घातक नकली दवाओं का जंजाल
मानसी गोपालकृष्णन पूरी दुनिया में नकली दवाओँ का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। खतरनाक नतीजों के बावजूद यह बड़े मुनाफे का कारोबार है। अंतरराष्ट्रीय सहयोग इस खतरनाक कारोबार को रोकने की कोशिश में है। चारकोल से बनी दर्द निवारक दवाएं, जहरीले आर्सेनिक वाली भूख मिटाने की दवा और नपुंसकता का इलाज करने के लिए दवा के नाम पर बेचा जाता सादा पानी। हर साल अंतरराष्ट्रीय अपराध जगत नकली दवाएं बेच कर अरबों रुपये कमा रहा है। यह दवाएं इंटरनेट के जरिए, काउंटर से या फिगर गैर कानूनी तरीके से बेची जाती हैं। आम तौर पर यह दवाएं कोई असर नहीं करतीं लेकिन कई बार घातक होती हैं और जान भी ले सकती हैं। अनुमान है कि केवल अफीका में करीब सात लाख लोग मलेरिया या टीबी की नकली दवा इस्तेमाल करने के कारण मारे जाते हैं। भारत और जर्मनी समेत दुनिया के तमाम देशों में नकली दवाओं का कारोबार बढ़ रहा है। जर्मन शहर कोलोन में कस्टम्स विभाग की अधिकारी रुथ हालिती कहते हैं, 'हर साल तादाद बढ़ रही है।' इस साल के पहले छह महीनों में कस्टम विभाग ने 14 लाख नकली दवा की गोलियां, पाउडर और एम्पुल जब्त किए हैं। 2012 की तुलना में यह करीब 15 फीसदी ज्यादा है। हालिती का कहना है कि यह तो कुछ भी नहीं, 'वास्तविक संख्या तो इससे बहुत ज्यादा है।' चोरी छिपे ढुलाई बहुत सी नकली दवाइयां पूर्वी एशियाई देशों से आती हैं। जर्मनी का पैंकफर्ट हवाई अड्डा यूरोप में सामान पहुंचाने का सबसे बड़ा केंद्र है। हर साल हवाई रास्ते से पैंकफर्ट आने वाले करीब 90 टन सामान की तलाशी ली जाती है। सामान को पहले ढुलाई के लिए की गई पैकिंग से पकड़ने की कोशिश होती है। हालिती बताती हैं, 'इनकी खास पैकिंग या फिर भेजने वाले की जगह कोई संदिग्ध नाम हो सकता है।' अगर कोई पत्र या पार्सल संदिग्ध हो तो फिर इसे छानबीन के लिए लैब में भेजा जाता है जहां इसकी हर सिरे से पूरी जांच की जाती है। नकली दवाएं अब छोटी मोटी नहीं रही कि कोई कुछ बना कर बेच दे। यह बहुत बड़ा कारोबार बन चुकी है। हालिती तो कहती हैं, 'इस तरह का दूसरा अपराध अगर कोई जानकारी में है तो वह नशीली दवाओँ का धंधा ही है।' इसकी वजह भी बहुत साफ है। इस धंधे में पैसा बहुत है, वास्तव में नशीली दवाओँ के कारोबार से भी ज्यादा। वियाग्रा जैसी दवा के नकली कारोबार में 25 हजार फीसदी का फायदा होता है। मुनाफे का ये आंकड़ा नकली कोकेन के धंधे से कम से कम 10 गुना ज्यादा है। नकली दवा के कारोबारियों के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्प पर नकेल कसने के लिए सरकारें दूसरे देशों के साथ सहयोग कर रही है हैं। इस साल के मध्य में अंतरराष्ट्रीय ढुलाई के मालों की पूरे हफ्ते चेकिंग की गई जिससे कि नकली दवाओं को ढूंढा जा सके। पुलिस ने 10 लाख संदिग्ध दवाइयां पकड़ीं और करीब 200 लोग गिरफ्तार किए गए। यूरोपीय संघ भी बड़ी सािढयता से नकली दवाओं के बाजार पर नकेल डालने की कोशिश में है। 