👤 | Updated on:24 May 2010 3:47 PM GMT
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ईश्वर क्या है? यह सवाल तब से अस्तित्व में है जब से आदमी ने सवाल करना शुरू किया और तब तक अस्तित्व में रहेगा जब तक आदमी सवाल कर सकने के लायक रहेगा। जाहिर है अगर इतना पुराना सवाल है तो इस पर अब तक न जाने कितने जवाब दिए जा चुके होंगे। लेकिन यकीन मानिए यह सवाल अभी भी मौजूं है कि ईश्वर क्या है? क्या वाकई ईश्वर है? कृऔर न जाने इस तरह के कितने सवाल जो ईश्वर के आदि और अंत को क"घरे में खड़ा करते हैं या कहें उनके जरिए उन जिज्ञासाओं को खत्म करने की कोशिश करते हैं जो अनंत काल से हैं। हमारे अपने अस्तित्व को लेकर व हमारे आदि व अनंत को लेकर। ईश्वर हमारी सतत खोज है। किसी और की नहीं अपने आपकी खोज। इसलिए हम जो भी बेहतर, अव्यक्त, अबूझ और अनंतमित का पाते हैं उसे ईश्वर की उपाधि् से नवाज देते हैं। जिसे हम बहुत बेहतर जानते हैं उसे या जिसे बिल्कुल नहीं जानते उसे। जो हमारा अभीष्ट है, जो हमारे डर का चरम है, जो हमारी चेतना का परम बिंदु है। उस सबको हम अनंत ईश्वर मान लेते हैंऋ क्योंकि ईश्वर हमारी आकांक्षा का अंतिम सत्य है। इतनी बड़ी दुनिया है तो जाहिर है ईश्वर की कल्पना भी बहुत बड़ी होगी। हमने ईश्वर को इसीलिए बहुत-बहुत कुछ कहा है। मानस में तुलसीदास कहते हैं, `बिनु पग चलइ सुनई बिनु काना। कर बिनु करइ करम बिधि् नाना।।' यानी ईश्वर बिना पैरों के चलता है, बिना कानों के सुनता है और बिना हाथों के हजारों तरह के कामों को अंजाम देता है। ईश्वर की अनंत-अनंत कल्पनाएं हैं और ये कल्पनाएं कहीं उसे निराकार बनाती हैं तो कहीं साकार। ईश्वर कहीं पथ है तो कहीं पाथेय। ईश्वर कहीं पेम है तो कहीं पेरणा। ईश्वर इतने रूपों में मौजूद है कि उसका वर्णन संभव नहीं है। एक ज्युइश कहावत है कि चूंकि ईश्वर हर जगह मौजूद नहीं रह सकता था तो उसने मां बनाई यानी दुनिया में जो कुछ भी अभीष्ट है, पेम और ममता से भरा है, वह सब कुछ ईश्वर है। सवाल है जब ईश्वर इतना अनंत, अन्तर्यामी है तो पिफर उसे एक चीज में व्यक्त करना हो तो वह क्या हो सकती है? वह चीज हो सकती है, उफर्जा। उफर्जा तत्वों का अद्भुत घटक है। विज्ञान की दशष्टि से देखें तो उफर्जा सभी गतिविध्यों, सभी गतियों की कारक है। उफर्जा के बिना कोई गति संभव नहीं। उफर्जा के बिना कोई क्रिया संभव नहीं। उफर्जा अदश्श्य रहती है। लेकिन हर गति की कारक है। हर सक्रियता का स्रोत है। "ाrक उसी तरह जैसे हम ईश्वर को देख नहीं सकतेऋ लेकिन सशष्टि की रहस्यमयता हमें बार-बार याद दिलाती है कि कहीं कुछ है जो इस रहस्य को जीवंत बनाए है। वह कुछ और नहीं, ईश्वर है। ईश्वर उसी तरह बिना किसी रूप आकार के है जिस तरह उफर्जा का कोई दर्शनीय रूप और आकार नहीं होता। कोई नहीं जानता कि एक पंखे को चलाने वाली उफर्जा लाल है या हरी? उसमें कितनी ताकत है? क्योंकि