हौंसला बुलंद हो तो हर काम आसान
कहावत है कि अगर हौंसला और हिम्मत हो तो जिंदगी को अपने मुताबिक जिया जा सकता है। अपने हाथों से किस्मत की लकीरें खुद बनाई जा सकती है। हालांकि इसमें कई मुश्किलें और रुकावटें आती हैं, कदम-कदम पर चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। लेकिन जो इन्हें पार कर लेता है वही दुनिया में मिसाल कायम करता है। ऐसी ही एक मिसाल है बिहार के रोहतास जिला के अकबरपुर गांव की रहने वाली राजकुमारी देवी। जिन्होंने न केवल बाल विवाह का दंश झेला बल्कि बेटी पैदा होने पर पति के त्यागे जाने के बावजूद अपने हौसले और हिम्मत से उसकी परवरिश की। हमारे देश में जहां बेटियों के सम्मान और सुरक्षा के लिए बेटी बचाओ, बेटी पढाओ जैसी महत्वकांक्षी योजनाएं चलाई जा रही हैं वहीं दूसरी ओर विडंबना यह है कि 21वीं सदी के इस दौड़ में भी बेटी को अभिशाप और बोझ समझा जाता है। समाज लक्ष्मी, दुर्गा और मरियम को पूजता है, रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का रसखान करता है, रजिया सुल्ताना के हौसले को सलाम करता है और कल्पना चावला जैसी बेटी पर गर्व करता है लेकिन दूसरी ओर स्वयं के घर जन्मी बेटी की खबर सुनकर न केवल अपमानित महसूस करता है।
-नीलम वर्मा,
विकासपुरी, दिल्ली।
मोदी मैजिक के बीच राहुल की वापसी
बड़ी जीत का दावा करने वाली भाजपा 5 राज्यों के चुनाव में औंधे मुंह गिरी है। भाजपा बिन पानी मछली की तरह अगर तड़प रही है तो कांग्रेस जीत के सरोवर में गोते लगा रही है। ऐसा पहली बार है जब बीते साढ़े चार सालों में 5 राज्यों में भाजपा ने चुनाव लडा हो और परिणाम सिफर रहे हों। राजस्थान और मध्य पदेश में हुए क्रमशः 200 व 230 विधानसभा सीटों के बीच कांटे की टक्कर भाजपा और कांग्रेस के बीच रही पर सत्ता को लेकर जो बड़े पैमाने पर सीट जीतने का सपना था वो भाजपा का पूरा नहीं हुआ। हालांकि राजस्थान में एक उम्मीदवार की मृत्यु के कारण चुनाव 199 सीटों पर ही हुए थे। 90 विधानसभा वाले छत्तीसगढ में जिस कदर भाजपा निस्तोनाबूत हुई उसकी उम्मीद न तो वहां के मुख्यमंत्री रमन सिंह को थी न तो पधानमंत्री मोदी को रही होगी और न ही राजनीतिक जानकार को यह संज्ञान रहा होगा। इतना ही नहीं 119 सीटों वाली तेलंगाना में जिस तरह का पदर्शन केसीआर की पार्टी टीआरएस ने की वह भी भारतीय राजनीति में बड़ा महत्व का है। जिसके पभाव से 2019 का लोकसभा चुनाव पभावित हुए बगैर शायद ही रह पाए। उत्तर पूर्व के राज्य मिजोरम में 40 सीटों के मुकाबले जिस तरह के नतीजे दिखे उसमें कांग्रेस का किला ढहा है और भाजपा की उम्मीदों पर कु"ाराघात हुआ है। हालांकि यहां भाजपा को खोने के लिए कुछ नहीं था पर कांग्रेस ने एमएनएफ के हाथों अपनी सत्ता गंवा दी। चुनावी समर को शिद्दत से समझा जाय तो यह आभास होगा कि इस चुनाव में सबसे ज्यादा भाजपा ने खोया है।
-मुकेश अग्रवाल,
आजादपुर, दिल्ली।