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भारतीय किकेटरों की टकीला पब में हाथापाई

👤 | Updated on:24 May 2010 4:02 PM GMT
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तीसरे टी-20 वर्ल्डकप से अपनी टीम के बाहर होने के बाद 8 भारतीय खिलाड़ी सेंट लूसिया के पब टेकिला जो में डीडी ;डिनर एंड ड्रिंक्सद्ध के लिए गए। कहा जा रहा है कि वहां कुछ अमेरिकी-भारतीयों ने इन क्रिकेट खिलाड़ियों पर कटाक्ष किए जिन्हें मैदान में पिटे हुए ये मोहरे बर्दाश्त न कर सके और जो बात व्यंग से शुरू हुई थी वह बहस से होती हुई हाथापाई तक पहुंच गई। डीडी के लिए पब में 8 खिलाड़ी गए थे- जहीर खान, युवराज सिंह, आशीष नेहरा, रोहित शर्मा, पीयूष चावला, सुरैश रैना, मुरली विजय और रवीन्द जडेजा। इनमें से युवराज सिंह और आशीष नेहरा का  कहना है कि पब में किसी किस्म की कोई वारदात नहीं हुई, हद तो यह है कि किसी पफैन से टीम की हार को लेकर बहस तक नहीं हुई। बाकी खिलाड़ियों का कोई बयान नहीं आया है। लेकिन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के सचिव एन श्रीनिवासन ने इन खिलाड़ियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। इससे लगता है कि दाल में कुछ काला है जिसे छुपाने की कोशिश की जा रही है। आगे बढ़ने से पहले यह बताना आवश्यक है कि जब टीम वेस्टइंडीज से लौटकर आई तो बोर्ड के अध्कारियों ने सम्बंध्ति खिलाड़ियों को पफोन करके कहा, `हम तुम्हें सजा नहीं दे रहे हैं और न ही यह घटना टीम में तुम्हारे चयन को पभावित करेगी, इसलिए इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने जो तुम्हारे खिलापफ अभियान छेड़ा हुआ है उसमें अपना बचाव करने का पयास न करें।' दूसरे शब्दों में बोर्ड ने अलिखित हुक्मनामा जारी किया कि खिलाड़ी वेस्टइंडीज के `हादसे' पर मीडिया में कोई बयानबाजी न करें। यह अलग बात है कि बोर्ड के हुक्मनामे से पहले ही युवराज सिंह अपना पक्ष रख चुके थे और आशीष नेहरा को मजबूरन अपनी जुबान खोलनी पड़ी। ध्यान रहे कि आशीष नेहरा जब दिल्ली लौटे तो उन्हें मीडिया ने न उन्हें अपनी पत्नी और बच्चे से मिलने दिया और न ही घर में घुसने दिया जब तक कि वे सेंट लूसिया की तथाकथित घटना पर टिप्पणी नहीं कर देते। आशीष नेहरा ने अपने बयान में स्पष्ट कहा कि पब में कुछ नहीं हुआ था। जबकि दूसरी ओर बोर्ड खिलाड़ियों को चुप रहने के लिए भी कह रहा है और उसने उन्हें कारण बताओ नोटिस भी जारी किये हैं। इसलिए सवाल यह है कि आखिर माजरा क्या है? पब में वास्तव में क्या हुआ था? सही बात तो जांच के बाद ही सामने आएगी, लेकिन जो खबरें आई हैं उनके अनुसार, अमेरिकन-भारतीय पफैंस  ने रवीन्द जडेजा के लचर पदर्शन पर कटाक्ष किए, उन्होंने पलटकर जवाब दिये तो बहस शुरू हो गई और आशीष नेहरा ने बीच में पड़कर मामले को रपफा-दपफा कर दिया। अगर बात इतनी सी ही थी तो यह कोई खास बात नहीं है। क्रिकेट और क्रिकेटरों को लेकर हममें अजीब किस्म की दीवानगी है। जब मैदान में कामयाबी मिलती है तो हम अपने खिलाड़ियों को आसमान पर बि"ा देते हैं लेकिन जब वे नाकाम होते हैं तो हम उन्हें शैतान बनाने पर तुल जाते हैं। हम इस बात को भूल जाते हैं कि आखिर क्रिकेट एक खेल ही है जिसमें कभी कामयाबी मिलती है तो कभी असपफलता। दूसरा यह कि खिलाड़ी भी इंसान हैं और उनके पदर्शन में हमेशा उतार-चढ़ाव की गुंजाइश बनी रहती