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ज्वालामुखी के पकोप के बाद आपदाओं की कतार लम्बी है

👤 | Updated on:24 May 2010 3:45 PM GMT
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लम्बे अर्से से आइसलैंड के इजाफ्रजाल्लजुकुल क्षेत्रा में ज्वालामुखी का पकोप बना हुआ है। ज्वालामुखी को पफटे हुए कापफी समय बीत चुका है लेकिन इसका पभाव अभी तक द्वीप पर नजर आ रहा है। आइसलैंड के इस क्षेत्रा के अलावा इंग्लैंड के एक अन्य द्वीप में भी ज्वालामुखी ने इस कदर कहर बरपा रखा है कि महीनों से उस क्षेत्रा में ध्gंध् छाई हुई है। यह ध्gंध् उस ध्gंए और राख की है जो लगातार ज्वालामुखी से निकल रहा है। ध्रती पर हो रहे इन परिवर्तनों को लेकर वैज्ञानिक भविष्यवाणियां करने से कतरा रहे हैं। ज्वालामुखी के इस कदर घातक पभावों के चलते जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है। वैज्ञानिक इस परेशानी में हैं कि इसके बाद पकशति अगला क्या नजारा दिखाएगी। ज्वालामुखी के पफटने से जो बदलाव हुए हैं वह तो सिपर्फ एक संकेत मात्रा है। इसके बाद तमाम पाकशतिक आपदाएं हमारे सिर पर मंडरा रही हैं। आइसलैंड के इजाफ्रजाल्लजुकुल क्षेत्रा में जब लोगों ने ज्वालामुखी से उ"ते ध्gएं को देखा था तो उन्हें ऐसा ही लगा कि यह एक छोटा ज्वालामुखी विस्पफोट होगा और तकरीबन एक हफ्रते के अंदर शांत हो जाएगाऋ लेकिन इसकी भयावहता कम होने का नाम ही नहीं ले रही। अपैल मई में कई हफ्रतों से यूरोप जाने वाली तमाम हवाई उड़ाने लगातार रद्द होती रही हैं। ज्वालामुखी का पफटना तो सिपर्फ एक संकेत है जो यह दर्शाता है कि पकशति का ध्wर्य खत्म होता जा रहा है। अगर हम अब भी नहीं चेते तो इसके आगे और भी बहुत कुछ देखने को मिलेगा। ध्रती पर आने वाले कुछ दशकों में जो बदलाव होंगे या यूं कहें जो आपदाएं आएंगी वह कुछ इस तरह की हो सकती है। सोलर वेदर- सूर्य के चुम्बकीय क्षेत्रा में कुछ दिनों के अंतराल में परिवर्तन होते रहते हैं। इन परिवर्तनों के चलते सूर्य की सतह पर भयावह तूपफान उ"ते हैं, इन तूपफानों को कोरोनल मास इजेक्शन कहते हैं। ओसलो में नोर्वेगन स्पेस सेंटर के वैज्ञानिक पॉल ब्रेके के अनुसार, `सूर्य की सतह पर उ"ने वाले इस तूपफान में करोड़ों टन पार्टिकल 80 लाख किमी पति घंटे की रफ्रतार से घूमते रहते हैं। अकसर ही यह पार्टिकल अंतरिक्ष में कापफी दूरी तक छितर जाते हैं। अंतरिक्ष में मौजूद हमारे सेटेलाइट पर भी इन पार्टिकल का पभाव पड़ता है। इस अंतरिक्षीय तूपफान में सेटेलाइट की मौसम सम्बंध भविष्यवाणियां पभावित होती हैं। कोरोनल मास इजेक्शन के सम्पर्क में आने पर सेटेलाइट काम करना बंद कर देता है। यूरोप में अभी जो भी आपदा है वह कहीं न कहीं इसी संकट का परिणाम है।' उल्कापिंडों का पभाव- वैज्ञानिकें का मानना है कि पत्येक एक हजार साल में ध्रती से एक छोटा उल्का पिंड टकराता है जो पचास मीटर तक चौड़ा हो सकता है। यह उल्का पिंड 6 मील चौड़े पत्थर के समान पतीत होता है। 