उसे सैन्य तैनाती करार दिया जाए। आयुष्मान भारत समेत केंद्र की कई योजनाओं को लागू न करना। बंगाल की नौकरशाही को आदेश देना कि कोई भी डाटा केंद्र सरकार के साथ साझा नहीं करना है। 2015 से नीति आयोग की बै"कों में न आकर केंद्र का अघोषित बहिष्कार करना। क्या यही ममता बनर्जी का संघीयवाद है? क्या ये कोशिशें भारत सरकार से अलग होने की नहीं हैं? या पश्चिम बंगाल को भारतीय गणराज्य से अलग किया जा सकता है? पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और फ्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का फ्राइवेट चार्टर्ड जहाज फ्रयागराज (इलाहाबाद) उड़ने के लिए तैयार था। जहां उन्हें छात्र संघ की एक सभा में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में शामिल होना था। ऐन मौके पर अधिकारियों ने उन्हें फ्रशासनिक कारणों से कानून व्यवस्था बिगड़ने का डर दिखाकर इलाहाबाद नहीं जाने दिया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अखिलेश यादव की इलाहाबाद यात्रा विद्यार्थियों में हिंसा और अराजकता बढ़ाने का कारण बन सकती है। वैसे समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने हिंसा तो की जो कि न सिर्प इलाहाबाद बल्कि फ्रदेश के अन्य भागों में भी हुई। इसको उनकी नई सहयोगी बसपा फ्रमुख मायावती ने भाजपा सरकार को उत्तर फ्रदेश में फ्रजातंत्र के हनन और सपा-बसपा गठबंधन के खिलाफ योजनाबद्ध राजनीतिक दखलंदाजी करार दिया। देखा जाए तो अखिलेश को रोकने के लिए योगी ने अशांति व अराजकता फैलने के अंदेशों समेत वही सारे तर्प दोहराए हैं, जो उनका हेलीकाप्टर न उतरने देने के पक्ष में ममता बनर्जी ने दिए थे। इतना ही नहीं, समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उत्तर फ्रदेश मं4 योगी सरकार द्वारा अखिलेश को उड़ने से' रोकने का वैसा ही उग्र विरोध किया है, जैसा पश्चिम बंगाल में भाजपा के कार्यकर्ताओं ने योगी को `उतरने से' रोकने का किया था।