उफर्जा अदश्श्य है। नजर तो हमें सिपर्फ पंखा ही आता है और उस पंखें से ही हम उफर्जा का एहसास करते हैं उस पंखे से ही हम जो मौजूद नहीं है उस शक्ति की शक्ति को मान्यता देते हैं। "ाrक इसी तरह ईश्वर के संबंध् में भी कहा जा सकता है। ईश्वर एक कनसेप्ट है। एक अवधरणा। जिसे लोगों ने आकार दिया है, दर्शन दिया है। नीत्से कहते थे, `इंसान ने अपनी-अपनी कल्पनाओं और जटिलताओं के हिसाब से अपने-अपने ईश्वर गढ़े हैं। कार्ल मार्क्स कहते थे, र्ध्म अपफीम है। लेकिन जब वह र्ध्म को अपफीम कहते थे तो उसका मतलब र्ध्म की भौतिक मौजूदगी यानी कर्मकांड नहीं होता था। वह कर्मकांड को अपफीम नहीं कह रहे होते थे बल्कि उस आस्था को वह अपफीम का नाम दे रहे होते थे जो आस्था उन्हें ईश्वर के पति नशे में चूर बनाती है। ईश्वर की अवधरणा वाकई एक नशा है। यह एक स्वीकार्य है कि कोई तो है जो हमसे ज्यादा शक्तिशाली है। कोइ तो है जिसके पास हमारे सारे सवालों का जवाब है। कोई तो है जो हमारी पूर्णता है। ये धरणाएं। ये अवधारणाएं, हमें उफर्जा देती है। पेरणा देती है। भविष्य में आगे बढ़ने, कुछ कर गुजरने की पेरणा देती हैं यानी ईश्वर एक उफर्जा है और वह हर चीज में विद्यमान है। तभी तो तुलसी दास ने कहा है, `सियाराम मैं सब जग जानी। करउं पणाम जोरि जुग पानी।।' उफर्जा अच्छी हो सकती है। उफर्जा खराब हो सकती है। इसका क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि उफर्जा से हासिल नतीजे नकरात्मक भी हो सकते हैं और सकारत्मक भी। अगर आप बम बनाकर हिरोशिमा और नागासाकी में गिराएंगे तो यह उफर्जा का नकारात्मक नतीजा ही देंगे। आस्था की उफर्जा भी ऐसी है। अगर आप सकारात्मक आस्थाएं रखेंगे तो आपकी उफर्जा से सकारात्मक नतीजे निकलेंगे। अगर आपकी आस्थाएं लालची और अंधविश्वास से भरी हैं तो आप उनसे हास्यस्पद और दुखद नतीजे ही हासिल करेंगे। बलि चढ़ाना भी आखिरकार एक क्रूरतम आस्था ही है। उफर्जा हमारे इर्द-गिर्द हमेशा मौजूद रहती है। विज्ञान कहता है, हमारी मौजूदगी एक चुंबकीय अवस्थिति है। हमारे चारो तरपफ हमेशा हवा मौजूद रहती है। उसका एक निश्चित घनत्व है। हमें किसी ने इस तरह से पोग्राम किया है कि हम उस हवा के घनत्व को अपने लिए हटाते हैं यानी हमारी मौजूदगी एक नियम है। एक सि(ांत है। "ाrक इसी तरह ईश्वर भी हर जगह मौजूद है। एक नियमब( उफर्जा और सि(ांत की तरह। उफर्जा खुद को अभिव्यक्त करने से बचाती है। वह पहले से मौजूद अभिव्यक्तियों की संचालक बनती है। ईश्वर भी अलग से अपने अस्तित्व, अपनी उपस्थिति को दर्ज नहीं कराता। वह सशष्टि में    मौजूद अनंत-अनंत कणों, अनंत-अनंत जीवों के जरिए ध्ड़कता है। उनके जरिए खुद को अभिव्यक्ति देता है। इसलिए जगत में जो भी जीवित है,      जीवंत है वह धन्य हैऋ क्योंकि वह उफर्जा है और उफर्जा ईश्वर है। आर.सी. शर्मा  

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