30 जून 1908 को साइबेरिया में तुंगुस्का नदी में एक 30 मीटर का उल्कापिंड आकर गिरा था। इस उल्कापिंड के गिरने से जो ध्माका हुआ था उससे जंगल के 400 वर्गमील क्षेत्रा में तेजी से कंपन्न उ"ा था। इस कंपन्न के चलते सैंकड़ों की तादाद में छोटे जीव, हिरन व अन्य वनस्पतियां नष्ट हो गई थीं। हैरानी की बात तो यह है कि उल्कापिंड के पभाव के कारण लम्बे समय तक उस क्षेत्रा में वनस्पति भी नहीं उगती। जरा सोचिये जब एक छोटा सा उल्का पिंड ध्रती के इतने बड़े क्षेत्रा को पभावित कर सकता है तो बड़ा उल्कापिंड अगर ध्रती से टकाराया तो क्या होगा। ऐसी स्थिति में विनाश की सीमा का अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल हो जाएगा। मैग्नेटिक पफील्ड रिवर्सल्स- इसे ध्रती के विनाश या खत्म हो जाने के रूप में जाना जाता है। ध्रती के आयरन कोर में गहराई से हलचल होने का अर्थ है ध्रती के चुम्बकीय क्षेत्रा में पफेरबदल हो जाना। इस पफेरबदल के चलते ध्रती का दक्षिणी ध्g्रव उत्तर की ओर बढ़ जाता है और उत्तरी ध्gखव दक्षिण की ओर। इस तरह का परिवर्तन आज से 780,000 साल पहले हुआ था। कहते हैं इस बदलाव में ध्रती के सभी पाणी और वनस्पतियां खत्म होने की कगार पर आ जाती हैं। ध्रती का पुनः विकास होता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि मैग्नेटिक पफील्ड रिवर्सल्स जल्द ही होने वाला है। पकशति में जो भी बदलाव हो रहे हैं वह इसी बात के संकेत दे रहे हैं कि हम सब ध्रती पर असुरक्षित हैं। डेनमार्क के नेशनल स्पेस इंस्टीट्यूट में वैज्ञानिक नील्स ओल्सन की मानें तो पिछले 150 सालों में ध्रती की चुम्बकीय क्षमता में तकरीबन 8 पतिशत की कमी आई है। इस कमी के चलते रेडिएशन में बढ़ोत्तरी हो जाती है जिससे उच्च उफर्जा के पार्टिकल हवा में तैरने लगते हैं। इन पार्टिकल से अंतरिक्ष विज्ञानी, एरोप्लेन पैसेंजर और पायलेट को विमान उड़ाने में या इसमें बै"ने में परेशानी होती है। कमजोर चुम्बकीय क्षेत्रा किसी भी हवाई विमान की कार्यपणाली में दखलअंदाजी कर सकता है। भूकंप- दुनियाभर में पतिवर्ष लाखों की तादाद में लोग भूकंप से पीड़ित होते हैं। हैती में भूकंप का जो पकोप देखने को मिला था वह भयावहता का एक संकेत मात्रा था। ज्यादातर लोगों का मानना है कि भूकंप के झटके जिस क्षेत्रा में लगते हैं पभाव भी उन्हीं पर होता हैऋ लेकिन कभी-कभी यह झटके पूरी दुनिया के चक्कर काटते हैं। इनका खात्मा तब होता है जब एक बार पिफर किसी अन्य स्थान पर बड़ा भूकंप आता है। भूकंप के इस पभाव को रोकने के लिए वैज्ञानिक चिप सप्लाई का उपयोग करते हैं। यह चिप सिलिकॉन बनाने वाले से पाप्त होती है और इसके जरिये एक स्थान पर आए भूकंप की तीव्रता को वहीं पर नियंत्रात करने का पयास किया जाता है ताकि यह तीव्रता अन्य स्थानों को पभावित न कर पाए। ध्रती को अगले कुछेक दशकों बाद इन तमाम खतरों का सामना करना पड़ सकता है। समझदारी इसी में है कि अभी से ही इन खतरों का सामना करने की तैयारी कर ली जाए ताकि जान माल का कम से कम नुकसान हो और ध्रती पकशति के तमाम पहारों को बर्दाश्त कर सके। के.पी. सिंह  

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