2010 में सभी दवाओं की पैकिंग के लिए एक नए दिशानिर्देश बनाए गए जिसके तहत इन पैकेटों पर एक सिक्योरिटी कोड डालना जरूरी कर दिया गया। इसके जरिए हर पैकेट की पहचान की जा सकती है और तुरंत इसे बनाने वाले तक पहुंचा जा सकता है। इस योजना को अभी कुछ फार्मेसियों के साथ मिल कर काम करना है। इनमें ऑनलाइन फार्मेसी भी शामिल हैं। हालांकि इन दिशानिर्देशों का संदिग्ध वेबसाइटों पर कोई असर होगा यह कहना मुश्किल है और सबसे ज्यादा पैसा वो ही कमा रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहा है कि ऑनलाइन बेची जा रही हर दूसरी दवा नकली है। इन नकली दवाओँ का खतरा सबसे ज्यादा विकासशील देशों में हैं जहां दवाओँ के कारोबार पर नियम कानून का पहरा बहुत मामूली या है ही नहीं। जर्मनी की दवा उद्योग से जुड़े योआखिम ओडेनबाख कहते हैं, 'जैसी कानूनी संरचना हमारे यहां है, दवाओं और फार्मेसी के लिए वहां वैसा कुछ भी नहीं है।' खास तौर से कम पैसे वाले लोगों का जोखिम और ज्यादा है क्योंकि वे आधिकारिक फार्मेसी की बजाय इधर उधर से दवाएं लेते हैं। घातक नकली दवाएं मलेरिया, दिल की बीमारी, ब्लड प्रेशर यहां तक कि एचआईवी के इलाज के लिए भी अवैध रास्ते से दवा खरीदी जा सकती है। कई बार यह दवा असली न हो कर नकली होती है। इसके अलावा इन दवाओं को एक साथ बहुत असुरक्षित तरीके से रखा जाता है। नकली दवा बनाने वाले अपने लैब में बहुत कम ध्यान रखते हैं और लैब के नमूने बताते है कि कई बार इनमें चूहे की लेड़ी जैसी चीजें भी मिली होती हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 1990 के मध्य में कोई 2500 लोग दिमागी बुखार की वैक्सीन लेने के तुरंत बाद मर गए थे। यूं तो विज्ञान विषय पढ़ने वाले युवाओं के लिए करियर संभावनाओं की कोई कमी नहीं है। बायोइंर्फोमेटिक्स के बढ़ने से इस क्षेत्र में युवाओं की मांग भी बढ़ने लगी है। फार्मा के क्षेत्र में भी करियर की संभावनाएं बढ़ी हैं। भारत दवाइयां बनाने के मामले में विश्व में चौथे स्थान पर है।विज्ञान विषय के लिए फार्माकोविजिलेंस एक उभरता हुआ करियर क्षेत्र है। विज्ञान विषय के युवा इसमें करियर बना सकते हैं। फार्माकोविजिलेंस के अंतर्गत दवाओं से जुड़ी समस्याओं का समाधान किया जाता है। दवाओं के मरीजों पर पड़ रहे दवाओं के असर को पहचानना, उसको मापना, उसकी पुष्टि करना दवाओं की उपलब्धता, उसका विपणन, प्रयोग आदि फार्माकोविजिलेंस के अंतर्गत आते हैं। इन सब जानकारियों को एकत्र कर दवा निर्माण तक पहुंचाना। इस जानकारियों के आधार पर ही दवा कंपनियां अपनी दवाइयों को और अधिकसुरक्षित और उपयोगी बनाती हैं। इस क्षेत्र में करियर के अवसर देश के साथ-साथ विदेशों में भी हैं। फार्माकोविजिलेंस में करियर बनाने के लिए यह गुण जरूरी है कि आप दवाइयों के मरीजों पर पड़ रहे विपरीत प्रभाव को जान सके। साथ ही कम्युनिकेशन स्कील भी जरूरी है क्योंकि इसमें मरीजों, चिकित्सकों, दवा पोताओं, मेडिकल कंट्रोल बोर्ड आदि के संपर्प में रहना पड़ता है। फार्माकोविजिलेंस में सर्टिफिकेट और डिप्लोमा दोनों तरह के कोर्स किए जा सकते हैं।