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भ्रष्टाचार क्यों फैलता है

👤 | Updated on:12 May 2010 1:38 AM GMT
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कोई एक कारण। लेकिन सबसे खतरनाक वो है जब आप किसी की बेइमानी को देखकर आंखे बंद कर लेते हैं ऐसा करने की वजह चाहे कुछ हो लेकिन उसका असर काफी खतरनाक होता है और यह इस बात पर निर्भर है कि भ्रष्टाचार का आरोप कौन किस पर लगा रहा है। आज हमारी हालत ऐसी है कि कोई दिन नहीं जाता जब कहीं न कहीं से सकिय लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप न मिले। ताजा तरीन यह है कि सुपीम कोर्ट के जजों के पैनल ने तीन जजों के खिलाफ फतवा दिया है और उन्हें बरतरफ करने की सिफारिश की है जिस पैनल ने यह फतवा दिया उसके सर्वे-सर्वा चीफ जस्टिस बालाकृष्ण हैं और जिन तीन जजों के खिलाफ यह फैसला दिया गया वो हैं जस्टिस सुशील हरकोहली, तरुण अग्रवाल और तीसरे हैं उत्तराखंड हाईकोर्ट के जज रावत। उनके खिलाफ आरोप यह था कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के दौरान रिश्वतें लीं। उन लोगों के नाम एक मुकदमे में रिश्वत लेने के इल्जाम थे। ये सब क्या हुआ और क्यों हुआ उसके विवरण बताते हैं कि जनवरी 2000 में गाजियाबाद की अदालत के एक मुकदमे में 7 करोड़ के पोविडेंट फंड में घपले का आरोप था। सबसे बड़ा मुलजिम आशुतोष अस्थाना जो फरार था। लेकिन मुकदमे के दौरान उसने अपना गुनाह कुबूल कर लिया। आशुतोष ने जो इकबालिया बयान जारी किया उसमें उसने 36 जजों के नाम बताए जिन्होंने इस मामले में उसकी मदद की थी। बाद में उसकी मौत हो गई। ये तीन न्यायमूर्तियां थीं जिनसे उम्मीद की जा सकती थी कि ये भ्रष्टाचार से उपर उठकर अवाम को इंसाफ देंगे। लेकिन हुआ उसके बिल्कुल उलट। आप यह सुनकर हैरान होंगे कि इन तीनों के खिलाफ केन्द्राrय सरकार ने कोई कार्रवाई करने का फैसला नहीं किया हालांकि सुपीम कोर्ट की जिस पैनल ने इन तीनों के नाम बताए थे उस पैनल का चीफ जस्टिस बालाकृष्ण थे। अब जरा सोचिए कि जिस पैनल के सर्वे-सर्वा भारत के सुपीम कोर्ट के चीफ जस्टिस हों उनकी सिफारिशों को क्या कोई रोकने की बात कर सकता है। लेकिन केन्द्राrय सरकार ने इन तीनों को बेकसूर मानकर अपना काम करने दिया। ऐसी हालत में जब सुपीम कोर्ट के चीफ जस्टिस साहब किसी व्यक्ति के खिलाफ फतवा देते हैं तो क्या यह फतवा गलत हो सकता है? लेकिन भारत सरकार ने उसे रद्द कर दिया। हालांकि सुपीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने उनके खिलाफ फैसला दिया था। सवाल उठता है कि सुपीम कोर्ट की सिफारिशों को नजरअंदाज करने की हालत में आवाम पर क्या असर पड़ेगा। साफ है कि भारत सरकार को इस तरह की मामूली बातों पर गौर करने के लिए फुर्सत नहीं है।  

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