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इस्लामिक आतंक का ताजा नमूना

👤 | Updated on:24 April 2010 1:29 AM GMT
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पाठक इस बात के गवाह हैं कि इन कॉलमों में मैंने 10 बार नहीं इससे भी ज्यादा बार पाकिस्तानियों को मशवरा दिया है कि इस्लाम के नाम पर या किसी और वजह से माकूल या गैर माकूल हिंसा के इस्तेमाल को जायज करार न दिया जाए। यह सब बड़ी हद तक इस बात पर निर्भर है कि अवाम को ऐसी शिक्षा दी जाए कि आज तक तालिबान और दूसरे कई इस्लामिक धड़े ऐलानिया इस्लाम के नाम पर न केवल गैर मुस्लिमों पर बल्कि उसके उलट इस्लामपरस्तों पर भी अपने निजी हितों की खातिर वार करते रहे हैं। उन्होंने यह नहीं देखा कि एक मुसलमान दूसरे मुसलमान पर ही वार कर रहा है। अगर कोई वार करने का अपना हक मानता है तो किसी वक्त दूसरे का भी शिकार हो सकता है और अपनी बेगुनाही का दावा उसकी मदद नहीं करता। इसका ताजा-तरीन सबूत लाहौर के एक वाकया से मिला है जिसमें बताया गया है कि पाकिस्तान की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी के एक सदस्य को इस्लामिक स्टूडेंट ग्रुप ने पीट-पीटकर अधमरा कर दिया। बयान किया जाता है कि इफ्तिखार बलूच जो एक साइंस का प्रोफेसर है। उसने कुछ स्टूडेंटों को अनुशासन की खिलाफवर्जी पर क्लॉस से निकाल दिया। इसका जवाब इस्लामिक जमीयत तुलबा ने दिया और वह जवाब ऐसा था जिसने उसे खुली सड़क पर बेहोशी की हालत में फेंक दिया। उस प्रोफेसर से जो व्यवहार किया गया उसके खिलाफ यूनिवर्सिटी के बाकी प्रोफेसरों ने तीन हफ्तों तक अपनी हड़ताल जारी रखी। लेकिन आखिरकार उन्हें अपनी ड्यूटी पर वापस आने के लिए तैयार कर लिया गया। बयान किया जाता है कि यह पुरानी संस्था इन दिनों इस्लामिक आतंक का गढ़ बनती जा रही है और उसके जवान उम्मीद के मुताबिक मुसलमान होते हुए भी अपने प्रोफेसर को अधमरा करके सरेआम फेंक देना, अपना हक समझते हैं। काबिलेगौर बात यह है कि यह ग्रुप कौमी सियासी लीडरों से भी संबंधित है और उसे उनकी हमदर्दी भी हासिल है। पाकिस्तानी स्टूडेंटों की इस संस्था को पाकिस्तान की कट्टर धार्मिक जमात-ए-इस्लामी से समझौता करना पड़ा। इसलिए कि जमीयत तुलबा के लीडरों को आए दिन जमात-ए-इस्लामी की मदद की जरूरत पड़ती है। स्पष्ट हो कि यह पहला मौका नहीं जब इस्लाम की दुहाई देते हुए किसी इस्लामिक संस्था के खिलाफ भी ऐसी हरकत की हो। यह वाकया पंजाब यूनिवर्सिटी का है जिसमें 30,000 के करीब छात्र-छात्राएं पढती हैं। सरकार को नए रंगरूट भर्ती करने के लिए इस यूनिवर्सिटी से सहायता लेनी पड़ती है। ऐसे वाकयात इससे पहले भी होते रहे हैं, लेकिन इस तरह यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर को सरेबाजार पीट कर उसे यूनिवर्सिटी के दफ्तर के सामने फेंक दिया गया।

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