-हरनेक सिंह,

पंजाबी बाग, दिल्ली।

भारत के "ाsस कदम उठेंगे कब

एक अच्छे राजनयिक के गुण क्या होते हैं? एक अज्ञात अंग्रेज लेखक ने अपनी पुस्तक डिप्लोमेसी में लिखा है सच्चाई, सटीकता, धैर्य, अच्छा मिजाज और वफादारी। मौजूदा समय में पुलवामा की घटना को देखते हुए भारत को पाकिस्तान के मामले में उक्त सभी शब्दों से आपत्ति होगी। बुद्धिमत्ता, ज्ञान, विवेक, गरिमा, विनम्रता, आकर्षण, मेहनत, साहस और चालबाजी को आप कैसे भूल सकते हैं। मैं इन्हें भूला नहीं हूं यह सब तो होने ही चाहिए। यह बात लिखने वाले लेखक हेराल्ड निक्सन हैं। चूंकि भारत पर इन दिनों गमों का पहाड़ टूटा है और इसका जिम्मेदार पहले की तरह पाकिस्तान ही है। ऐसे में उपरोक्त लिखित शब्दों के अर्थ व विश्लेषण में समय खर्च करने के बजाय भारत को इंडिया फर्स्ट की नीति पर अब चल देना चाहिए। मुश्किल यह है कि जो पाकिस्तान बाहर से स्वयं को दुनिया के सामने पाक-साफ दिखाता है वह भीतर ही भीतर आतंकी कचरे से भरा पड़ा है। आतंकी हमलों ने हमारी कूटनीति को कभी सफल नहीं होने दिया और 70 साल की विफल दोस्ती के साथ पाकिस्तान के पति हम इसके उलट उदार भी बने रहे। पाकिस्तान का पधानमंत्री इमरान खान कहता है कि पाक सरकार और सेना दोनों भारत के साथ सभ्य रिश्ते चाहते हैं और इसके आगे यह कहा कि इरादे बड़े हों तो सभी मसले हल हो सकते हैं। अब इमरान खान को यह समझाना जरूरी है कि आतंक का पनाहगार पाकिस्तान, न तो इरादे में बड़ा है और न ही मसले को हल करना चाहता है बल्कि वह भारत पर आत्मघाती पहार करने का अवसर खोजता रहता है। ब्रिटेन ने भारत का विभाजन कर दिया और अपनी निजी महत्वाकांक्षा की पूर्ति कर ली। ऐसा पड़ोस विकसित किया जो उद्भवकाल से घुसपै", युद्ध और बीते तीन दशकों से अपना आतंकी मलबा हमारे पर फेंक रहा है। देखा जाए तो जितनी पुरानी स्वतंत्रता है उतनी ही पुरानी पड़ोसी पाकिस्तान से अनचाहा संघर्ष भी। भारत इन दिनों कराह रहा है और चीख भी रहा है यह समझना मुश्किल है कि इसे आवाज कहें, गुहार कहें, पुकार कहें या फिर फिजा में दर्द की गूंज कहें जो भी है हर आवाज पाकिस्तान से बदला चाहती हैं। पधानमंत्री मोदी के मन में भी वही बात है जो जनता के मन में है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि हमारे कदम इतने "ाsस होते हैं कि उ" ही नहीं पाते हैं पर सहने की मजबूरी हमेशा भारत की ही क्यों। देश के हर पधानमंत्री की सोच के हिसाब से नीति में कुछ बदलाव भी आते रहे हैं और तमाम गलतियों के बावजूद पाकिस्तान लीपापोती करके बचता रहा है। अंतर्राष्ट्रीय नियमों की अनदेखी करना पाकिस्तान की आदत है। भारत में वारदातों को अंजाम देने के बाद मुकरना उसकी फितरत है। सबक सिखाने के नाम पर भारत जो भी पयोग करता है वह भी ढी" पाकिस्तान के आगे कम ही पड़ता है। कभी-कभी लगता है कि पाकिस्तान का बनना ही एक कूटनीतिक गलती थी। यदि बन भी गया था तो भारत का उसके पति उदार बने रहना दूसरी गलती थी। इतना ही नहीं राजनयिक चूक का बार-बार होना शायद भारत की ओर से लगातार हो रही गलती ही है। ऐसा इस लिए कह रहा हूं क्योंकि 70 सालों में पाकिस्तान से कुछ भी हमें ऐसा नहीं मिला जिसे हम उपलब्धि कह पायें। हां इसके बदले में भारत हजारों की तादाद में सैनिकों और नागरिकों को खोया जरूर है। भारत निर्णायक और सख्त क्यों नहीं हो पा रहा है। भारत सभी बड़े युद्धों में पाकिस्तान को हराने के बावजूद पाकिस्तान के पति स्वैच्छिक रूप से उदार क्यों बना रहा। जबकि पाकिस्तान का दीर्घकालिक रणनीतिक उद्देश्य यह रहा है कि भारत दक्षिण-एशिया में सबसे पभावी ताकत के रूप में न उभर पाए। पाकिस्तान ने बहुत से मुस्लिम देशों, एशियाई और पश्चिमी शक्तियों का समर्थन हासिल कर लिया था ताकि भारत को सुरक्षात्मक रुख अपनाने में विवश कर सके। भारतीय धर्म निरपेक्षता, लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थानों पर पाकिस्तान ने बार-बार सवाल उ"ाया। यह उसका भारत में मतभेद पैदा करने का सोचा-समझा पयास था। जम्मू-कश्मीर, पंजाब और उत्तर-पूर्वी राज्यों में अलगाववादियों, आतंकवादियों और विध्वंसक शक्तियों का पाकिस्तान सहायता करता रहा और भारत इन्हीं से लड़ने में समय और संसाधन खर्च करता रहा। हालांकि तस्वीर बदली है और दुनिया में वह एक आतंकी देश के तौर पर देखा जा रहा है। मगर सच्चाई यह है कि कीमत अभी भी भारत ही चुका रहा है। बीते 14 फरवरी को पुलवामा में जो हुआ वह इस बात को साबित करता है कि हमारे पयास कुछ भी हुए हों पाकिस्तान जस का तस है। पाकिस्तान की सीना जोरी यह है कि मुंबई, प"ानकोट और उरी की तर्ज पर ही पुलवामा का भी सबूत मांग रहा है जबकि भारत के सबूतों का उसकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता है। सबूत उसके लिए एक टाइम पास पक्रिया है।

-नीलम वर्मा,

विकासपुरी, दिल्ली।

Share it
Top