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केंद्र सरकार सीधा अमल कर सकती है

👤 | Updated on:23 May 2010 1:30 AM GMT
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नक्सलवादियों के इन्हीं दिनों के हमलों का मुकाबला करने के मामले में यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या इनसे उसी  राज्य की सरकार  ने निपटना है जहां यह लोग कोई वाकया करते हैं या केंद्रीय सरकार को भी इस बात का हक है कि वह हस्तक्षेप करे। जब वह यह महसूस करती है कि राज्य सरकार हालात का मुकाबला नहीं कर पा रही या नहीं कर सकती। जो भी हो, कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्रीय सरकार को पूरा अधिकार है कि जब चाहे राज्य सरकारों के अधिकारों को नजरंदाज करके सीधा एक्शन खुद ले ले। यह सवाल इसलिए खड़ा हुआ है कि जब दंतेवाड़ा का हादसा हुआ था तो श्री पी. चिदम्बरम ने फरमाया था कि हालात का मुकाबला राज्य की पुलिस ही कर सकती है। यह ऐसा वाक्या था जिससे सब के कान खड़े हो गए और इस पर विभिन्न सवाल खड़े होने लगे। बेशक भारत में कानून के तहत सरकार और कानून ने राज्य सरकारों को कई अधिकार दे रखे हैं। बेशक उन पर व्याख्या करना राज्य सरकार का काम है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि केंद्रीय सरकार के पूरे अधिकार खत्म हो गए हैं। एक के बाद दूसरे दो-तीन वाकयात ने इस सवाल को जिन्दा कर दिया और अब यह कहा जा रहा है कि राज्य सरकारों के अधिकार केंद्रीय सरकार पर हावी नहीं हो सकते। इस सिलसिले में इस बात का इशारा किया जा रहा है कि केंद्रीय सरकार ने इन्हीं दिनों इस मसले पर कानून के विशेषज्ञों की राय पूछी और अटार्नी जनरल ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि राज्य सरकारों और केंद्र के अधिकार कितने हैं। इस समय पांच या छह राज्य ऐसे हैं जहां माओवादी सक्रिय हैं। दो-एक राज्य में तो भारत सरकार या राज्य सरकार बरायनाम ही रह गई है। उन राज्यों में माओवादियों की अनुमति के बिना कोई काम नहीं हो सकता। इन अलग-अलग नजरियों की वजह से यह सवाल जिन्दा हो गया है कि राज्य सरकारों और केंद्रीय सरकार के अधिकार क्या हैं। इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि भारत कुछ राज्यों का मजमुआ नहीं है बल्कि खुद एक राष्ट्र है। इसकी सीमाएं अपार हैं। हिमालय के लेकर दक्षिण तक और दक्षिण में मुंबई से लेकर तमिलनाडु के इलाके तक भारत फैला हुआ है। इस सारे इलाके में बेशक कई बार बेचैनी फैली है। केंद्रीय सरकार नकारा भी साबित हुई है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि राज्य सरकार के अधिकार बहाल करने में केंद्रीय सरकार उनकी मदद नहीं कर सकती। इस वजह से जब श्री चिदम्बरम ने यह फरमाया कि राज्य सरकारों को अपने साधनों से ही माओवादियों का मुकाबला करना पड़ेगा तो इस बात ने देश की जनता में हड़कम्प पैदा कर दिया। अमली वाकयात बता रहे थे कि किसी राज्य के पास ऐसे अधिकार नहीं हैं जो उन माओवादियों या नक्सलवादियों से निपट सकें। सरकार की ताकत मोहजब तरीके पर बरती जानी है। अगरचे इन सियासी पार्टियों को पूछने वाला कोई नहीं इसलिए वह जब चाहें और जैसे हालात में चाहें इनका मुकाबला करने के लिए बन्दूक उठा सकते हैं। यह है फर्क एक जम्हूरी सरकार के अमल में और माओवादियों के अमल में। इसलिए जब दोबारा माओवादियों ने एक ही राज्य में वार किया तो इसके बाद यह सुनने में आया कि केंद्रीय सरकार ने उसे इशारा कर दिया है कि आखिरी अधिकार राज्य सरकार के नहीं बल्कि केंद्रीय सरकार के हैं, जिसका मतलब यह है कि केंद्रीय सरकार जो अमल करना चाहे, वह कर सकती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वो यह भूल जाए कि उसने अमल कैसा करना है। मेरे कहने का मतलब है कि श्री चिदम्बरम के ऐलान ने बेमानी एक हड़कम्प पैदा कर दी जिसे फिर चिदम्बरम को ही नकारा करना पड़ा जब दूसरी बार भी राज्य की पुलिस माओवादियों के खिलाफ कुछ न कर सकी। इस तरह सब तरह के जायजे लेने के बाद नतीजा यह निकला कि जनता की रक्षा के लिए आखिरी अधिकार केंद्रीय सरकार के पास भी हैं, लेकिन जब यह देखती है कि राज्य सरकारें कोई मुनासिब कार्यवाही नहीं करतीं या जो भी करती हैं वह हालात के मुकाबले के लिए काफी नहीं तो उसे किसी से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं। उसके बाद वो तमाम अधिकार हैं जो राज्य सरकारों की नाकामी की हालत में राज्य सरकारों को अमल में लाने हैं। इस तरह इस सवाल का जवाब मिल गया कि किसी राज्य सरकार की नाकामी के बाद राज्य सरकार को अगर जरूरी हो तो निलम्बित भी किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि केंद्रीय सरकार उस पर हावी हो सकती है और जो अधिकार केंद्र ने राज्य सरकारों को दे रखे हैं उनका इस्तेमाल बिना रोक-टोक के नई सरकार कर सकती है। इस तरह श्री चिदम्बरम ने जो हौव्वा खड़ा कर दिया था उसका हल वाकयात ने ही दिला दिया है। तब से यह माना जाता है कि किसी भी जम्हूरी निजाम में राज्य सरकारों की नाकामी का मतलब यह नहीं कि केंद्रीय सरकार अमल नहीं कर सकती। राज्य सरकार की नाकामी को देखते हुए केंद्रीय सरकार जब चाहे राज्य सरकारों के अधिकार अपने हाथ में ले सकती है।  

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