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पढ़ाई-लिखाई पर केन्द्रित `एडमिशन ओपन'

👤 | Updated on:24 May 2010 4:01 PM GMT
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बॉलीवुड में एक परम्परा सी बन गई है कि यदि किसी एक विषय पर कोई फिल्म हिट हो जाए तो उसी विषय पर कम से कम आधा दर्जन फिल्मों की लाइन लग जाती है। आमिर खान की `थ्री इडियट्स' हिट हुई तो उसके बाद आई शाहिद कपूर की `पा"शाला'      और अब कुछ नए कलाकारों के      लेकर बनी फिल्म `एडमिशन ओपन' पदर्शित हुई है। निर्देशक ने शायद सोचा कि यह हाट विषय है और चल निकलेगा         लेकिन विषय के पस्तुतिकरण में वह   चूक गये जिससे कि फिल्म न तो कोई संदेश दे पाती है न ही दर्शकों को बांधे रख पाती है। पोफेसर तारिक सिद्दीकी (अनुपम खेर) शिक्षा व्यवस्था में मौजूदा खामियों को लेकर बहुत चिंतित हैं। वह इन्हें दूर करने का पयास करते हैं लेकिन पशासन इसमें आड़े आता है। शिक्षा के बाजार पर वह आपत्ति दर्ज कराते हैं लेकिन कोई उनकी सुनता नहीं। लेकिन फिर भी वह अपने मिशन में लगे हुए हैं। दूसरी तरफ, कुछ छात्र जिसमें अर्जुन (अंकुर खन्ना) पमुख है, जिनके नंबर कम आए हैं और उन्हें पुणे के किसी कालेज में दाखिला नहीं मिल रहा। वह काफी पयास करते हैं लेकिन जब मामला हल नहीं होता तो    वह ऐसा तरीका ढूंढते हैं कि दाखिले    की जरूरत ही नहीं रह जाती। शिक्षा पणाली पर चोट तो फिल्म करती है     लेकिन कमजोर संवादों और कहानी के साथ। अभिनय के मामले में अनुपम खेर और आशीष विद्यार्थी का काम ही उल्लेखनीय रहा। अंकुर खन्ना और अन्य नवोदित कलाकार सामान्य ही रहे। फिल्म का संगीत पक्ष बेहद कमजोर है।         इसी तरह फिल्म को बेहद कमजोर ओपनिंग भी मिली। फिल्म का पचार भी ज्यादा नहीं किया गया था जिससे कि अधिकतर लोगों को तो इस फिल्म के आने का ही पता नहीं चला। निर्देशक    के. डी. सत्यम कोई कमाल नहीं दिखा पाए हैं। वीर अर्जुन  

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