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पार्टनर से अलग होना समस्या का समाधान नहीं

👤 | Updated on:13 May 2010 1:45 AM GMT
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रिया की सहेली जयंती के जीवन जीने का अंदाज रिया को पसंद नहीं आता। जयंती पिछले 15 सालों से अपने पति से अलग अपने पिता के घर में रह रही है। उसके दोनों भाई अलग-अलग घरों में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहते हैं। वे अपने पिता यानी जयंती के पिता के साथ इसलिए नहीं रहते क्येंकि जयंती अपने बच्चे के साथ यहां रहती है। रिया ने कई बार जयंती से कहा कि अगर उसे अपने पति के साथ रहना पसंद नहीं है तो वह तलाक क्यें नहीं ले लेती? जयंती का जवाब होता है कि बच्चे को भी पिता की जरूरत है। उसके पति उसके घर के थोड़ी दूर दूसरे अपार्टमेंट में अपने निजि फ्रलैट में रहते हैं। वह 10-15 दिन बाद अपने ससुर के घर में आकर अपनी पत्नी यानी जयंती और अपने बच्चे से मेल मुलाकात करके चले जाते हैं। रिया को अपनी इस बेहद प्यारी दोस्त के जीवन जीने का अंदाज कुछ समझ में नहीं आत कहते हैं कि शादियां स्वर्ग में तय होती है। यह बात सचमुच उन जोड़ों पर पूरी तरह खरी उतरती है जो अपने वैवाहिक जीवन को सुखी बनाए रखने की कला में पारंगत होते हैं। इसके विपतरीत अगर कहा जाए कि तलाक नर्क में तय होते होंगे तो गलत न होगा। लड़का हो या लड़की शादी के लिए उनके मन में कितनी खुशी होती है। लड़की के लिए शादी का मतलब है नई जिंदगी, नए रिश्ते, नया घर सब कुछ नया-नया। लड़के के लिए भी शादी उसके पूर्ण पुरुषत्व का पतीक होती है। अपने परिवार के लोगों और रिश्तेदारों का आशीर्वाद पाकर पति-पत्नी अपने नए संसार में पवेश करते हैं। शादी के कुछ दिन तक पहले तो कुछ लोगों को अच्छा लगता हैऋ लेकिन जो पति-पत्नी समझदारी से काम नहीं लेते उनके रिश्तों की डोर में खिंचाव आने लगता है। कई बार यह खिचाव रिश्ते टूटने की कगार तक पहुंच जाता है। जो भी हो आज भी भारतीय समाज में 10 में से 8 विवाहित जोड़े अपने विवाह को सपफल बनाने के लिए आपस में एड्जेस्ट करते हैं। पिछले कुछ दशकों में हमारे समाज में तेजी से बदलाव आए हैं। औरतों ने घर की दहलीज से बाहर कदम रखा है। शिक्षा हासिल करने, आर्थिक स्वालंबन के लिए कदम बढ़ाए हैं। समाज में आने वाली जागरूकता के चलते औरतों में अपने हकों, अपने अध्कारों की समझ भी आयी है। शिक्षा और कमाने से हासिल होने वाले आत्मविश्वास ने महिलाओं को तर्क करने की समझ दी है। कुछ शिक्षा हासिल करने और अच्छी नौकरी करने वाली लड़कियां चाहती हैं कि उन्हें उनकी हैसियत के अुनसार अच्छा वर मिले। इसके अलावा उन्हें टेलीविजन के पर्दे पर दिखाए जाने वाले नकली जीवन और उसके पात्रााsं ने महिलाओं की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को और ज्यादा बढ़ा दिया है। वे जब पति-पत्नी बनते हैं तब वह चाहते हैं कि उनका लाइपफस्टाइल पिफल्मी नायक-नायिकाओं से किसी भी तरह कम न हो। शादी के बाद थोड़े समय तो दोनों को अच्छा लगता है लेकिन शादी के कुछ दिन बाद नवविवाहिता को जब परिवार के सदस्यों की सेवा करनी पड़ती है, उनके साथ हर तरीके से एड्जेस्टमेंट करनी पड़ती है तो उन्हें शादी का यह लड्डू पफीका महसूस होने लगता है। कामकाजी पत्नी होने के बावजूद भारतीय समाज में पति की अपेक्षाएं पत्नी से आज भी वही होती