है। लेकिन ये भी कटु सत्य है कि क्रिकेट अपने देश में इतना ग्लैमराइज्ड हो चुका है कि सिपर्फ उसी पर बहस और चर्चाएं होती हैं और बाकी खेलों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। मसलन जिस दिन टीम इंडिया श्रीलंका से हारने के बाद टी-20 वर्ल्ड कप से बाहर हुई उसी दिन विश्वनाथ आनंद ने चौथी बार शतरंज का विश्व खिताब जीता, हॉकी टीम ने अजलन शाह कप में अपना मैच शानदार अंतर से जीता और भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने टी-20 वर्ल्ड कप के सेमीपफाइनल में पवेश किया। लेकिन इन महत्वपूर्ण खबरों को अखबारों की बीसवें पन्ने के आ"वें कॉलम में भी उचित जगह नहीं मिली और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने इन पर पट्टी चलाने से ज्यादा कोई महत्व नहीं दिया। इलैक्ट्रॉनिक मीडिया तो बस पूर्व क्रिकेट खिलाड़ियों को अपने स्टूडियों में बुलाकर यही सवाल करता रहा कि आखिर धेनी के ध्gरंदर क्यों पराजित हुए और सेंट लूसिया के पब में किसने किस पर हाथ उ"ाया। वर्तमान खिलाड़ियों का मखौल उड़ाने से पहले ये पूर्व क्रिकेटर इतना भी नहीं सोचते कि आखिर उनकी खुद की उपलब्धियां क्या हैं। भला कोई बता सकता है कि अशोक मल्होत्राा, अतुल वासन, सबा करीम, मनिंदर सिंह, चेतन शर्मा, निखिल चोपड़ा, कीर्ति आजाद आदि ने किस मैदान पर कौन से झंडे गाड़े हैं। लेकिन माइक सामने आते ही सचिन तेंदुलकर भी कटाक्ष करने से बाज नहीं आते। समझने की बात यह है कि वर्तमान खिलाड़ियों का न तो कोई पवक्ता है और न ही उन्हें अपना पक्ष रखने की अनुमति है, तो पिफर उनके लिए आखिर बोलेगा कौन? अब जब वे टूर्नामेंट से बाहर हो गए थे तो क्या उन्हें अपने कमरे में ही बै"s रहना चाहिए था? जवान लड़कों का पब में जाना कौन सा ऐसा पाप है जिस पर इतनी हाय-तौबा मचाई जाए। कोई टिप्पणी करने से पहले हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हमारे ज्यादातर खिलाड़ी उच्च शिक्षा पाप्त नहीं हैं और क्रिकेट में व्यस्त रहने के कारण उनकी सोशल नेटवर्किंग भी स्तरीय नहीं है। इसलिए दबाव में अकसर ऐसी पतिक्रिया सम्भव है जो गुड एटिकेट्स के दायरे में न आती हो। मुमकिन है ऐसा ही कुछ सेंट लूसिया के पब में हुआ हो। अतः बेहतर यही है कि राई का पहाड़ न बनाया जाए। इस बात को समझा जाए कि आखिर खिलाड़ी टी-20 वर्ल्ड कप में अपेक्षानुसार पदर्शन क्यों नहीं कर पाए? अगर समस्या तेज विकेट पर उछाल लेती गेंदों को संभाल न पाने की थी, तो इस कमी को दूर करने के लिए तेज विकेट बनाई जाएं और बाउंसर खेलने की पैक्टिस की जाए। गौरतलब है कि वेस्टइंडीज के पूर्व कप्तान विवियन रिचर्ड्स ने इस संदर्भ में भारतीय खिलाड़ियों की मदद करने की पेशकश की है। उनकी सेवाएं लेना कोई बुरी बात न होगी। लेकिन सबसे हास्यस्पद भूमिका तो बोर्ड की है। वह खिलाड़ियों को दंडित भी नहीं करना चाहता और उन्हें कारण बताओ नोटिस भी जारी कर रहा है। बोर्ड को भी अब ये समझ लेना चाहिए कि टीम में न केवल इंपफॉर्म प्लेयरों का चयन किया जाए बल्कि यह भी सुनिश्चित कर लिया जाए कि वे स्वस्थ हैं और जिस किस्म की विकेट उन्हें मिलेगी उस पर अपने जौहर दिखाने के लिए अभ्यस्थ हैं। जब तक ऐसा नहीं किया जाएगा तब तक खिलाड़ियों को एक पल में हीरो और एक पल में जीरो बनने की कवायद से गुजरना पड़ेगा। सारिम अन्ना  

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