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जहां मिलता है हाथी से लेकर सूई तक...

👤 | Updated on:29 Nov 2013 12:25 AM GMT
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 बिहार के सारण और वैशाली जिले की सीमा पर अवस्थित सोनपुर में गंडक के तट पर हर साल लगने वाला एक विश्वप्रसिद्ध मेला है सोनपुर मेला। यह राजधानीपटनासे 25 किलोमीटर और वैशाली के हाजीपुर शहर से 3 किलोमीटर दूर है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा (नवंबर-दिसंबर) में लगने वाला यह मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है। यह मेला भले ही पशु मेला के नाम से विख्यात है, लेकिन इस मेले की खासियत यह है कि यहां सूई से लेकर हाथी तक की खरीदारी आप कर सकते हैं। इससे भी बड़ी बात यह कि मॉल कल्चर के इस दौर में बदलते वक्त के साथ इस मेले के स्वरूप और रंग-ढंग में बदलाव जरूर आया है लेकिन इसकी सार्थकता आज भी बनी हुई है। 5-6किलोमीटर के वृहद क्षेत्रफल में फैला यह मेला हरिहरक्षेत्र मेला और छत्तर मेला मेला के नाम से भी जाना जाता है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा के स्नान के साथ यह मेला शुरू हो जाता है और एक महीने तक चलता है। यहां मेले से जुड़े तमाम आयोजन होते हैं। इस मेले में कभी अफगान, इरान, इराक जैसे देशों के लोग पशुओं की खरीदारी करने आया करते थे। कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने भी इसी मेले से बैल, घोड़े, हाथी और हथियारों की खरीदारी की थी। 1857की लड़ाई के लिए बाबू वीर पुंवर सिंह ने भी यहीं से अरबी घोड़े, हाथी और हथियारों का संग्रह किया था। अब भी यह मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है। देश-विदेश के लोग अब भी इसके आकर्षण से बच नहीं पाते हैं और यहां खिंचे चले आते हैं। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के दो भक्त जय और विजय शापित होकर हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए थे। एक दिन कोनहारा के तट पर जब गज पानी पीने आया था तो ग्राह ने उसे पकड़ लिया था। फिर गज ग्राह से छुटकारा पाने के लिए कई सालों तक लड़ता रहा। तब गज ने बड़े ही मार्मिक भाव से अपने हरि यानी विष्णु को याद किया। तब कार्तिक पूर्णिमा के दिन विष्णु भगवान ने उपस्थित होकर सुदर्शन पा चलाकर उसे ग्राह से मुक्त किया और गज की जान बचाई। इस मौके पर सारे देवताओं ने यहां उपस्थित होकर जयजयकार की थी। लेकिन आज तक यह साफ नहीं हो पाया कि गज और ग्राह में कौन विजयी हुआ और कौन हारा। इस स्थान के बारे में कई धर्मशास्त्राsं में चर्चा की गई है। हिंदू धर्म के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां स्नान करने से सौ गोदान का फल प्राप्त होता है। कहा तो यह भी जाता है कि कभी भगवान राम भी यहां पधारे थे और बाबा हरिहरनाथ की पूजा-अर्चना की थी। इसी तरह सिख ग्रंथों में यह पा है कि गुरु नानक यहां आए थे। बौद्ध धर्म के अनुसार अंतिम समय में भगवान बुद्ध इसी रास्ते कुशीनगर गए थे। जहां उनका महापरिनिर्वाण हुआ था। ऐसे और भी न जाने कितने इतिहास यह अपने आप में समेटे हुए है। क्या खास है यहां सोनपुर की इस धरती पर हरिहरनाथ मंदिर दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है जहां हरि (विष्णु) और हर (शिव) की एकीकृत मूर्ति है। इसके मंदिर के बारे में कहा जाता है कि कभी ब्रह्मा ने इसकी स्थापना की थी। इसके साथ ही संगम किनारे स्थित दक्षिणेश्वर काली की मूर्ति में शुंग काल का स्तंभ है। कुछ मूर्तियां तो गुप्त और पाल काल की भी हैं। अमृतसर.... स्वर्ण मंदिर देश के खूबसूरत शहरों में अमृतसर का नाम भी शुमार है। पंजाब के सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र शहरों में से एक इस शहर में सिखों का सबसे बड़ा गुरुद्वारा स्वर्ण मंदिर है। स्वर्ण मंदिर अमृतसर का दिल माना जाता है। हर साल लाखों की संख्या में यहां पर्यटक इस मंदिर की भव्यता को देखने के लिए आते हैं। ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा पर्यटक अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को ही देखने आते हैं। अमृतसर का इतिहास गौरवमयी है। यह अपनी संस्कृति और लड़ाइयों के लिए बहुत प्रसिद्ध रहा है। अमृतसर अनेक त्रासदियों और दर्दनाक घटनाओं का गवाह रहा है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बड़ा नरसंहार अमृतसर के जलियांवाला बाग में ही हुआ था। इसके बाद भारत पाकिस्तान के बीच जो बंटवारा हुआ, उस समय भी अमृतसर में बड़ा हत्याकांड हुआ। इतना ही नहीं अफगान और मुगल शासकों ने इसके ऊपर अनेक आाढमण किए और इसको बर्बाद कर दिया। इसके बावजूद सिखोंने अपने दृढ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति से दोबारा इसको बसाया। हालांकि अमृतसर में समय के साथ काफी बदलाव आए हैं लेकिन आज भी अमृसतर की गरिमा बरकरार है। त्योहारों के समय अमृतसर शहर का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है। दिवाली, होली, लोहड़ी और बैसाखी के समय यहां पर पर्यटकों का जमावड़ा लगने लगता है। त्योहारों से संबंधित अधिकतर समारोह स्वर्ण मंदिर के आसपास ही आयोजित किए जाते हैं। अमृतसर में मनाए जाने वाले दूसरे त्योहारों में गुरु नानक जयंती भी है, जिसे नवंबर के महीने में मनाया जाता है। स्वर्ण मंदिर अमृतसर का स्वर्ण मंदिर हमेशा से ही पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। इसका पूरा नाम हरमंदिर साहब है, लेकिन यह स्वर्ण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। पूरा अमृतसर शहर स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ बसा हुआ है। स्वर्ण मंदिर में प्रतिदिन हजारों पर्यटक आते हैं। इसके आकर्षण का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि श्रद्धालु विश्व के कोने-कोने से यहां आकर अपनी सेवा देते हैं। वैसे तो यह मंदिर दिन में बहुत ही ज्यादा सुंदर दिखता है लेकिन जब रात में कृत्रिम लाइट की रोशनी इस मंदिर पर पड़ती है तो इसकी खूबसूरती का नजारा कुछ और ही होता है। मंदिर के आसपास का पूरा क्षेत्र सुनहरे रोशनी से चमकने लगता है। स्वर्ण मंदिर 24 घंटों में से 20 घंटे (सुबह छह बजे से रात दो बजे तक) खुला रहता है। आप रात या दिन किसी भी समय इसकी खूबसूरती का लुत्फ उठा सकते हैं। जलियांवाला बाग विश्व के इतिहास में जलियांवाला बाग हत्याकांड को एक बर्बर नरसंहार माना गया है। जहां 13 अप्रैल, 1919 को अंग्रेजी सेनाओं की एक टुकड़ी ने निहत्थे भारतीए प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलियां चालाई थीं। इसमें 1000 से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो गई। आज यह बाग एक सुन्दर पार्प में तब्दील हो गया है और इसमें एक संग्रहालय का निर्माण भी कर दिया गया है। इसकी देखभाल और सुरक्षा की जिम्मेदारी जलियांवाला बाग ट्रस्ट को दी गई है। यहां पर सुन्दर पेड़ लगाए गए हैं और बाड़ बनाई गई है। इसमें दो स्मारक भी बनाए गए हैं जिसमें एक स्मारक रोती हुई मूर्ति का है और दूसरा स्मारक अमर ज्योति है। बाग में घूमने का समय सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक का है। जलियांवाला बाग स्वर्ण मंदिर से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप चाहे तो मंदिर से पैदल भी जा सकते हैं। वाघा बॉर्डर अगर आप अमृतसर जा रहे हैं तो वाघा बॉर्डर जाना न भूलें। यह जगह अमृतसर से 28 किलोमीटर की दूरी पर भारत-पाकिस्तान के बॉर्डर पर स्थित है। हर शाम यहां पाकिस्तान और हिंदुस्तान के सैनिकों की तरफ से आाढामक तरीके से परेड आयोजित किए जाते हैं। इस परेड को बीटिंग रिट्रीट कहा जाता है और इसे देखने हर शाम यहां दूर-दूर से लोग आते हैं, जिनमें बहुत से विदेशी पर्यटक भी शामिल होते हैं। 1959 से लेकर आज तक हर शाम बॉर्डर पर यह बीटिंग रिट्रीट का समारोह बदस्तूर जारी है। स्वर्ण मंदिर से वाघा बॉर्डर जाने में लगभग एक घंटे का वक्त लगता है। आप यहां टैक्सी या शेयर्ड जीप लेकर पहुंच सकते हैं। कब जाएं अमृतसर अमृतसर की जलवायु गर्मियों में काफी गर्म और सर्दियों में काफी ठंडी रहती है। इसलिए पर्यटकों को सलाह दी जाती है कि वह अक्टूबर और फरवरी के महीने में इस जगह का दौरा करें। अप्रैल महीने के बाद से ही यहां की जलवायु गर्म होने लगती है और जुलाई तक आते-आते यहां बारिश होने लगती है।            (पर्यटन-टीम)  

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