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उपवास ः सर्वश्रेष्ठ औषधि

👤 | Updated on:30 Sep 2012 12:37 AM GMT
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 दुनिया के सभी धर्मों में उपवास का महत्व है। खासतौर पर बीमार होने के बाद उपवास को सबसे अच्छा इलाज माना गया है। आयुर्वेद में बीमारी को दूर करने के लिए शरीर के विषैले तत्वों को दूर करने की बात कही जाती है और उपवास करने से इन्हें शरीर से निकाला जा सकता है। इसीलिए 'लंघन्म सर्वोत्तम औषधं'यानी उपवास को सर्वश्रेष्ठ औषधि माना जाता है। संसार के सभी धर्मों में उपवास को ईश्वर के निकट पहुँचने का एक सबसे कारगर उपाय माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के परे यह निर्विवाद सत्य है कि उपवास करने से शरीर स्वस्थ रहता है। संभवत इसके महत्व को समझते हुए सभी धर्मों के प्रणेताओं ने इसे धार्मिक रीति-रिवाजों से जोड़ दिया है ताकि लोग उपवास के अनुशासन में बँधे रहें। आयुर्वेद समेत दूसरी सभी चिकित्सा पद्धतियों में उपवास यानी पेट को खाली रखने की प्रथा रही है। हालाँकि हर बीमारी का इलाज भी उपवास नहीं लेकिन यह अधिकांश समस्याओं में कारगर रहता है। दरअसल उपवास का धार्मिक अर्थ न ग्रहण करते हुए इसका चिकित्सकीय रूप समझना चाहिए। पेट को खाली रखने का ही अर्थ उपवास है। यह आर्थराइटिस, अस्थमा, उच्च रक्तचाप, हमेशा बनी रहने वाली थकान, कोलाइटिस, स्पास्टिक कोलन, इरिटेबल बॉवेल, लकवे के कई प्रकारों के साथ-साथ न्यूराल्जिया, न्यूरोसिस और कई तरह की मानसिक बीमारियों में फायदेमंद साबित होता है। माना तो यहाँ तक जाता है कि इससे कैंसर की बीमारी तक ठीक हो सकती है क्योंकि उपवास से ट्यूमर के टुकड़े तक हो जाते हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि लीवर के कैंसर में उपवास कारगर नहीं होता। उपवास के अनगिनत फायदे हैं। उपवास जितना लंबा होगा शरीर की ऊर्जा उतनी ही अधिक बढ़ेगी। उपवास करने वाले की श्वासोच्छवास विकार रहित होकर गहरा और बाधा रहित हो जाता है। इससे स्वाद ग्रहण करने वाली ग्रंथियाँ पुन सािढय होकर काम करने लगती हैं। उपवास आपके आत्मविश्वास को इतना बढ़ा सकता है ताकि आप अपने शरीर और जीवन और क्षुधा पर अधिक नियंत्रण हासिल कर सकें। हमारा शरीर एक स्वनियंत्रित एवं खुद को ठीक करने वाली प्रजाति का हिस्सा है। उपवास के जरिए यह अपने मेटॉबॉलिज्म को सामान्य स्तर पर ले आता हैतथा ऊतकों की प्राणवायु प्रणाली को पुनर्जीवित कर सकता है। हर व्यक्ति का खान-पान उसके संस्कार और संस्कृति के अनुसार होता है। खान-पान में युगों से जो पदार्थ प्रयोग किए जाते रहे हैं, आज भी उन्हीं पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है। यह अवश्य है कि इन विभिन्न खाद्य पदार्थों में कुछ ऐसे हैं जो बहुत फायदेमंद होते हैं, तो कुछ ऐसे जो बेहद नुकसानदायक होते हैं। इसी आधार पर प्राचीनकाल में वैद्यों ने आहार को मुख्य रूप से तीन प्रकारों में बाँटा था- सात्विक भोजन यह ताजा, रसयुक्त, हल्की चिकनाईयुक्त और पौष्टिक होना चाहिए। इसमें अन्ना, दूध, मक्खन, घी, मट्ठा, दही, हरी-पत्तेदार सब्जियाँ, फल-मेवा आदि शामिल हैं। सात्विक भोजन शीघ्र पचने वाला होता है। इन्हीं के साथनींबू, नारंगी और मिश्री का शरबत, लस्सी जैसे तरल पदार्थ बहुत लाभप्रद हैं। इनसे चित्त एकाग्र तथा पित्त शांत रहता है। भोजन में ये पदार्थ शामिल होने पर विभिन्न रोग एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से काफी बचाव रहता है। राजसी भोजन इसमें सभी प्रकार के पकवान, व्यंजन, मिठाइयाँ, अधिक मिर्च-मसालेदार वस्तुएँ, नाश्ते में शामिल आधुनिक सभी पदार्थ, शक्तिवर्धक दवाएँ, चाय, कॉफी, कोको, सोडा, पान, तंबाकू, मदिरा एवं व्यसन की सभी वस्तुएँ शामिल हैं। राजसी भोज्य पदार्थों के गलत या अधिक इस्तेमाल से कब, क्या तकलीफें हो जाएँ या कोई बीमारी हो जाए, कहा नहीं जा सकता। इनसे हालाँकि पूरी तरह बचना तो किसी के लिए भी संभव नहीं, किंतु इनका जितना कम से कम प्रयोग किया जाए, यह किसी भी उम्र और स्थिति के व्यक्ति के लिए लाभदायक रहेगा। वर्तमान में होनेवाली अनेक बीमारियों का कारण इसी तरह का खानपान है, इसलिए बीमार होने से पहले इनसे बचा जाए, वही बेहतर है। तामसी भोजन इसमें प्रमुख मांसाहार माना जाता है, लेकिन बासी एवं विषम आहार भी इसमें शामिल हैं। तामसी भोजन व्यक्ति को ाढाsधी एवं आलसी बनाता है, साथ ही कई प्रकार से तन और मन दोनों के लिए प्रतिकूल होता है।               (स्वास्थ्य-टीम)                 

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