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एड्स की गिरफ्त में मासूम जिंदगियाँ

👤 | Updated on:25 Sep 2011 12:28 AM GMT
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  उनका जीवन भी किसी विडंबना से कम नहीं। यहाँ बात हो रही है उन मासूमों की जिन्हें जन्म के साथ ही विरासत में एड्स जैसी लाइलाज बीमारी मिली है।  में ही ऐसे 30 बच्चे हैं जो एड्स का दंश झेल रहे हैं। गाँधी मेडिकल कॉलेज के एंटी रिट्रोवायरल थेरेपी सेंटर में 30 बच्चे पंजीकृत हैं, जिन्हें एचआईवी पॉजिटिव पाया गया है।  ये सभी बच्चे दो से आठ साल के हैं। इनमें से 24 बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें यह माता-पिता से विरासत में मिला है। जबकि 6 बच्चे ऐसे हैं जो दूषित रक्त के कारण इसकी चपेट में आ गए। एआरटी सेंटर के प्रभारी डॉ.हिमांशु शर्मा के अनुसार इन बच्चों को रिट्रोवायरल थेरेपी उपलब्ध कराई जा रही है। इन बच्चों को नियमित रूप से निशुल्क दवाएँ दी जा रही हैं। दवाओं पर टिकी जिंदगी डा. शर्मा के अनुसार इन 30 बच्चों में से 11 बच्चे ऐसे हैं जो दवाओं पर ही जीवित हैं। यदि इनकी दवा बंद कर दी जाए तो कभी भी ये मौत के मुँह में जा सकते हैं।  इन बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अत्यधिक कम होने के कारण इन्हें पांमण का काफी खतरा रहता है। एआरटी इन्हें इस संबंध में सावधानियाँ बरतने के बारे में परामर्श भी दिया जाता है। करे कोई, भरे कोई अधिकांश एड्स पीड़ित बच्चे ऐसे हैं जिन्हें उनके माता-पिता से एड्स जैसी लाइलाज बीमारी मिली है। इनमें अधिकांश ड्रग एडिक्ट या ट्रक ड्राइवरों के बच्चे हैं जो अन्य प्रदेशों से असुरक्षित लैंगिक संपर्कों के कारण यह बीमारी अपने साथ लाते हैं। इनमें से कई बच्चे ऐसे भी हैं जिनके माता-पिता दोनों एड्स के कारण आज इस दुनिया में नहीं हैं। इन बच्चों की परवरिश किसी अनाथाश्रम या उनके रिश्तेदारों के यहाँ हो रही है। इनकी बीमारी के बारे में समाज में खुलासा नहीं किया गया है, लेकिन जिन बच्चों की बीमारी के बारे में लोगों को पता चल गया है वे बहुत उपेक्षित हैं।  विशेषज्ञों के अनुसार जिन माता-पिता को एचआईवी पॉजिटिव होने का पता चल चुका है उन्हें संतान पैदा नहीं करना चाहिए। क्योंकि उनकी संतानों को एड्स होने की काफी हद तक संभावना रहती है। जो संतान पहले से है उनकी भी एचआईवी की जाँच अवश्य करानी चाहिए। यदि वे एचआईवी पॉजिटिव पाए जाते हैं तो तुरंत एआरटी सेंटर में पंजीयन कराकर इलाज शुरू कराना चाहिए।                        (स्वास्थ्य-टीम)  

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