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क्या सच में झूठ पकड़ती है मशीन

👤 | Updated on:9 Oct 2013 12:23 AM GMT
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 ईशा भाटिया पुलिस निश्चित ही ऐसी मशीन के लिए कोटी धन्यवाद देगी जो पकड़ सकती हो कि आरोपी सच बोल रहा है या झूठ। लाइ डिटेक्टर और ब्रेन स्कैन की मशीनें ऐसा करने में समर्थ तो हैं लेकिन क्या उनकी रिपोर्टें एकदम सही हैं? अगर पुलिस आपसे पूछे कि क्या आपने अपने पड़ोसी की हत्या कर उसे अपने गार्डन में गुलाब की क्यारी में दफना दिया है, तो आप कैसे रिएक्ट करेंगे। क्या आप फूट-फूट कर रो पड़ेंगे या आपके हाथ-पैर पसीने से ठंडे हो जाएंगे। आपके दिमाग में किस तरह की प्रतिािढया हो रही होगी। हो सकता है कि इन सवालों के जवाब देते समय आप कोई ऐसी हरकत कर रहे हों कि पुलिस आपके झूठ को पकड़ ले। और अगर पुलिसवाला ऐसा कोई संकेत नहीं देख पाता तो निश्चित ही लाइ डिटेक्टर मशीन या फिर पॉलीग्राफ इस झूठ को पकड़ लेगा। कम से कम आइडिया तो यही है। विवादों में घिरा टेस्ट झूठ पकड़ने वाली मशीन लाइ डिटेक्टर या पॉलीग्राफ शारीरिक प्रतिािढया देखती है, त्वचा कितनी चालक है, दिल किस गति से दौड़ रहा है और ब्लड प्रेशर कितना है। मशीन ऐसे ही नहीं बता सकती कि कोई झूठ बोल रहा है या सच। इसे पकड़ने के लिए ही तरह-तरह के सवाल पूछे जाते हैं ताकि रिएक्शन को पकड़ा जा सके। कुछ सवाल सिर्प टेस्ट करने के लिए पूछे जाते हैं, उनका जवाब जांचकर्ता को पहले से पता होता है। फिर कुछ सवाल संदिग्ध अपराध से जुड़े होते हैं। सवाल बनाए ही इस तरह जाते हैं कि व्यक्ति झूठ बोले। अमेरिका में अक्सर पॉलिग्राफ मशीनों का इस्तेमाल कंट्रोल क्वेश्चन के साथ किया जाता है। कुछ सरकारी कार्यालय तो इसे आवेदकों को चुनने के लिए भी उपयोग में लाते हैं। यह तरीका काफी विवादास्पद है और कुछ वैज्ञानिकों के मुताबिक भरोसे के लाइक भी नहीं। बर्लिन सेंटर फॉर एडवांस्ड न्यूइमेजिंग के निदेशक जॉन डिलैन हैनेस कहते हैं, क्लासिक डिटेक्टर बताते हैं कि इंसान कितना उत्तेजित है और वे पकड़ते भी हैं। लेकिन पॉलिग्राफ की पकड़ से छूटना सीखा जा सकता है। डर, गुस्से या आश्चर्य की भावना से कोई भी उद्विग्न हो सकता है। माएंज में फॉरेंसिक मनोविज्ञान विशेषज्ञ हंस गेऑर्ग रिल कहते हैं, 'कोई मासूम भी हत्या के सवाल पर दोषी जैसे रिएक्ट कर सकता है।      

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