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बिहार की उपेक्षा

👤 | Updated on:15 July 2010 4:02 PM GMT
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आजादी के बाद ऐसा प्रथम बार हुआ है जबकि केंद्रीय मंत्रिमंडल में बिहार का एक भी सदस्य नहीं है। इससे पूर्व प्रथम संप्रग सरकार में बिहार के आठ सांसद मंत्री थे। वे थेöसर्वश्री लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान, रघुवंश प्रसाद सिंह, प्रेमचन्द गुप्ता, शकील अहमद, अखिलेश प्रसाद, श्रीमती कांति सिंह और तसलीमुद्दीन अंग्रेजीकाल में जब प्रथम बार केंद्र में पं. जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में आंतरिक सरकार बनी थी तब भी बिहार के डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और जगजीवन राम मंत्री बने थे। बाद में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष और भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने। इस देश में जगजीवन राम एकमात्र ऐसे नेता हैं जो 34 वर्ष तक लगातार केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य रहे हैं।  आजादी के बाद 1975 के आपातकाल तक जो प्रमुख नेता, समय-समय पर केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य बने उनमें जगजीवन राम, सत्यनारायण सिंह, केदार पाण्डेय, ललित नारायण मिश्रा, रामसुभग सिंह, अनन्त प्रसाद शर्मा, अब्दुल गफूर, श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा, धर्मवीर, आदि प्रमुख थे। बिहार के नेताओं का रेल मंत्रालय सबसे प्रिय विभाग रहा है।  भारतीय रेल के विगत 60 वर्षों में 30 वर्ष बिहार के नेता रेल मंत्री रहे हैं। सन् 1956 में एक रेल दुर्घटना में तत्कालीन रेल मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्राr ने त्यागपत्र दे दिया था।  उस समय प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने देश के अग्रगण्य नेता सासाराम से लोकसभा के लिए चुने गए नेता बाबू जगजीवन राम को रेल मंत्री बनाया था। उनके बाद में डॉ. रामसुभग सिंह, ललित नारायण मिश्रा, केदार पाण्डे. जॉर्ज फर्नांडीस, रामविलास पासवान, नीतिश कुमार और लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री बने थे।  हालांकि बिहार के ही नेता श्रीमती मीरा कुमार लोकसभा की अध्यक्ष है किन्तु एक भी मंत्री नहीं होने से बिहार के नागरिक अपने को उपेक्षित महसूस करते हैं।  इस समय जबकि मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा हो रही है, बिहार के लोगों को विश्वास है कि उनका भी एक प्रतिनिधि केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होगा। -उमेश प्रसाद सिंह, के-100, लक्ष्मी नगर, दिल्ली।  

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