हैं, वह पत्नी से दोहरी जिम्मेदारी को बखूबी अंजाम देने की ही उम्मीद करता है। यहीं से रिश्तों में दरार पड़नी शुरू हो जाती है। पति-पत्नी के बीच आपसी रिश्तों में खटास आनी शुरू हो जाती है। दोनों के बीच इगो हावी हो जाता है। आपस में मिल बै"कर बात करने की बजाय दोनों अपने संबंध्यों, माता-पिता से एक दूसरे की शिकायतें करने लगते हैं। शिकायतें भी छोटी-छोटी बातों को लेकर होती हैं। यदि दोनों परिपक्वता से काम ले तो छोटी-छोटी शिकायतों को वे घर में आपस में बातचीत के जरिये ही सुलझा सकते हैं। लेकिन ऐसा होता नहीं है। परिवार वालों की दोनों के रिश्तों के बीच दखलअंदाजी उनके आपसी रिश्तों की दूरियों को और ज्यादा बढ़ाने लगती है। दोनों के बीच की आपसी दूरी की वजह दोनों ही होते हैं। यदि तलाक के मामलों को देखा जाए तो हमें यह बात समझ में आती है कि पति-पत्नी के अलग होने में परिवार वाले कम जिम्मेदार नहीं होते। अकसर लड़की के माता-पिता विशेषतौर पर लड़की की मां लड़की को किसी भी मामले में प्यार से समझाने की बजाय मामले को एक तरपफा बना देते हैं और दामाद को खरीखोटी सुनाने लगते हैं। जिससे पति-पत्नी के बीच का यह मामला दो परिवारों के बीच की लड़ाई बनकर रह जाता है। लड़कियों में शिक्षा और आर्थिक निर्भरता के चलते उनमें अपने कमाने का दम होता है। जिसकी वजह से कई लड़कियां बात-बात पर अपने कमाउफं होने का रौब दिखाती हैं। सवाल है क्या पिछले कुछ दशकों में लड़कियों की सहनशीलता, संयम और ध्wर्य रखने की भावना कम हो गई है? हकीकत में ऐसा नहीं है और कुछ सीमा तक हम और हमारे समाज में तेजी से आ रहे बदलावों की ओर भी हम इशारा कर सकते हैं। लड़कियों को लगता है कि शादी के बाद वह घर का बहुत काम और नौकरी को एकसाथ कैसे कर सकती हैं? संयुक्त परिवार में भी लड़कियों को अड्जेस्ट करने में कापफी परेशानी आती है। कुल मिलाकर लड़कियों के ध्wर्य और संयम में अगर थोड़ी कमी आयी है तो इसके लिए हमारी बदलती जीवनशैली भी जिम्मेदार है। जिसमें पुरुष आज भी पत्नी की दोहरी जिम्मेदारी होने के बावजूद घर के कामों में हाथ बटाना जरूरी नहीं समझते। लड़कियों को भी लगता है कि ससुराल में उनका शोषण होता है जिसे वह कतई बर्दाश्त नहीं करना चाहतीं। एक दूसरे से की जाने वाली अपेक्षाओं और इगो के कारण पति-पत्नी के बीच प्यार पनप नहीं पाता। अगर वह साथ रहते भी हैं तो कई बार दोनों के बीच संवाद इतना कम होता है कि दोनों अजनबियों की तरह एक ही छत के नीचे रहने के लिए अभिशप्त हो जाते हैं। महानगरों में तो जीवनशैली ही तनावपूर्ण है। ऐसे में पति-पत्नी के आपसी तनावपूर्ण रिश्ते यही कहने के लिए मजबूर करते हैं `जाएं तो जाएं कहां'। लेकिन पति-पत्नी के बीच अगर अंडरस्टैंडिंग हो तो चुटकी बजाने से ही हो जाता है। एक दूसरे पर विश्वास करें, आपस में बातचीत करना बंद न करें। गलती होने पर दोनों एक दूसरे से मापफी मांगें। आपस में बै"कर बातचीत का हल निकालें। मानकर चलें कि जमाना बदल गया है। अब पहले जैसी हर हाल में समझौता करने वाली महिलाएं मुखर हो गई हैं। पतियों को अपना सामंती रवाया बदलना होगा। परिवार के बाकी सदस्यों को अपनी आपसी लड़ाई में न लाएं और अपनी समस्याओं को मिल बै"कर समझाएं। इगो कभी बीच में न लाएं। याद रखें शादी, शादी है। शादी का कोई विकल्प नहीं है। नम्रता नदीम  

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