पार्टियों का घोषणापत्र
चुनावों की सरगर्मी पूरे शवाब पर है। आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर पूरी तरह से जारी है। क्यों क्या कह रहा है कितना सही दावे या वादे कर रहा है यह तो करने वाले ही जानें और यह भी वे ही जानें कि उनमें से वे कितने पूरे कर पाएंगे। लेकिन एक बात तो हमें भी अब खलने लगी है। हर पार्टी अब हर नागरिक को भिखमंगा बनाने पर तुली है। किसानों को प्रलोभन दिया जा रहा है कि बैंकों से लोन लो और फिर माफ कराने के लिए आंदोलन करो। युवाओं को भी रोजगार के नाम पर बैंकों से लोन दिया जा रहा है यह तो खैर अच्छी बात है। केवल लोन ही देना काफी नहीं है। उनको उस काम की जिसे वे आरंभ करना चाहते हैं और परिपक्वता के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे और भी अधिक श्रम व सफलता के साथ उस काम को पूरा कर सकें। बैंकों से बड़े-बड़े कारोबारियों को लोन देते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें किस सीमा तक लोन दिया जाना उचित होगा और क्या वे उसे लौटा भी पाएंगे। विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे लोगों से अब सावधान होने का वक्त भी आ गया है। आमजन को बैंकों से लोन लेने के लिए पता नहीं कितने झमेले झेलने पड़ते हैं पर ऐसे लोगों को घर बैठे ही लोन मिल जाता है आखिर कैसे? इसके अलावा अब नई सरकार को और भी कई काम करने होंगे। एक दल ने तो अपने घोषणापत्र में यह वादा भी किया है कि वह देशद्रोह की धारा को ही खत्म कर देगा। यह तो सीधा-सीधा देश को खत्म करने जैसा है। पहले ही लोगों की जुबां पर लगाम नहीं है। यदि ऐसा प्रावधान किया गया तो देश विरोधियों की बाढ़ आ जाएगी और सरकार कुछ नहीं कर पाएगी। महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला और उनके पापा जी किस तरह की भाषा बोल रहे हैं।
-इंद्र सिंह धिगान,
किंग्जवे कैंप, दिल्ली।