महिलाएं आज भी अपने अधिकारों से वंचित हैं
महिलाओं के लिए समानता के बारे में बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं लेकिन समानता की बात तो दूर, यह आधी आबादी आज तक अपने बुनियादी अधिकारों से वंचित है और इन्हें पाने के लिए आवाज खुद उसे ही उ"ानी होगी। सामाजिक कार्यकर्ता नफीसा अली कहती हैं कि महिलाओं के लिए समान अधिकारों की बातें आज भी सपना है। उनके लिए जिम्मेदारी यह कह कर बढ़ा दी गई कि स्त्राr पुरुष दोनों ही बराबर हैं। लेकिन यह कोई नहीं देखता कि उनको दोहरी जिम्मेदारी का निर्वाह करना पड़ रहा है। वह कहती हैं कि महिलाएं नौकरी कर रही हैं। लेकिन घरों में उनके लिए कितनी सुविधाएं दी जाती हैं। घर के काम से यह कह कर उन्हें मुक्ति नहीं दी जाती कि घर की जिम्मेदारी महिलाओं को ही पूरी करनी है। इसके बाद का समय वह नौकरी के लिए देती हैं। उनके पास आराम, स्वास्थ्य से लेकर भविष्य की योजनाओं के लिए समय नहीं होता। अपना ही वेतन जोड़-तोड़ कर अगर वह मकान खरीदना चाहें तो पहले उन्हें इसके लिए घर वालों की अनुमति लेनी होती है। इस साल आ" मार्च को महिला दिवस के सौ साल पूरे हो रहे हैं। सेंटर फार सोशल रिसर्च की निदेशक और वीमन पावर कनेक्ट की अध्यक्ष रंजना कुमारी कहती हैं कि सौ साल हों या इससे अधिक समय हो, मानसिकता में बदलाव बहुत जरूरी है अन्यथा महिला दिवस अर्थहीन होगा। रंजना कहती हैं कि विज्ञान के इस दौर में भी लड़कियों को बोझ माना जाता है और आए दिन उन्हें गर्भ में ही समाप्त कर देने के मामले सुनाई देते हैं। हर कदम पर लड़कियां खुद को साबित करती आ रही हैं फिर भी उन्हें लेकर सामाजिक सोच में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया है। दिक्कत यह है कि महिला पर इतना दबाव डाला जाता है कि वह गर्भपात के लिए मजबूर हो जाती है। रामपाल शर्मा, नन्दनगरी, दिल्ली